कश्मीर के कार्कोट वंश के सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़ के काल में कश्मीर कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपने उत्कर्ष पर था। ललितादित्य ने अपनी हर विजय का उत्सव जनहित कार्यों से मनाया। विदेशों में अपना विजय अभियान पूरा करने के बाद ललितादित्य ने जालंधर, लाहौर और अन्य छोटे प्रांतों को अपने अधीनस्थों को दे दिया।
अपने हर विजय अभियान के बाद उसने एक स्मारक, एक नगर और एक मंदिर बनवाया। जब ललितादित्य अपने विजय अभियान पर निकला तो उसे अपनी जीत का एहसास हुआ। इस पर उसने सुनिश्चितपुर नाम का शहर बसाया। अपनी एक विजय के बाद उसने दर्पितपुरा नाम का शहर बसाया। इस शहर में ललितादित्य ने मुक्तिकेशवा की एक बड़ी मूर्ति बनवाई। अपनी एक और विजय के बाद उत्सव मनाने के लिये ललितादित्य ने फलपुरा नाम का शहर बनाया। इसके अलावा पर्णोत्सर्ग नाम का एक शहर बसाने के बाद वहां एक बड़े महल का निर्माण करवाया, जिसका नाम क्रिरम्मा था।
<a href="https://hindi.indianarrative.com/india/kashmir-mighty-emperor-lalitaditya-muktpeed-empire-central-asia-20314.html">अपनी एक और विजय के बाद ललितादित्य ने ललितपुर नाम के शहर को बसाया और वहां पर उसने एक सूर्य मंदिर बनवाया।</a> इस शहर के प्रबंध के लिये ललितादित्य ने कान्यकुब्ज शहर को आस-पास की ज़मीन और गांवों का राजस्व भी दिया। हुशकापुरा में ललितादित्य ने भगवान मुक्तास्वामी की एक भव्य मूर्ति बनवाई और बौद्ध भिक्षुओं के लिये एक मठ का निर्माण भी करवाया। विदेशों में अपनी विजय पताका फहराने के बाद ललितादित्य मुक्तपीड़ जब स्वदेश लौटा तो उसने अपने शुद्धिकरण के लिये एक करोड़ दस लाख स्वर्ण मुद्राएं कश्मीर के भट्ट ब्राह्मणों को दान किया।
<h2>कृषि पर विशेष ध्यान</h2>
इसके अलावा ललितादित्य ने अंगूर की खेती करने वाले किसानों के लिये एक शहर बसाया। इसके साथ ही लोगों में आध्यात्मिकता का ज्ञान बढ़ाने के लिये ललितादित्य ने कई गांव बनाने के साथ उन्हें भगवान विष्णु के<a href="https://hindi.indianarrative.com/vichar/sharada-shaktipeeth-temple-central-asias-most-famous-education-center-only-ruins-19144.html"> मंदिर</a> भी भेंट किए। कल्हण के अनुसार ललितादित्य ने हवा में लटकी हुई नरहरि की मूर्ति बनवाई। जिसके लिये जमीन पर उसने चुंबकों की एक श्रृंखला लगाई। इन चुम्बकों के आधार पर ही ये मूर्ति हवा में लटकी दिखाई देती थी।
कृषि के लिये पानी की परेशानी को देखते हुए ललितादित्य ने झेलम नदी के तल से अवसाद निकालकर कई नहरों का निर्माण करवाया। जिसका सीधा लाभ कश्मीर के किसानों को मिला। उसने खेतों में सिंचाई के लिये किसानों को रहट भी दान में दिया। साथ ही उसने दलदली भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिये कई छोटे-बड़े बांधों का निर्माण करवाया, जिसके बाद दलदली इलाके खेती योग्य बनाए गए।
<h2>कला-संस्कृति के संरक्षक</h2>
सम्राट ललितादित्य एक योद्धा होने के साथ साथ कला-संस्कृति के पालक और संरक्षक भी थे। उनके शासनकाल में कला, शिक्षा और व्यापार-वाणिज्य को काफ़ी प्रोत्साहन मिला। इस काल में धार्मिक उत्सवों को भव्य स्तर पर आयोजित किया जाता था। चित्रकारों, भवन निर्माताओं और मूर्तिकारों को प्राश्रय दिया गया। ललितादित्य स्वयं भी एक लेखक और वीणा-वादक थे इसलिये भी उनका रुझान कला और संस्कृति की तरफ़ था।
ललितादित्य ने विदेशों से विद्वान व्यक्तियों को कश्मीर में आमंत्रित किया था। जिसमें मंगोलिया का एक रसायनशास्त्री भूषण खान था। तोखरिस्तान के कंगणवक्ष शहर से चांगकुन को आमंत्रित किया गया, जिसके साथ ललितादित्य ने बुद्ध की मूर्ति का आदान-प्रदान किया।
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार ललितादित्य ने श्रीनगर के पास परिहासपुर नाम का शहर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। जहां उन्होंने गरीबों के लिये एक स्थायी आश्रय-स्थल का निर्माण करवाया, जिसमें भोजन से भरी एक लाख थालियां भेंट कीं। इसके अलावा उसने यहां अपना एक महल बनवाया और चार मंदिरों का निर्माण भी करवाया। जिनमें विष्णु को समर्पित मुक्तिकेशवा मंदिर विशेष था।
<h2>मार्तंड मंदिर सहित कई मंदिर बनवाए</h2>
कल्हण राजतरंगिणी में आगे लिखता है कि ललितादित्य ने मुक्तिकेशव मूर्ति बनाने के लिये 84 हज़ार तोला सोना दान किया था। एक अन्य मंदिर में उन्होंने परिहाससेन की मूर्ति बनवाने के लिये चाँदी दान किया था। कल्हण ने ललितादित्य द्वारा बुद्ध की एक तांबे की भव्य मूर्ति बनवाने का भी वर्णन किया है। उन्होंने एक वर्गाकार बौद्ध स्तूप बनवाया था जिसमें एक चौगान, एक चैत्य और मठ भी था।
ललितादित्य मुक्तपीड़ की स्थापत्य कला का सर्वोच्च उदाहरण <a href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A1_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0,_%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0">मार्तंड मंदिर</a> है। इन सबके अलावा उन्होंने परिहासपुर में शिप्रहेश-केशव नाम की विष्णु की मूर्ति बनवाई, साथ ही सोने की महावाराह की मूर्ति भी बनवाई। गोवर्धनधारी नाम की कृष्ण की चाँदी की मूर्ति भी ललितादित्य ने बनवाई। ललितादित्य ने 54 हाथ ऊंचा विष्णु स्तंभ बनवाया था। जिसके ऊपर उन्होंने स्वर्ण निर्मित गरुड़ की प्रतिमा बनवाई। कल्हण ने राजतरंगिणी में इस मूर्ति के बारे में लिखा है कि ये स्तंभ आकाश को छूने वाला था।
ये कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय इतिहास में अगर किसी सम्राट ने सबस ज्यादा महल बनवाए तो वो था-ललितादित्य मुक्तपीड़। इसके साथ ही उन्होंने कला और संस्कृति को भी आश्रय दिया। जिसके कारण कार्कोट वंश के समय कश्मीर में चतुर्मुखी विकास हुआ।.
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