Blood Pressure और डायबिटीज का रामबाण उपाय, करके देखें, जिंदगी भर रहेंगे तंदरुस्त!

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भारत के गांव हो या देहात पहले डायबिटीज के रोगी बहुत कम पाए जाते थे, लेकिन आज देखो हर जगह डायबिटीज के मरीज देखने को मिल रहे हैं। भारत को डायबिटीज का कैपिटल कहने लगे हैं। इसका कारण यह है कि पहले के लोग सुबह-सुबह घूमने निकलते थे और नीम-बबूल की दातून करते थे। नीम-बबूल की दातून से से जो स्लाइवा बनता था वो प्राकृतिक रूप से इंसुलिन का संतुलन रखता था। जिससे लोग न डायबिटीज के शिकार होते थे और न ब्लड प्रेशर के। अब साइंस भी इस चीज को मानने लगी है। और फिर से दातून वापस लौट रही है लेकिन आधुनिक तौर-तरीकों के साथ। अब डायबिटीज के रोगियों को कहा जाता है कि वो टूथपेस्ट न करें बल्कि दातून करें।   </p>
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बाज़ार में टूथपेस्ट और माउथवॉश आ रहे हैं और 99.9% बैक्टीरिया को खत्म करने का दावा करते हैं, इन माउथवॉश और टूथपेस्ट में बेहद स्ट्राँग एंटीमाइक्रोबियल होते हैं और हमारे मुंह के 99% से ज्यदा सूक्ष्मजीवों को वाकई मार गिराते हैं। लेकिन इनकी मारक क्षमता इतनी जबर्दस्त होती है कि ये मुंह के उन बैक्टिरिया का भी खात्मा कर देते हैं, जो हमारे शरीर के लिए मित्र की तरह होते हैं, ये हमारी लार (सलाइवा) में पाए जाते हैं और ये वही बैक्टिरिया हैं जो हमारे शरीर के नाइट्रेट (NO3-) को नाइट्राइट (NO2-) और बाद में नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) में बदलने में मदद करते हैं। यानी शरीर के लिए जरूरी नाइट्रिक ऑक्साइड का बनना काफी हद तक इनके भरोसे होता है। अब इन्ही सूक्ष्मजीवों को मार दिया जाए तो नाइट्रिक ऑक्साइड का स्तर कम होता जाएगा, जैसे ही हमारे शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी होती है, ब्लड प्रेशर बढ़ता है। ये मैं नहीं कह रहा, दुनियाभर की रिसर्च स्ट्डीज़ बताती हैं कि नाइट्रिक ऑक्साइड का कम होना ब्लड प्रेशर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।</p>
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जर्नल ऑफ क्लिनिकल हायपरेटेंस में 'नाइट्रिक ऑक्साइड इन हाइपरटेंशन' टाइटल के साथ छपे एक रिव्यु आर्टिकल में सारी जानकारी विस्तार से छपी है।नाइट्रिक ऑक्साइड की यही कमी इंसुलिन रेसिस्टेंस के लिए भी जिम्मेदार है।  नाइट्रिक ऑक्साइड कैसे बढ़ेगा जब इसे बनाने वाले बैक्टिरिया का ही काम तमाम कर दिया जा रहा है? ब्रिटिश डेंटल जर्नल में 2018 में तो बाकायदा एक स्टडी छपी थी जिसका टाइटल ही ’माउथवॉश यूज़ और रिस्क ऑफ डायबिटीज़’ था। इस स्टडी में बाकायदा तीन साल तक उन लोगों पर अध्धयन किया गया जो दिन में कम से कम 2 बार माउथवॉश का इस्तमाल करते थे और पाया गया कि 50% से ज्यादा लोगों को प्री-डायबिटिक या डायबिटीज़ की कंडिशन का सामना करना पड़ा।</p>
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नीम और बबूल की दातून</p>
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बबूल और नीम की दातून को लेकर एक क्लिनिकल स्टडी 'जर्नल ऑफ क्लिनिकल डायग्नोसिस एंड रिसर्च' प्रकाशित हुई। इसमें बताया गया कि स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस की वृद्धि रोकने में ये दोनों जबर्दस्त तरीके से कारगर हैं। ये वही बैक्टीरिया हैं जो दांतों को सड़ाता है और कैविटी का कारण भी बनता है। वो सूक्ष्मजीव जो नाइट्रिक ऑक्साइड बनाते हैं जैसे एक्टिनोमायसिटीज़, निसेरिया, शालिया, वीलोनेला आदि दातून के शिकार नहीं होते क्योंकि इनमें वो हार्ड केमिकल कंपाउंड नहीं होते जो माउथवॉश और टूथपेस्ट में डाले जाते हैं।</p>

आईएन ब्यूरो

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