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उत्तराखंड की वादियों में हैं ‘न्याय के देवता’, मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त लिखते हैं चिट्ठियां और चढ़ाते हैं घंटियां

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उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्‍योंकि इस पहाड़ी इलाके में जगह-जगह पर एक न एक मंदिर जरुर मिल जाएगा और हर मंदिर की अपनी अलग मान्यता है। ऐसे में देव भूमि उत्तराखंड में कई ऐसे चमत्कारिक मंदिर है जिनके दर्शन करने हजारों किमी से भक्त आते हैं। परन्तु, आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे चमत्कारी  मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके यहां सिर्फ चिट्ठी भेजकर भी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। जी हां, आपको सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह बिलकुल सच है कि इस मंदिर में सिर्फ चिट्ठी से भेजने से मुरादें पूरी होती है। </p>
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तो चलिए आपको बताते है इस अनोखे मंदिर के बारें में कुछ खास बातें जिसने शायद आप अब तक भी अनजान होंगे। देव भूमि उत्तराखंड की धरती पर गोलू देवता नामक क्षेत्रीय देवता का मंदिर है जो सिर्फ आस-पास के गांवों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह उत्तराखंड के अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के बीच में पड़ता है। यहां केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है।</p>
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<strong>परेशानी होने पर भेजे चिट्ठी</strong></p>
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बताया जाता है, गोलू देवता इंसाफ के देवता हैं ,जिसे भी कोई मुश्किल होती है या फिर किसी के बारे में कोई शिकायत, तो वो गोलू देवता को एक अर्जी में सब कुछ लिखकर चढ़ा देता है, इस मंदिर को घंटी वाला मंदिर भी कहते है, क्योंकि अर्जियों के साथ-साथ श्रद्धालु अपनी आवाज़ गोलू देवता तक पहुंचाने के लिए मंदिर के प्रांगण में घंटियां भी बांधते हैं।</p>
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<strong>उत्तराखंड में हैं न्याय के देवता</strong></p>
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बता दें, पूरे उत्तराखंड में गोलू देवता को  न्याय का देवता माना जाता है। जो आदमी कोर्ट- कचहरी से उम्मीद खो बैठता है, वो अपनी अर्जी गोलू देवता के दरबार में लगा देता है। अब अर्जी तो अर्जी है प्रॉपर तरीके से ही लगानी होती है। इसलिए स्टाम्प पेपर पर नोटरी वगैरह के साइन करा कर के गोलू देवता के नाम पर चिट्ठी लिखी जाती है। लेकिन कुछ लोगों का कहना ये भी है कि भगवान तो सबके मन की बात जानते हैं तो वो कागज के छोटे से टुकड़े में ही अपनी समस्या लिख कर लटका देते हैं। एक नियम ये भी है कि दूसरे की लटकायी चिट्ठी को कभी पढ़ना नहीं चाहिए।</p>
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मालूम हो , घंटियों वाले देवता गोलू देवता को घंटियों वाले देवता के रुप में भी जाना जाता हैं। कई घंटियां तो 50-60या उससे भी ज्यादा पुरानी हैं। लोग मंदिर में आकर 10रुपए से लेकर 100रुपए तक के गैर-न्यायिक स्टांप पेपर पर लिखित में अपनी-अपनी अपील करते हैं और जब उनकी अपील पर सुनवाई हो जाती है तो वे फीस के तौर पर यहां आकर घंटियां तथा घंटे बांधते हैं।</p>
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आईएन ब्यूरो

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