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Happy Birthday Manoj: डायरेक्टर ने फाड़ दी थी तस्वीर, खाने के लिए पैसे नहीं थे, झोड़ दिया था हीरो बनने का…

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हिंदी सिनेमा जगह में मनोज बाजपेयी ने अपनी अगल ही पहचान बना ली है। उनकी कलाकारी के दिवाने न सिर्फ देश बल्कि, दुनिया में है। मनोज बाजपेयी बॉलीवुड के ऐसे करलाकार हैं जिन्होंने अभियनय से बड़े पर्टे पर अमिट छाप छोड़ी है। अपनी फिल्मों में उन्होंने ऐसी कलाकारी की कि लोग रातों-रात उनका अदाकारी के दिवाने हो गए हैं उसके बाद उनके फैंस की संख्या बढ़ती गई। 23 अप्रैल 1969 को बिहार के नरकटियागंज में पैदा हुआ मनोज बाजपेयी का बचपन से ही एक्टर बनने का सपना था। 17 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना गांव छोड़दर पढ़ने के लिए दिल्ली आ गए। जहां कॉलेज से ही उन्होंने थियेटर करना शुरू कर दिया। मनोज बाजपेयी का आज जन्मदिन है। आईए उनके बर्थडे पर जानते हैं उनके बारे में।</p>
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<strong>तीन बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में रिजेक्ट हुए</strong></p>
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नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में मनोज बाजपेयी को एक-दो बार नहीं बल्कि तीन बार रिजेक्ट कर दिया गया था। इसका उनको गहरा सदमा लगा। उन्होंने एक बार तो अपनी जान देने की भी कोशिश की, लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हें समझाया। इसके बाद उन्होंने बैरी ड्रामा स्कूल में बैरी जॉन के साथ थियेटर किए। बैरी जॉन मशहूर थिएटर निर्देशक व अध्यापक हैं। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, शुरुआत के एक चॉल में वो पांच दोस्तों के साथ रहते थे। काम खोजते थे, कोई रोल नहीं मिला। एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने उनकी तस्वीर तक फाड़ दी थी और एक ही दिन में उन्होंने तीन प्रोजेक्ट खो दिए थे। पहले शॉट के बाद उनसे वहां से निकल जाने के लिए कहा। क्योंकि, वो एक आइडल हीरो की तरह नहीं दिखते थे और उन्हें भी लगने लगा था कि वो कभी बॉलीवुड का हिस्सा नहीं बन पाएंगे।</p>
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इसके अलावा अपने नाम को लेकर उनका कहना था कि, मनोज नाम बिहार में बहुत कॉमन है। मनोज टायरवाला, मनोज भुजियावाला, मनोज मीटवाला और ना जाने क्या -क्या। ऐसे बहुत सारे मनोज आपको मिलेंगे बिहार में। मैंने ये सोचा था कि मैं अपना नाम बदलूंगा। मैंने अपने लिए एक नया नाम भी सोच लिया था। ये नाम था समर। थिएटर के ज़माने में नाम बदलने के बारे में सोचा तो सबने कहा कि एक एफिडेविट बनवाना पड़ेगा। अखबार में विज्ञापन देने होंगे। यह सब कानूनी प्रक्रिया थी। उस वक़्त पैसे नहीं थे तो ये कार्यक्रम स्थगित हो गया। बैंडिट क्वीन के लिए जब धन मिला तो सोचा कि अब नाम बदलता हूं, लेकिन तब मेरे भाई ने कहा कि यार आप कमाल करते हो। आपकी पहली फिल्म देखेंगे लोग तो मनोज बाजपेयी और बाद में कुछ और नाम? तो मैंने सोचा कि अब जो हो गया, बॉस हो गया।</p>
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मनोज बाजपेयी को पहचान तो फिल्म बैंडिट क्वीन से ही मिल गई थी। लेकिन, वो जिस पहचान के हकदार थे वो राम गोपाल वर्मा की फिल्म सत्ता में भीकू म्हात्रे के निभाए किरदार से मिली और यहीं से शुरू होता है मनोज बाजपेयी का करियर। भीखू म्हात्रे के किरदार के लिये उन्हे कई पुरस्कार मिले। उस दौरा में उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि, उन्हें एक वडा पाव भी महंगा लगता था उनका कहना है कि, लेकिन पेट की भूख मेरे सफल होने की भूख को हरा नहीं पाई। चार सालों तक स्ट्रगल करने के बाद मुझे महेश भट्ट के निर्देशन में बने धारावाहिक स्वाभिमान में रोल मिला। मुझे हर एपिसोड के लिए 1500 रुपये मिलते थे, मेरी पहली सैलरी।</p>
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साल 1999 मे आई फिल्म 'शूल' मे उनके किरदार समर प्रताप सिंह के लिए उन्हे फिल्मफेयर का सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार मिला। अमृता प्रीतम के मशहूर उपन्यास 'पिंजर' पर आधारित फिल्म पिंजर के लिए उन्हें एक बार फिर से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। मनोज बाजपेयी कई सुपरहिट फिल्में दी है। उन्होंने कलाकार, दाउद, तम्मना, सत्या, प्रेम कथा, कौन, शूल, फिजा, दिल पे मत ले यार, पिंजर, एलओसी कारगिल, वीर-जारा, जेल आदि में दमदार अदाकारी से लोगों के दिल पर राज किया है। पर्सनल लाइफ के बारे में बात करें तो कहा जाता है कि, उन्होंने दो शादियां की। पहले शादी उनकी सफल नहीं रही। मनोज ने एक्ट्रेस शबाना रजा उर्फ नेहा से साल 2006 में शादी की थी। कहा जाता है कि फिल्म सत्या के प्रीमियर पर मनोज बाजपेयी और शबाना रजा की पहली मुलाकात हुई थी। लगभग 8 सालों तक एक दूसरे को डेट करने के बाद कपल ने 2006 में शादी कर ली थी। दोनों की एक छोटी सी बेटी है जिसका नाम अवा है।</p>
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आईएन ब्यूरो

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