Transforming India:ग्रामीण भारत में महिलायें रूढ़िवादिता को तोड़ रही हैं।उनमें से अधिक से अधिक महिलायें प्रमुख निर्णय निर्माताओं के रूप में कार्यभार संभाल रही हैं। हालांकि, हाल तक अधिकांश महिलायें मुख्य रूप से कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में ही लगी हुई थीं, लेकिन अब वे अपनी आय के स्तर को बढ़ाने के उद्देश्य से आक्रामक रूप से उद्यमशीलता की भूमिकाओं पर विचार कर रही हैं। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में प्रति व्यक्ति महिला जमा की गयी राशि में 4,618 रुपये की वृद्धि हुई है, जिससे आर्थिक स्वतंत्रता के साथ-साथ वे सशक्त बनी हैं।
बढ़ती आकांक्षाओं के स्तर के साथ कई महिलायें, जो खेती में शामिल नहीं हैं, वे अब वैकल्पिक रोज़गार के अवसर भी तलाश रही हैं।
और कई लोग इस उद्देश्य के लिए बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं।
ऋण, प्रौद्योगिकी तक आसान पहुंच, विश्व बैंक जैसी बहुपक्षीय एजेंसियों के अलावा स्वयं सहायता समूहों और ग़ैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) जैसे अन्य संस्थानों द्वारा अधिक सक्रिय दृष्टिकोण और प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत शून्य ब्याज़ बैंक खातों का तेज़ी से विस्तार। ये कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे ग्रामीण भारत में महिलाओं के लिए बदलाव की शुरुआत हुई है।
इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर (एफएलएफपीआर) 2018-19 में 19.7 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 27.7 प्रतिशत हो गयी है। विश्लेषकों ने कहा कि यह आंकड़ा और बढ़ गया है।
एक्सचेंज4मीडिया के सहयोगी प्रकाशन रियलिटी+ के अनुसार, भारतीय कृषि में तेज़ी से महिलाकरण के कारण वास्तव में स्वाभाविक रूप से और साथ ही रणनीतिक रूप से उद्यमी बनने का विकल्प चुनने वाली महिला किसानों की संख्या में वृद्धि हुई है।
दरभंगा स्थित उद्यमी कलापा झा का मामला लीजिए। झा ने अपनी भाभी उमा झा के साथ अक्टूबर 2020 में बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र से घर में बने अचार और चटनी का एक ब्रांड झाजी स्टोर लॉन्च करने का फ़ैसला किया, जब देश कोविड-19 लहर के बीच तीव्र आर्थिक दबाव से जूझ रहा था। झा बहुएं अब न केवल अपने परिवार के लिए मुख्य रोटी कमाने वाली सदस्य हैं, बल्कि वे रोज़गार सृजनकर्ता भी हैं।
आश्चर्य की बात नहीं है कि इससे सभी राज्यों में महिलाओं की आय में वृद्धि हुई है। आर्थिक स्वतंत्रता ने उन्हें ख़र्चों पर निर्णय लेने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “निश्चित रूप से ये उद्यमी महिलाओं को काम पर रखते हैं और हालांकि, वेतन महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है, लेकिन यह काम करने वालों को अतिरिक्त पैसा कमाने की अनुमति देता है।”
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि इस वर्ष के दौरान कुल जमा में व्यक्तियों की हिस्सेदारी में गिरावट आयी, लेकिन 2022-23 में कुल जमा में महिला ग्राहकों की हिस्सेदारी बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गयी। यह महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार द्वारा संचालित कई योजनाओं और कार्यक्रमों के कारण संभव हुआ है। कुल ग्रामीण जमा में महिला जमा की हिस्सेदारी महामारी के बाद की अवधि में बढ़कर 2018-19 में 25 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 30 प्रतिशत हो गयी।
कुल पीएमजेडीवाई लाभार्थियों में से 55 प्रतिशत से अधिक महिलायें हैं।
हालांकि, तस्वीर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है, ग्रामीण भारत में परिवर्तन शुरू हो गया है, लेकिन गति पकड़ने के लिए अधिक महिलाओं को ग्रामीण इलाक़ों में आर्थिक सशक्तिकरण की उभरती प्रवृत्ति में शामिल होना होगा।
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