कला

ऐसा महल,जिसमें पहली बार इस्तेमाल हुआ था सीमेंट

मधुबनी का राजनगर। यहां कभी खंडवाला राजवंश का शासन था। मगर आज उस राजवंश की निशानियां टूटे-बिखरे और खंडहरों में तब्दील हो चुकी ड्योढी में बच गयी हैं। इस ड्योढ़ी के शिल्प और कलाकृति कभी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेरती थी। मगर,आज वक्त की धूल से यह बेहाल है। ऊपर से सरकारी उपेक्षा ने इन ऐतिहासिक भवनों की कहानियों को यहां के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ से खुरच दिया है। इस ड्योढ़ी और इमारत के बारे में कई कहानियां हैं।मगर इन कहानियों से गुज़रने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि इस शहर का निर्माण जिस राजा ने करवाया था,वह महाराजा महेश्वर सिंह के छोटे बेटे रामेश्वर सिंह थे।यह भवन अपनी पूरी शान-शौक़त और चमक के साथ कई दशकों तक खड़ा रहा, लेकिन 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया और क़ुदरत की इस मार से यह इमारत मिसमार हो गयी।

इसकी दूरी मधुबनी ज़िला मुख्यालय से तक़रीबन 15 किमी है। कभी राजनगर दरभंगा महाराज की उप राजधानी हुआ करता था। यह राज कैंपस लगभग 1500 एकड़ भू-भाग में फैला हुआ है। राज कैंपस में स्थित मंदिर और महल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूने हैं। दीवारों पर की गयी सूक्ष्म नक्कासी इस बात की गवाही देती है कि अगर इस इमारत को सहेज कर रखा जाता, तो शायद देश के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में यह शुमार होता। यहां जो कोई भी भूला-भटका चला आता है,उसे इसकी भव्यता सम्मोहित कर जाती है।

ऐसा नहीं है कि दरभंगा महाराज ने सिर्फ़ दरभंगा या राजनगर में ही भवनों और इमारतों का निर्माण कराया था। उनके निर्माण कार्य की श्रृंखला देश भर में फैली हुई है।लेकिन,राजनगार के राज कैंपस की भव्यता देखते ही बनती है। यहां का सबसे भव्य भवन नौलखा महल है। 1926 ई. में बनकर तैयार हुए इस महल के बारे में कहा जाता है कि उस समय इसे बनवाने में नौ लाख रूपये की राशि ख़र्च हुई थी। इसके निर्माण में ब्रिटिश आर्किटेक्ट डॉ. एम.ए.कोर्नी की सेवा ली गयी थी। इस महल के बारे में जो सबसे बड़ा तथ्य जुड़ा हुआ है,वह यह कि इसी भवन के निर्माण में पहली बार भारत के किसी भवन में सिमेंट का उपयोग किया गया था।

राज कैंपस में काली मंदिर भी है।इस काली मंदिर के निर्माण में नक्कासीदार संगमरमर के 22 परतों का उपयोग किया गया था। परतों के लिहाज़ से यह ताजमहल में इस्तेमाल हुए संगमरमर को भी मात देता है। उल्लेखनीय है कि ताजमहल में अधिकतम 15 परतें हैं। इस काली मंदिर में हाथीदांत का भी बेहतरीन प्रयोग हुआ है। राज कैंपस में ही गोसाउन घर,यानी देवगृह है। इसमें मिथिला पेंटिंग के अद्भुत नमूने हैं।कहा जाता है कि मिथिला पेंटिंग के सबसे पुराने प्रदर्शनों में से एक है।

जैसे ही आप राज कैंपस में प्रवेश करेंगे, आपको जगह-जगह मछली और हाथी के प्रतीक चिन्ह भी देखने को मिल जायेंगे। एक महल तो हाथी की विशाल मूर्ति के पीठ पर ही निर्मित है। कैंपस में बने नौलक्खा पैलेस का अब कुछ ही हिस्सा बचा हुआ है।लेकिन,खंडहर बन चुका यह महल आपको बाहूबली फ़िल्म की भव्यता की झलक प्रदान करता है।

कहा जाता है कि महाराजा रामेश्वर सिंह को तंत्र-मंत्र से विषेश लगाव था, लिहाजा उन्होंने राजनगर स्थित राज कैंपस में तंत्र विद्या के आधार पर कुल 11 मंदिरों का निर्माण कराया था। यहां स्थित काली मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाराजा रामेश्वर सिंह ने अपनी तंत्र साधना की पूर्णाहूति के बाद ही इसकी स्थापना की थी। काली का यह स्वरूप देश में कहीं देखने को नहीं मिलता। काली मंदिर के अलावा राज कैंपस में दुर्गा मंदिर, कामाख्या मंदिर,गिरिजा मंदिर हनुमान मंदिर और महादेव मंदिर भी है।ये सभी निर्माण कार्य आध्यात्म और वैदिक कला का अद्भुत संगम का अहसास कराता है। राजनगर के इस राज कैंपस में बड़े-बड़े तालाब भी हैं।

इस राज कैंपस का निर्माण तो महाराजा रामेश्वर सिंह ने स्वयं के लिए करवाया था, लेकिन अपने बड़े भाई महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह के निधन के बाद वह विक्षुब्ध हो गये और फिर हमेशा के लिए दरभंगा चले गए। 1870 में बने इस राज कैंपस को 1934 में आए भूकंप से भारी क्षति पहुंची थी। मगर,महाराजा रामेश्वर सिंह के दरभंगा चले जाने के कारण इसके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया, और आज़ादी के बाद लगातार सरकारी उपेक्षा का शिकार होता रहा यह राज पैलेस बदहाली की स्थिति में पहुंचता चला गया। इस समय राज पैलेस में SSB के 18वीं बटालियन का मुख्यालय है। इस कैंपस में एक कॉलेज,हाईस्कूल, प्रखंड मुख्यालय के साथ साथ पुलिस स्टेशन भी हैं।

जिस बिहार की हुक़ूमत साधनों का रोना रोती है,उसी बिहार के चप्पे-चप्पे पर इतिहास और पुराणों की दस्तक है।अगर इस दस्तक की आवाज़ सुनी जाए,तो बिहार में प्रशासन और सरकार की बहार के बदले पर्यटन और रोज़गार की बहार आ सकती है और पलायन का दर्द सह रहे यहां के नौजावनों को कहीं और जाने से छुटकारा मिल सकता है।निस्संदेह राजनगर जैसी ऐतिहासिक इमारतें पूरे देश में फैली हुई है और पुरातत्व विभाग की थोड़ी सी भी दृष्टि इस तरफ़ जाती है,तो एक नये बिहार के साथ-साथ एक नये भारत के सपने को साकार करने में भी मदद मिल सकती है।

Brajendra Nath Jha

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