गजब की चित्रकारी, अद्भुत कलाकृतियों का नमूना पेश करता ये है हिन्दुस्तान का बेहतरीन चित्रकार, राजा रवि वर्मा। जिसने अपने पेंटिंग के जरिये भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों को कुछ इस तरह केनवास पर उकेरा कि वो जीवंत हो उठे। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिन्दू महाकाव्यों और धर्मग्रंथों पर बनाये गये वो चित्र हैं, जो पूरे विश्व में हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल दर्शाते हैं।
राजा रवि वर्मा का जन्म 21 अप्रैल 1848 को केरल के एक छोटे से शहर किल्लीमानूर में हुआ था। 5 साल की छोटी सी उम्र में ही उनके घर की दीवारें उनकी कला का बखूबी परिचय देती थीं। जिन्हें वो दैनिक जीवन की घटनाओं से लिया करते थे। उनके चाचा राजा राजा वर्मा ने उनकी कला और प्रतिभा को पहचानकर चित्रकला की प्रारंभिक शिक्षा दी। महज 14 साल की आयु में वो उन्हें थिरुवनंतपुरम ले गये, जहां राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई। बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिये उन्होंने मैसूर,बड़ौदा औऱ देश के अन्य भागों की यात्रा की । लेकिन उनकी इस सफलता का श्रेय बहुत हद तक उनकी कला शिक्षा को भी जाता है। राजा रवि वर्मा की खासियत थी कि उन्होंने पहले पारंपरिक तंजावुर कला में महारत हासिल की, साथ ही यूरोपीय कला का भी अध्ययन किया।
उनकी चित्रकला के पीछे मदुरा के चित्रकार अलाग्री नायडू और विदेशी चित्रकार थियोडोर जेंसन का भी हाथ था। यही वो लोग थे जिन्होंने रवि वर्मा को ये शिक्षा दी थी। ये दोनों यूरोपीय शैली के कलाकार उस दौर में भारत भ्रमण के लिये आये थे।
इनकी सीख ने श्री वर्मा की चित्रकला को दो तरह की शैलियों से परिपूर्ण किया, जो उनकी पेंटिंग्स में साफतौर पर दिखाई देती हैं। रवि वर्मा ने लगभग 30 साल भारतीय चित्रकला की साधना में लगाये। बंबई में लीथोग्राफ प्रेस खोलकर उन्होंने अपने चित्रों को प्रकाशित किया। उनके चित्रों में हमेशा विविधता देखी गयी है। जिनमें पौराणिक विषयों के चित्र ज्यादा शामिल हैं। भारत तो क्या विदेशों में भी राजा रवि वर्मा के चित्रों ने काफी धूम मचाई, जिस वजह से उनका सम्मान देश के बाहर भी काफी बढ़ा और कई पुरस्कारों से भी नवाज़े गए।
पौराणिक वेशभूषा के सच्चे स्वरूप के अध्ययन के लिये उन्होंने पूरी दुनिया की खाक छानी और अपनी कला में निखार पैदा किया। उनकी कलाकृतियों को 3 प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है,जिनमें नेचुरल या पोर्टरेट पहली श्रेणी में आते हैं फिर दूसरी श्रेणी में मानवीय आकृतियों वाले चित्र हैं और तीसरी इतिहास और पुराण की घटनाओं से संबंधित चित्रकारी है।
वैसै तो आम जनता के बीच राजा रवि वर्मा की लोकप्रियता इतिहास पुराण और देवी देवताओं के चित्रों के कारण हुई, लेकिन उनकी बनाई ऑयल पेंटिंग्स ने उन्हें विश्व का सबसे मशहूर चित्रकार बना दिया। आज तक तैल रंगों में उनकी जैसी सजीव प्रकृतियां बनाने वाला कोई दूसरा कलाकार पैदा नहीं हुआ। राजा रवि वर्मा की पेटिंग्स आज भी चाहने वालों की आंखों को सुकून दे रहा है।
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