स्वास्थ्य

ग़रीबों के हिस्से का पानी सुड़क जाते हैं अमीरों के स्वीमिंग पूल

नयी स्टडी बताती है कि सामाजिक असमानतायें जलवायु परिवर्तन या शहरी आबादी में वृद्धि जैसे पर्यावरणीय कारकों की तुलना में शहरों के पानी जैसे मुद्दों को अधिक प्रभावित कर रही हैं। नेचर सस्टेनेबिलिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि शहरी अभिजात वर्ग अपने स्वयं के निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पानी की अधिक खपत करता है, जैसे कि अपने स्विमिंग पूल को पानी से भरना, अपने बगीचों को पानी देना या अपनी कारों को धोने में पानी का इस्तेमाल करना।

शोध टीम ने दक्षिण अफ़्रीका के केप टाउन पर ध्यान केंद्रित किया, जहां शहरी जल संकट का मतलब है कि कई वंचित लोग बिना नल या शौचालय के रहते हैं और पीने और स्वच्छता के लिए अपने सीमित पानी का उपयोग करते हैं।

उन्होंने लंदन, मियामी, बार्सिलोना, बीजिंग, टोक्यो, मेलबर्न, इस्तांबुल, काहिरा, मास्को, बैंगलोर, चेन्नई, जकार्ता, सिडनी, मापुटो, हरारे, साओ पाउलो, मैक्सिको सिटी और रोम सहित दुनिया भर के 80 शहरों में इसी तरह के मुद्दों पर रौशनी डाली।

इस अध्ययन के सह-लेखक रीडिंग विश्वविद्यालय के हाइड्रोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर हन्ना क्लॉक ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि का मतलब है कि बड़े शहरों में पानी अधिक मूल्यवान संसाधन बन रहा है, लेकिन हमने दिखाया है कि ग़रीबों को उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराने की सामाजिक असमानता सबसे बड़ी समस्या है।”

क्लॉक आगे बताती हैं,”दुनिया भर में 80 से अधिक बड़े शहर पिछले 20 वर्षों में सूखे और पानी के निरंतर उपयोग के कारण पानी की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन हमारे अनुमानों से पता चलता है कि यह संकट और भी बदतर हो सकता है, क्योंकि अमीर और ग़रीब के बीच की खाई दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ती जा रही है।”

वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं,”यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय असमानता के बीच घनिष्ठ संबंध को भी दर्शाता है। अंतत: जब तक हम शहरों में पानी साझा करने के लिए उचित तरीक़े विकसित नहीं कर लेते हैं, तब तक सभी को इसके परिणाम भुगतने होंगे।”

केप टाउन में शहरी निवासियों को यह समझने के लिए कि विभिन्न सामाजिक वर्ग पानी का उपभोग कैसे करते हैं,स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में पढ़ा रहीं डॉ. एलिसा सावेली के नेतृत्व में यूके स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग,  नीदरलैंड्स स्थित व्रीजे यूनिवर्सिटी, यूके स्थित एम्स्टर्डम और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के सह-लेखकों के साथ मिलकर किए गए इस शोध में घरेलू पानी के उपयोग का विश्लेषण करने के लिए एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया।

उन्होंने पांच सामाजिक समूहों को चिह्नित किया, जिनमें ‘एलीट’ (जो लोग बड़े बगीचों और स्विमिंग पूल वाले विशाल घरों में रहते हैं) से लेकर ‘अनौपचारिक निवासी’ (वे लोग जो शहर के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं) शामिल हैं।

संभ्रांत और उच्च-मध्यम-आय वाले परिवार केप टाउन की आबादी का 14% से भी कम हैं, लेकिन पूरे शहर द्वारा खपत किये गये पानी के आधे से अधिक (51%) का उपयोग कर जाते हैं। अनौपचारिक परिवार और निम्न-आय वाले परिवार शहर की आबादी का 62% हिस्सा हैं, लेकिन केप टाउन के पानी का सिर्फ़ 27% ही उपभोग कर पाते हैं।

इस समय शोधकर्ता इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि पानी की कमी वाले शहरों में पानी की आपूर्ति के प्रबंधन के प्रयास ज़्यादातर तकनीकी समाधानों पर केंद्रित होते हैं, जैसे कि अधिक कुशल जल अवसंरचना विकसित करना। शोध दल का कहना है कि ये प्रतिक्रियाशील रणनीतियां, जो पानी की आपूर्ति को बनाये रखने और बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, अपर्याप्त और अनुत्पादक हैं। इसके बजाय, एक अधिक सक्रिय दृष्टिकोण, जिसका उद्देश्य संभ्रांत लोगों के बीच अस्थिर पानी की खपत को कम करना हो, अधिक प्रभावी होगा।

Upendra Chaudhary

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