कहा जाता है जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे थे, वो स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Devi Temple) बहुत ही प्रसिद्ध है। भारत में ऐसे तमाम शक्तिपीठ मौजूद हैं, जहां माता सती की पूजा होती है। इन शक्तिपीठों के दर्शन की विशेष मान्यता है दूर दूर से लोग यहां आकर माता का आशीष प्राप्त करते हैं। इसके अलावा यह मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से तक़रीबन 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ भी माना जाता है। असम के गुवाहटी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या मंदिर में माता की योनि का भाग गिरा था ऐसे में हर साल यहां भव्य अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में शामिल होने के लिए तमाम श्रद्धालु, साधु संत और तांत्रिक दूर दूर से आते हैं। ये मेला उस वक्त लगता है जब मां कामाख्या रजस्वला रहती हैं। ऐसे में कुछ महीनो बाद मंदिर के पट खुलने को तैयार हैं। इस बीच आप असम जाने का प्लान बना रहे हैं, तो माता कामाख्या के दर्शन जरूर कीजिएगा। जानिए इस मंदिर का इतिहास और महिमा।
जानिए इस मंदिर का इतिहास
जानकारी के लिए बता दें कामाख्या मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में गिना जाता है और बहुत लोकप्रिय है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच किया गया था। परन्तु हुसैन शाह ने आक्रमण कर मंदिर को नष्ट कर दिया था।1500 ईसवी के दौरान राजा विश्वसिंह ने मंदिर को पूजा स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया। इसके बाद सन 1565 में राजा के बेटे ने इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया।
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मंदिर में है कुंड
भले ही कहने को मंदिर है लेकिन इस मंदिर के अंदर किसी तरह की माता की कोई तस्वीर या फिर माता के दर्शन किसी मूर्ति के रूप में नहीं बल्कि कुंड के रूप में होते हैं जो फूलों से ढाका जाता है। जिससे हमेशा जल निकलता रहता है। ऐसे में देश के तमाम हिस्सों से हर साल तंत्र मंत्र की साधना करने वाले तांत्रिक यहां अंबुवाची मेले में आते हैं।
प्रसाद में आखिर क्यों मिलता है लाल कपड़ा?
दरअसल, जिन तीन दिनों में माता रानी रजस्वला होती हैं, उन दिनों में मंदिर में सफेद रंग का एक कपड़ा रखा जाता है। तीन दिनों बाद इस कपड़े का रंग लाल हो जाता है।मेले के दौरान जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें ये लाल कपड़ा प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मान्यता यह भी है जब हर साल यहां कामाख्या तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं तो इस दौरान यहां अंबुबाची पर्व मनाया जाता है और इस दौरान अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा इस पर्व के समय माता के मंदिर के कपाट खुद ही बंद हो जाते हैं और इस बीच किसी भी भक्त को दर्शन की अनुमति नहीं होती और ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है।
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