कोरोना के रूप में जो हेल्थ इमरजेंसी दुनिया में चल रही है, शायद वो कुछ महीनों या फिर वर्षों में खत्म हो जाए। लेकिन हमारी पृथ्वी एक और आपातकाल से गुजर रही है। जिससे जीवन के अस्तित्व को खतरा है। इस काल रूपी विकराल समस्या का नाम जलवायु संकट है। जलवायु परिवर्तन, जलवायु संकट में तब्दील होते हुए जलवायु आपातकाल में बदल गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जिम्मेदार देशों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। इस आपदा से निपटने के विचार से 5 वर्ष पहले पेरिस में एक बैठक हुई थी। सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका ने भी जलवायु संकट टालने के लिए हाथ मिलाया था। लेकिन नवंबर 2019 में अमेरिका इस समझौते से हट गया। उसने पेरिस समझौते को मानने से मना कर दिया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक झटके में एग्रीमेंट खत्म कर दिया। अमेरिका ने अब जो बाइडन को अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। जो बाइडन ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि वो राष्ट्रपति बनते हैं तो पदभार ग्रहण करने के पहले दिन ही पेरिस एग्रीमेंट में अमेरिका को दोबारा वापस ले आएंगे। <span style="color: #ff0000;"><strong>जो बाइडन अब आप राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं और पर्यावरण को किए अपने प्रॉमिस को प्लीज याद रखिएगा। </strong></span>
<strong>अमेरिका का पेरिस एग्रीमेंट से हटना कितना खतरनाक है</strong>
पेरिस एग्रीमेंट से नाता अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में खत्म किया था। समझौते की शर्तों के अनुसार अगर कोई देश हटता भी है तो इस प्रक्रिया के पूरे होने में एक साल का समय लगता है। 4 नवंबर 2020 की तारीख वो आखिरी तारीख थी जब अमेरिका आधिकारिक रूप से इस समझौते से हट गया। अमेरिका के हटने से पेरिस समझौते का महत्व ही खत्म हो जाता है। क्योंकि यही वो देश है जो दुनिया में अकेले 15 प्रतिशत से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है (यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइटिंस्ट्स के आंकड़ों के अनुसार)। पेरिस एग्रीमेंट तोड़ने का मतलब है कि जिस देश का नाम दुनिया को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाले देशों में शामिल है वो दुनिया को बचाने की अपनी जिम्मेदारी से हट गया।
<strong>2015 में पेरिस में हुई थी पहल </strong>
किसी भी इमरजेंसी से निपटने के लिए उपाय भी इमरजेंसी स्तर के ही होने चाहिए। इसी विचार के साथ दुनिया के लगभग 189 देशों ने वर्ष 2015 में पेरिस में एक बैठक की थी। मीटिंग में तय हुआ कि प्रत्येक देश कार्बन उत्सर्जन के दर को कम करने के लिए जरूरी और ठोस कदम उठाएंगे। जिसके परिणाम स्वरूप ग्लोबल वार्मिंग की गति में बदलाव आएगा।
<strong>तीन डिग्री तापमान बढ़ने के मायने  </strong>
विशेषज्ञों के अनुसार जिस गति से कार्बन उत्सर्जित हो रहा है, उससे दुनिया के तापमान में तीन डिग्री तक की बढ़त होगी। इसके मायने ये हैं कि ग्लेशियर पिघल जाएंगे, तमाम टापू समुद्र में समाधि ले लेंगे। तट के नजदीक वाले इलाके जलमग्न हो जाएंगे। संकट कितना बड़ा होगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
<strong>पेरिस समझौते का महत्व </strong>
पेरिस समझौते में सभी देशों ने जलवायु और पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। इस समझौते में तीन डिग्री को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की बात कही गई।.
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