कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने और 370 हटाए जाने के बाद कई मुस्लिम देशों ने कश्मीर के विकास में बढ़चढ़ कर योगदान का जज्बा दिखाया है। यूएई की तरह कई अन्य मुस्लिम देश भी कश्मीर में अपने कार्यालय (कांस्युलेट) खोलने के लिए आगे आ रहे हैं। मुस्लिम देशों की कश्मीर के विकास मे योगदान से पाकिस्तान और चीन दोनों को मिर्ची लग रही है। चीन ने प्रत्यक्ष तौर पर तो कुछ नहीं कहा है लेकिन पाकिस्तान में खलबली मची हुई है।
कश्मीर के विकास में हिस्सेदारी के लिए करीब मुस्लिम12 देश भारत के संपर्क में है। कश्मीर के विकास में मुस्लिम देशों की रुचि लेना पाकिस्तान के मुंह पर तमाचा है। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के दो साल बाद केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समझौता भी किया है। यूएई से भारत ने एक अहम समझौता किया है जिसके तहत दुबई की शीर्ष इंडस्ट्री जम्मू-कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए निवेश करेगी। इस सब को लेकर भारत में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत (और आईएसआई के इंस्ट्रयुमेंट) अब्दुल बासित ने वीलॉग स्यापा भी किया है।
भारत का मानना है कि अगर मुस्लिम देश कश्मीर में निवेश करेंगे और वहां विकास होगा, तो इसका बड़ा संदेश जाएगा। मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से इस्लामिक देशों के समूह का सहारा लेता रहा है। पचास से ऊपर देशों के संगठन ने कई मौकों पर कश्मीर के मसले पर आपत्तिजनक बयान भी जारी किए, जिसका भारत को खंडन भी करना पड़ा। ओआईसी के देशों की आड़ में पाकिस्तान पिछले दो सालों से कश्मीर का मसला कई मंचों पर उठा चुका है। कभी मानवाधिकार के नाम पर तो कभी वहां स्थानीय लोगों के समर्थन के नाम पर। ऐसे में अगर समृद्ध मुस्लिम देश यहां निवेश करने लगेंगे तो इस तरह के आरोप का स्वत: खंडन हो जाएगा।
भारत और यूएई के बीच संबंध अच्छे हैं। धारा 370 हटने के बाद यूएई ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया था और कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था। यूएई अकेला मुस्लिम देश नहीं है जो यहां निवेश करेगा। भारत ईरान सहित कम से कम आधे दर्जन मुस्लिम देशों से संपर्क में है जो निवेश करने को तैयार हैं। इससे स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर नौकरियां मिलेंगी ही, पाक समर्थित आतंकवाद को भी कूटनीतिक मात मिल जाएगी।