अगर आने वाले हफ़्तों में बारिश जारी रही, तो मानसून के आगमन में देरी से ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। किसान संगठनों ने कहा कि चावल, रागी बाजरा के अलावा सोयाबीन और दालों की बुआई तय कार्यक्रम के अनुसार शुरू हो गयी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका भारत की खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, अगले कुछ हफ़्तों में मानसून का पैटर्न भी महत्वपूर्ण होगा। मानसून में देरी और देश के अधिकांश हिस्सों में बारिश के कारण कुछ खाद्य पदार्थों की क़ीमतें लगभग 5 से 15 प्रतिशत तक बढ़ गयी हैं, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि मानसून अच्छी तरह से आगे बढ़ने के साथ ही जून के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति कम रहने की उम्मीद है।
महाराष्ट्र स्थित किसान संघ शेतकारी संगठन के वरिष्ठ नेता अनिल घनवत ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “मानसून में देरी कोई नयी बात नहीं है..ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। अभी तक कोई चिंता की बात नहीं है, फ़सलों की बुआई अभी शुरू हो गयी है और जुलाई के मध्य तक अगर बारिश होती रही, तो हमें चिंता करने की ज़रूरत भी नहीं होगी।” उल्लेखनीय है कि ख़रीफ़ या ग्रीष्मकालीन फ़सलों की कटाई आमतौर पर अक्टूबर में की जाती है।
भारत में लगभग 60 प्रतिशत चावल की बुआई ख़रीफ़ सीज़न के दौरान होती है। चावल का शेष उत्पादन रबी चक्र के दौरान सर्दियों के महीनों में होता है। इस वर्ष बाजरे की बुआई काफी बढ़ गयी है।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, मानसून अब तक भारत के 80 फ़ीसदी हिस्से को कवर कर चुका है। आज जारी भारतीय स्टेट बैंक के मानसून प्रभाव सूचकांक में कहा गया है कि भले ही समग्र आधार पर मानसून कमज़ोर है, लेकिन अनाज उत्पादक राज्यों में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष पर्याप्त वर्षा हुई है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “हम मानसून के विकास पर कड़ी नज़र रख रहे हैं। हालांकि, इस बिंदु पर ख़तरे की घंटी बजाने की कोई ज़रूरत नहीं है, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि भारत पर्याप्त से अधिक बफ़र स्टॉक के साथ प्रतिकूल स्थिति को संभालने के लिए बेहतर रूप से तैयार है।”
देश के फ़सल वर्ष 2022-23 की जुलाई से जून की अवधि में चावल, गेहूं, सोयाबीन, मक्का, रेपसीड, सरसों और गन्ने के उत्पादन में वृद्धि के कारण खाद्यान्न उत्पादन 5 प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड 330.53 मिलियन टन हो गया था।
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