क्या महिला किसानों की बढ़ती संख्या अब ग्रामीण उपभोक्ता मांगों को बढ़ा रही है ? जहां सभी महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों में महिला कर्मचारियों की संख्या 62.9 प्रतिशत है,वहीं उनमें से एक बड़ी संख्या औपचारिक तरीक़ों से आसान ऋण सुलभता वाले वैकल्पिक आय स्रोतों को स्थापित करने के विचार के साथ खिलवाड़ कर रही है। 95 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण परिवारों के पास अब बैंक खाते हैं, जिससे उनके लिए औपचारिक तरीक़ों से ऋण प्राप्त करने के अवसर का दोहन करते हुए अपने वित्त को संभाल पाना आसान हो जाता है, भले ही उनका अनौपचारिक चैनलों से उधार लेना अब भी जारी है। यह उन्हें ख़र्च करने को लेकर निर्णय लेने में प्रमुख हितधारक भी बनाता है।
इंडिया टुडे के एक सर्वेक्षण ने हाल ही में ख़ुलासा किया है कि आज उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत स्टार्टअप महिलाओं के नेतृत्व में हैं। उत्तराखंड के मुक्तेश्वर की एक महिला उद्यमी, जिन्होंने अभी-अभी इस क्षेत्र के स्थानीय उत्पाद बेचने का अपना व्यवसाय शुरू किया है,उन्होने इंडिया नैरेटिव को बताया,”यद्यपि इन उद्यमों में से कई वास्तव में पुरुषों द्वारा चलाए जा सकते हैं- महिलायें उन व्यवसायों के लिए केवल आधिकारिक उधारकर्ता हो सकती हैं, जिन्हें उनके पति या पिता चलाते हैं- महिला ऋण लेने वालों की बढ़ती संख्या उत्साहजनक है, क्योंकि अंततः यह उनके लिए एक अवसर खोलता है और उन्हें एक आवाज़ मिलती है।”
उन्होंने कहा,“मैं पर्यटकों को स्थानीय उत्पाद बेचने का अपना छोटा व्यवसाय चलाती हूं, मेरे पति शो चलाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। लेकिन, वास्तविकता यह है कि मुझे ऋण मिल गया है और यह मेरा बैंक खाता भी है, मेरे पास बराबरी की आवाज़ है। ग्रामीण परिदृश्य में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हो रहे हैं।”
एक्सचेंज4मीडिया के एक सिस्टर पब्लिकेशन रियलिटी+ ने कहा कि भारतीय कृषि के तेज़ी से हो रहे इस नारीकरण ने वास्तव में स्वाभाविक रूप से और साथ ही रणनीतिक रूप से उद्यमी बनने के लिए महिला किसानों की संख्या में वृद्धि कर दी है।
बैन एंड कंपनी जिसने भारत में महिला उद्यमिता पर Google के लिए एक रिपोर्ट तैयार की है,उसने अनुमान लगाया है कि महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों की संख्या 13.5 और 15.7 मिलियन के बीच होगी, जो सभी भारतीय उद्यमों का 20 प्रतिशत है, लगभग 22-27 मिलियन को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करती है।”
नीति आयोग ने एक रिपोर्ट में कहा है कि कृषि में ग्रामीण महिला कार्यबल को सशक्त बनाने और मुख्यधारा में लाने से आर्थिक विकास की दिशा में आदर्श बदलाव लाया जा सकता है।उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “इससे खाद्य और पोषण सुरक्षा बढ़ेगा और ग़रीबी और भूख कम होगी। यह 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक जीत की रणनीति है।”
इस बीच मोतीवाल ओसवाल की रिपोर्ट इकोस्कोप ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में ग्रामीण ख़र्च में साल-दर-साल (Y-o-Y) 5.3 प्रतिशत का विस्तार हुआ, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 0.6 प्रतिशत था। हालांकि, अप्रैल से जून तिमाही में 6.5 प्रतिशत और जुलाई-सितंबर तिमाही में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि के बाद चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान ग्रामीण खपत कम होकर 4.6 प्रतिशत हो गयी है।
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