तुर्की की ड्रामा सीरीज 'डिरिलिस एर्टुग्रुरुल' पाकिस्तान में सबसे ज्यादा देखी और पसंद की जाने वाली सीरीज है। हालांकि पाकिस्तान के सबसे बड़े इस्लामिक शिक्षण संस्थान ने घोषणा की है कि सीरीज देखना शरिया के खिलाफ है।
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सभी पाकिस्तानियों को यह सीरीज देखने की बात कही थी, क्योंकि उनके अनुसार, इसमें मुस्लिम दुनिया के लिए एक महान संदेश है।
इसके उर्दू डब संस्करण के बाद यह सीरीज पाकिस्तानी स्टेट टेलीविजन स्क्रीन पर हिट हो गई, इसकी दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसकी सराहना देश के सभी हिस्सों में हुई। कुछ ही समय में पाकिस्तान में इसकी ऑनलाइन दर्शकों की संख्या 10 लाख से अधिक हो गई थी।
दावा किया गया है कि इस ड्रामा सीरीज ने अभी तक तीन अरब से अधिक व्यूज प्राप्त कर लिए हैं और इसे 39 भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है। यही नहीं वैश्विक ड्रामा के इतिहास में सबसे अच्छी नाटकीय सीरीज के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में भी इसे स्थान मिलने का दावा किया गया है।
तुर्की द्वारा पाकिस्तान को उपहार में दी गई ड्रामा सीरीज, ऑनलाइन या टेलीविजन पर देखी जाने वाली सबसे पसंदीदा सीरीज बन गई है। रिकॉर्ड बताते हैं कि अब तक कम से कम 13.32 करोड़ पाकिस्तानियों ने इसे देखा है। इससे यह साबित होता है कि यह सीरीज पाकिस्तान में किसी भी अन्य ड्रामा, फिल्मों या डॉक्यूमेंट्री की तुलना में सबसे अधिक देखी और सराही गई है।
हालांकि वैश्विक स्तर पर हिट हो चुकी तुर्की सीरीज पर पाकिस्तानी समाज के धार्मिक वर्ग का एक अलग ही ²ष्टिकोण है।
हालिया घटनाक्रम की बात करें तो कराची के जमीअतुल उलूम इस्लामिया अल्लामा मुहम्मद यूसुफ बनुरी टाउन ने नाटकों या फिल्मों को देखना इस्लाम बताया है, जिसके तुर्की की सीरीज भी शामिल है।
पाकिस्तान के सबसे बड़े इस्लामी शिक्षण संगठनों में शुमार संस्थान ने फतवा जारी किया है और कहा है कि तुर्की ड्रामा सीरीज में ओटोमन खलीफा के इतिहास का विवरण है और इस सीरीज में दिखाई गई सभी घटनाएं सत्यापित नहीं हैं।
फतवे में कहा गया है, "नाटक निर्माताओं ने धार्मिक प्रचार करने का लक्ष्य रखा, मगर उन्होंने अपना संदेश भेजने के लिए फिल्म-निर्माण का उपयोग किया, जिसे इस्लाम में अनुमति नहीं है। इस्लाम तुर्की ब्लॉकबस्टर या अन्य नाटकों को देखने की अनुमति नहीं देता, भले ही वे इस्लामी इतिहास को उजागर करें।"
इसी तरह से मई 2020 में भी दारुल्लिफ्टा द्वारा एक ऐसा ही फतवा जारी किया गया था।
एक अन्य फतवे में सुझाव दिया गया है कि इस विषय पर इतिहास की किताबें और साहित्य पर काम किया जा सकता है, जो आसानी से उपलब्ध होगा और इस जरिए ओटोमन खलीफा के इतिहास को उजागर किया जा सकता है।
जामिया दाओल उलूम के फतवे में कहा गया है कि ड्रामा या फिल्मों के माध्यम से इस्लाम और इससे जुड़े कामों को चित्रित करना इन व्यक्तित्वों की गरिमा का अपमान करने के समान है।
फतवा में दावा किया गया, "इसलिए इसे इस्लामिक ड्रामा कहना या इसे हाईप्रोफाइल पर्सनैलिटी की भूमिका निभाते हुए इस्लाम के लिए एक सेवा के रूप में मानना सही नहीं है।"
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