अर्थव्यवस्था

बढ़ती युवा आबादी: विकास के लिहाज़ से चीन पस्त,भारत मस्त

अब आधिकारिक तौर पर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत क्या आने वाले वर्षों में अपनी विकास गति को बनाये रख सकता है ? तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए भारत की अर्थव्यवस्था में 2022-23 में चीन की 3 प्रतिशत की तुलना में 2022-23 में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्लेषकों ने कहा कि खपत में वृद्धि भारत के लिए विकास चालकों में से एक है। और जैसा कि भारत का लक्ष्य 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के निशान को छूना है, ऐसे में खपत बढ़ाने में इसकी युवा आबादी की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

हाल ही में एक ई एंड वाई रिपोर्ट में कहा गया है कि अपेक्षाकृत युवा आबादी (28.4 वर्ष की औसत आयु) वाले भारत को न केवल कार्यबल के मामले में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलता है, बल्कि एक युवा आबादी की उपभोग शक्ति को उजागर करने का अवसर भी मिलता है।

इसमें कहा गया है कि भारत की लगभग 26 प्रतिशत जनसंख्या 14 वर्ष से कम आयु की है, 67 प्रतिशत 15 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के बीच है। केवल 7 प्रतिशत 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं।

 

आइये अब इसकी तुलना चीन से करें

चीन में 2020 में 60 या उससे अधिक आयु के लोगों का अनुमानित प्रतिशत 18.7 था। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2040 तक यह बढ़कर 28 प्रतिशत हो जायेगा। गिरती जन्म दर के साथ यह बीजिंग के लिए चिंता का कारण बन गया है।

2022 में चीन ने प्रति 1,000 लोगों पर सिर्फ़ 6.77 जन्म दर्ज किए –चीन के पूरे इतिहास में यह सबसे कम जन्म दर है। पिछले वर्ष में प्रति 1000 लोगों पर 7.52 जन्म थे।

E&Y रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत दुनिया में मानव संसाधन का सबसे बड़ा प्रदाता बना रहेगा। अगले दशक में वृद्धिशील वैश्विक कार्यबल का लगभग 24.3 प्रतिशत भारत से आयेगा।

रिपोर्ट में कहा गया है, “यह विकसित दुनिया में तेज़ी से बढ़ती आबादी को देखते हुए महत्वपूर्ण है, जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रम आपूर्ति के लिए संभावित चुनौतियां पैदा कर रहा है।”

इस बीच हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) ने बताया है कि एक व्यापक जनसांख्यिकीय असंतुलन के परिणामस्वरूप कम जन्म दर के साथ-साथ तेज़ी से उम्र बढ़ने वाली आबादी  दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को पीड़ित कर रही है, जो लंबे समय से एक विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश से लाभान्वित रहा है।

उस रिपोर्ट में कहा  गया है,”और यह किस तरह चीन की आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित करेगा, यह तो अति सूक्ष्मता से भरा एक गर्मागर्म बहस का विषय है।”

2021 में बीजिंग ने अपनी दो-बच्चे की नीति को हटा दिया था और विवाहित जोड़ों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी थी। लेकिन, जानकारों का कहना है कि हो सकता है कि यह नीति काम न करे।

चीन ने 2015 में अपनी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया था।  जोड़ों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी गयी थी,लेकिन परिणाम उल्लेखनीय नहीं रहा। चीन के एक विशेषज्ञ ने कहा है कि देश के भीतर अनिश्चितता में वृद्धि ने कई जोड़ों को बच्चे पैदा न करने या सिर्फ एक पैदा करने का एक अघोषित नियम दे दिया है।

बढ़ती उम्र की आबादी ने चीन में घरेलू मांग को प्रभावित किया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) द्वारा संकलित देश का मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) अप्रैल के 49.2 से घटकर मई में 48.8 रह गया, जो कि इस साल सबसे कम है। दिसंबर में ड्रैगन का मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 47 पर रहा था।

पीएमआई का 50 से नीचे होना दबाव को दर्शाता है।

 

चीन की अन्य समस्यायें

बेरोज़गारी और धीमे निर्यात ने भी चीन में विनिर्माण को प्रभावित किया है।

आईएनजी में ग्रेटर चीन के मुख्य अर्थशास्त्री आइरिस पैंग ने एससीएमपी के हवाले से कहा है, “यह तेज़ी से स्पष्ट हो रहा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी चीन के निर्यात पर दबाव डाल रही है।”

पिछले महीने इस समाचार संगठन ने बताया कि श्रेणी के तहत निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों में स्मार्टफ़ोन, कंप्यूटर और एकीकृत सर्किट शामिल हैं, और घटती मांग के बीच महीनों से शिपमेंट में गिरावट आ रही है।

उद्योग मंडल के एक सदस्य ने कहा कि कई देशों में चीन से आपूर्ति बढ़ाने की आशंका बढ़ रही है।

उन्होंने कहा,“कोविड के बाद के समय में कई देश आक्रामक रूप से अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की तलाश कर रहे हैं और बीजिंग अपनी ताइवान नीति और अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध को लेकर सुर्खियों में आ रहा है.. कई देशों द्वारा चीन से उत्पादों को आयात करने के लिए अनिच्छा बढ़ रही है।” उन्होंने कहा कि कारखाने के उत्पादन में मंदी का रोज़गार पर प्रभाव पड़ना तय है।

आर्थिक कारकों ने विशेष रूप से 16 से 24 वर्ष की आयु के लोगों के लिए बेरोज़गारी में वृद्धि की है। इस आयु वर्ग के बीच बेरोज़गारी अप्रैल 2019 में कोविड 19 महामारी के प्रकोप से पहले लगभग 20.4 प्रतिशत बढ़कर लगभग 10 प्रतिशत हो गयी थी।

इसलिए, चीन के स्थिर और सतत आर्थिक विकास के लिए सामाजिक मुद्दों को सुलझाना महत्वपूर्ण होगा।

Mahua Venkatesh

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