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पेट्रोल-डीजल और कोयले का विकल्प बन सकती है ग्रीन बिजली!

पेट्रोल-डीजल और कोयले का विकल्प बन सकती है ग्रीन बिजली?

दुनिया भर में जिस तरह से पेट्रोल-डीजल की खपत हो रही है। एक न एक दिन इसका बिकल्प ढ़ूढना पड़ेगा। कई तरह की और इनर्जी का प्रयोग करना होगा। अमेरिका जैसे विकसित देश ने ग्रीन बिजली पर काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका के मैरीलैंड का टकोमा पार्क में एक चार्ज स्टेशन लगाया गया है जो ग्रीन बिजली से चलता है। यहां एक गाड़ी को पूरी तरह चार्ज होने में आधे घंटे का वक़्त लग सकता है लेकिन इसकी कीमत 10 डॉलर यानी करीब 740 रुपये है।

एक्सपर्ट मानते है कि आने वाले समय में हमें इस तरह के और आविष्कार करने होंगे। ते 45 साल से इलेक्ट्रिक इंजीनियर के तौर पर काम कर वाले प्रोफ़ेसर निक जेंकिन्स कहते हैं कि बिजली के मामले में दुनिया के अलग-अलग हिस्से एक दूसरे से बहुत अलग हैं। निक जेंकिन्स बताते हैं, " बांग्लादेश जाने से पहले मैं उत्तर पूर्वी इंग्लैंड के एक कैमिकल प्लांट में बिजली लगाने के काम से जुड़ा था। ये बहुत बड़ा प्लांट था। तब वो प्लांट जिस क्षमता के साथ तैयार हो रहा था, वो पूरे बांग्लादेश की बिजली क्षमता से ज़्यादा थी।

आंकड़ों के जरिए बात करें तो ब्रिटेन फिलहाल हर साल 326 टेरा वाट घंटे बिजली का इस्तेमाल करता है। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने के लिए ग्रीन इलेक्ट्रिसिटी का उत्पादन बढ़ाने की बात की जाती है। लेकिन इसके रास्ते में कई बाधाएं हैं। निक जेंकिन्स कहते हैं, " पहली चुनौती तो इसे तैयार करने की है। इसके लिए पवन चक्की के तमाम फार्म तैयार करने होंगे या फिर रिन्यूएबल के ऐसे तरीकों की संख्या बढ़ानी होगी जिन्हें हम इस्तेमाल करना चाहते हैं। इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम को कंट्रोल करना मुश्किल है। बिजली को एक से दूसरी जगह भेजने और इसका वितरण का काम भी चुनौतीभरा है। हमने चालीस साल से ज़्यादा वक्त में जो कुछ बनाया है अब उसे नया रूप देने होगा और विस्तार करना होगा। ये सब बड़ी चुनौतियां हैं।"

निक जेंकिन्स बताते हैं कि ज़रूरत के मुताबिक क्षमता बढ़ाने के लिए ज़्यादा मोटी केबलों की ज़रूरत होगी। इन्हें ज़मीन के अंदर डालना भी आसान नहीं। सबकुछ बिजली से चलेगा तो पीक टाइम के दौरान बिजली खपत बढ़ जाएगी। फिर बिजली को स्टोर करना भी इंजीनियरों के लिए बड़ी चुनौती रहा है। वो आगाह करते हैं कि मांग बढ़ने के साथ आपूर्ति भी बढ़नी चाहिए। सिस्टम में संतुलन नहीं हुआ तो सब कुछ फेल हो सकता है। दुनिया को बिजली के सहारे दौड़ाने और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए कई जरूरी तकनीक पहले से मौजूद हैं। लेकिन जरूरत सही जगह पर सही तरीके आजमाने और सिस्टम में संतुलन लाने की है। इसके लिए निवेश, सही राजनीतिक सोच और काफी संसाधनों की भी ज़रूरत है।