अर्थव्यवस्था

Silent Transformation: मीडिया की चमक से दूर ख़ामोशी से बदल रहा है भारत का ग्रामीण भारत

Silent Transformation:ख़राब और असमान मानसून के बावजूद ट्रैक्टर या अन्य तेज़ गति से चलने वाली उपभोक्ता वस्तुओं की मांग क्यों बढ़ रही है ? विशेषज्ञों का कहना है कि विशेष रूप से बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने के साथ सरकारी खर्च में वृद्धि, जिसमें देश भर में सड़कों और राजमार्गों का निर्माण, विद्युतीकरण और डिजिटल परिवर्तन शामिल हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मज़बूती के प्रमुख कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में ग़ैर-कृषि आय स्तर और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में ऋण तक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

इससे पहले डेलॉइट इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी बताया गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यम आय वाले परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

इस वर्ष के केंद्रीय बजट में सरकार ने पूंजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि की है, यह 7.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसका कई गुना प्रभाव दिखना शुरू हो गया है, जिससे उत्पादकता, आय स्तर, रोज़गार में बढ़ोतरी हो रही है और साथ ही संरचनात्मक रूप से मुद्रास्फीति भी कम हो रही है।

“ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदल रही है। हालांकि, इस साल असमान मानसून का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कुछ प्रभाव ज़रूर पड़ेगा, लेकिन कुल मिलाकर स्थिति स्थिर बनी हुई है। सरकारी ख़र्च बढ़ने के कारण आने वाले महीनों में छोटे शहरों और गांवों में ख़र्च बढ़ने की संभावना है। ग्रामीण विपणन संघ के सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष संजय कौल ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “आने वाले राज्य और आम चुनावों से भी ख़र्च बढ़ेगा।”

कौल ने कहा कि जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से नक़दी आधारित बनी हुई है,वहीं एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) ने बहुत कम लागत पर धन हस्तांतरण या घरेलू प्रेषण को लगभग त्वरित बना दिया है। उन्होंने कहा, “मोबाइल फ़ोन के बढ़ते उपयोग ने यूपीआई को बढ़ावा दिया है, जिससे उपभोक्ताओं के हाथों में धन का प्रवाह बढ़ा है।”

सरकार ग्रामीण क्षेत्र पर सीधे लक्षित कई योजनायें भी चला रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए), दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम), राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) कई ऐसे ही चल रहे कार्यक्रमों में कुछ कार्यक्रम हैं।

एक अन्य विश्लेषक ने कहा कि प्रत्यक्ष लाभ योजनायें लक्षित दर्शकों तक भी पहुंची हैं, जिससे लोगों के हाथों में अधिक पैसे आये हैं।

डिस्पोजेबल आय में वृद्धि से कार्यबल में महिला भागीदारी में वृद्धि के कारण ग्रामीण बाज़ारों में आकांक्षा स्तर में वृद्धि हुई है। उनमें से बड़ी संख्या केवल एक “नौकरी” तक ही सीमित नहीं है। अब अधिक से अधिक लोग वैकल्पिक आय स्रोतों पर स्थापित होने की दिशा में खुले दृष्टिकोण के साथ कई रोज़गार चैनलों में संलग्न हो रहे हैं।

विश्लेषक का कहना है,“दिन के समय कृषि क्षेत्र में लगा एक व्यक्ति आम तौर पर शाम को किसी अन्य लाभकारी गतिविधि में संलग्न हो जाता है। ये गतिविधियां कुछ भी हो सकती हैं,जैसे कि हस्तशिल्प वस्तुएं, पेंटिंग, बुनाई या यहां तक कि अचार या तेल बनाने जैसे काम।”

बिहार के रहने वाले एक प्रवासी मज़दूर ने कहा, “यदि आप देखें तो उनमें से कई खेती या यहां तक कि खाना पकाने पर ध्यान देने के साथ यूट्यूब चैनल खोलने की कोशिश कर रहे हैं।” कमाई के अवसर कई गुना बढ़ गये हैं और लोगों की मानसिकता बदल रही है। वे प्रयोग करने के लिए अधिक स्वतंत्र हैं।”

90 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण परिवारों के पास अब बैंक खाते हैं, जिससे उनके लिए औपचारिक चैनलों के माध्यम से ऋण प्राप्त करने के अवसर का लाभ उठाते हुए अपने वित्त को संभालना आसान हो जाता है, भले ही अनौपचारिक चैनल उधार जारी रखे हुए है।

हालांकि, अधिकांश नौकरियाँ प्रकृति में स्थायी नहीं हैं, जिससे नीति निर्माताओं के लिए वास्तविक रोज़गार और आय डेटा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।

भारत अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को छूने का लक्ष्य बना रहा है।ऐसे में भारत को अपने ग्रामीण क्षेत्र पर बड़ा दांव लगाना होगा, जहां 65 प्रतिशत आबादी रहती है।

कौल के अनुसार, आने वाले वर्षों में भारत का विकास संचालक शहरी नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र होगा।

Mahua Venkatesh

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