मॉस्को के तेल उत्पादन में कटौती के फ़ैसले के बावजूद रूस से भारत की कच्चे तेल की आपूर्ति बरक़रार रहने या बढ़ने की उम्मीद है। रूस पहले ही कह चुका है कि वह अपने दैनिक उत्पादन में धीरे-धीरे 500,000 बैरल की कमी करेगा। अब उसने कहा है कि ओपेक प्लस ब्लॉक द्वारा लिए गए निर्णय का पालन करने के लिए उत्पादन में कटौती 2024 में भी जारी रहेगी।
रूसी समाचार एजेंसी TASS ने बताया कि रूसी उप-प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा कि कुछ ओपेक + देशों द्वारा तेल उत्पादन में स्वैच्छिक कमी की प्रतिबद्धताओं का सम्मान किया जाएगा।
स्कोल्कोवो इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंडिया स्टडीज़ के इमर्जिंग मार्केट स्टडीज़ की प्रमुख लिडिया कुलिक ने इंडिया नैरेटिव कहा, “रूस तेल और गैस तथा उर्वरक के उत्पादन में कटौती कर सकता है, लेकिन यह एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है और निश्चित रूप से भारत की ज़रूरत और भारत की लागत की क़ीमत पर नहीं ।”
2022 में भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात 10 गुना बढ़ गया।
एस एंड पी ग्लोबल का कहना है कि 2021 में रूसी तेल में भारत के कच्चे तेल के कुल आयात का सिर्फ़ 2 प्रतिशत शामिल था। लेकिन, अब यह भारतीय कच्चे तेल के आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है -यह अनुमानित अधिकतम 40-45 प्रतिशत के क़रीब है, जिसे रिफ़ाइनर तकनीकी रूप से कच्चे तेल की गुणवत्ता को देखते हुए संसाधित कर सकते हैं। नोवाक ने एक साक्षात्कार में कहा था कि रूस ने भारत को 32 मिलियन टन तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति की है।
रूसी समाचार एजेंसी टीएएसएस ने नोवाक के हवाले से कहा, “पहले हम भारत को लगभग उन उत्पादों की आपूर्ति नहीं करते थे, जबकि पिछले साल निर्यात कुल 32 मिलियन टन था, और वे इस साल और भी अधिक होंगे।”
मॉस्को से भारत का सीबोर्न क्रूड का आयात चीन से भी ज़्यादा है। चीन अब दूसरे स्थान पर है।
तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा, रूस जल्द ही भारत के खनिजों के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन सकता है, रुपये-रूबल भुगतान तंत्र पर चल रही गड़बड़ियों के बावजूद दुर्लभ भू-तत्व भी शामिल हैं।
यह देखते हुए कि प्राकृतिक संसाधन भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार के सर्वोपरि तत्वों में से एक रहेंगे, कुलिक ने इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक लेख में कहा है कि यह दुर्लभ और अलौह धातुओं की आपूर्ति के साथ पूरक होगा, जो जलवायु-मित्र प्रणाली संक्रमण के लिए अपरिहार्य है।
कुलिक ने लिखा है, “..जहां भारत का उद्देश्य हरित और स्वच्छ अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है, न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे वैश्विक दक्षिण और दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण मिशन है,वहीं यहां भी सहयोग के नए रास्ते होंगे। प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा साझेदारी को निकल, तांबा, कोबाल्ट, लिथियम और अन्य दुर्लभ और ग़ैर-लौह धातुओं की आपूर्ति के साथ पूरक होने की संभावना है, जो जलवायु-मित्र प्रणालियों में परिवर्तन के लिए अपरिहार्य हैं।”
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