SAARC की प्रगति में पाकिस्तान की 'आतंकवाद नीति' सबसे बड़ी रुकावट

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SAARC 36th Charter Day : दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन <a href="https://en.wikipedia.org/wiki/South_Asian_Association_for_Regional_Cooperation"><strong>SAARC</strong></a><strong></strong> की पूरी क्षमता का उपयोग तभी संभव है जब इस क्षेत्र में आतंकवाद और हिंसा से मुक्त माहौल हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन इशारा साफ था कि पाकिस्तान की आतंकवाद नीतियों की वजह से ही पिछले तीन दशकों में SAARC में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। मंगलवार को 36वें सार्क चार्टर दिवस (SAARC 36th Charter Day) पर मोदी ने साफ कर दिया अगर सार्क को आगे बढ़ना है तो आतंकवाद का समर्थन और उसे पोषित करने वाली ताकतों को पराजित करने के लिए संकल्प लेना होगा।</p>
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8 दिसंबर 1985 को बने सार्क का उद्देश्य दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करना है। 8 देशों के इस संगठन में भारत, नेपाल अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं। 1980 के दशक में भारत और पड़ोसी देश कई प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहे थे। भले ही संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले दुनिया के तमाम देश एक सूत्र में जुड़े हुए थे, और वैश्वीकरण (Globalistion) की अवधारणा को व्यापक बनाने की दिशा में कई देश आगे बढ़ रहे थे, लेकिन इस बीच कई ऐसे क्षेत्रीय संगठनों का भी उदय हो रहा था, जो क्षेत्रीय हितों को पूरा करने के लिए बनाए जा रहे थे। इनमें यूरोपियन यूनियन (EU), नॉर्थ अमेरिका फ्री ट्रेड एरिया (NAFTA), द एसोसिएशन ऑफ साउथ इस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं।</p>
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दुनिया भर में वैश्वीकरण और क्षेत्रवाद के सिद्धांतों की व्याख्या करने के बाद दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में पहल की जरूरत महसूस की गई यानि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति और सहयोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक संगठन की जरूरतों को समझा गया। इरादा था इस क्षेत्र में मिल-जुल कर सब का विकास करना क्योंकि उस दौर में दुनिया के हर क्षेत्र में कई सारे देश मिलकर प्रगति कर रहे थे। नतीजतन मालदीव, इंडिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल सात देशों ने मिलकर 8 दिसम्बर 1985 को सार्क की स्थापना की।</p>
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सार्क चार्टर में दक्षिण एशिया की जनता के कल्याण को बढ़ावा देने, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति में तेजी लाने, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति में सक्रिय सहयोग बढ़ाने, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग बढ़ाने, साझा सहयोग के मामलों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग मजबूत करने तथा ऐसे ही उद्देश्यों और प्रयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करने के मुख्य उद्देश्य शामिल हैं।</p>
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1987 में सभी देशों ने आतंकवाद से लड़ने और आतंकवादियों की फंडिंग पर रोकने के प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए थे। अफगानिस्तान 2007 में इसका सदस्य बना। लेकिन जहां दुनिया के दूसरे क्षेत्रीय संगठनों ने काफी प्रगति की, सार्क जहां था वहीं का वहीं रहा। वजह रही पाकिस्तान और उसकी आतंकवाद की नीतियों जिसका सबसे बड़ा शिकार रहा है भारत। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथग्रहण में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया था इस उम्मीद के साथ कि सार्क को सफल बनाया जाए लेकिन पाकिस्तान की तरफ से आतंकवादी कार्रवाईयां जारी रहीं और 2016 में उरी हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया। हमारे लोगों के लिए आर्थिक विकास, प्रगति और क्षेत्रीय सहयोग के लिए शांति और सुरक्षा का माहौल बेहद जरूरी है । बातचीत और आतंकवाद साथ साथ नहीं चल सकते। मोदी के इस बयान का समर्थन सार्क के बाकी देशों ने भी किया।</p>
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अफगानिस्तान और बांगलादेश ने भी अपने यहां हो रहे आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया लेकिन पाकिस्तान पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उसके बाद भी सार्क के शिखर सम्मेलन हुए लेकिन लेकिन यह एक औपचारिक मीटिंग से ज्यादा कुछ नहीं था। पाकिस्तान को अलग थलग कर, भारत ने सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबधों पर जोर दिया। इसका असर सार्क पर भी पड़ा और अब तक कोई शिखर सम्मेलन नहीं हो पाया। मार्च में कुछ सदस्य देशों के आग्रह पर, महामारी कोविड-19 के मुद्दे पर मोदी ने एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने सलाहकार जफर मिर्जा को तैनात किया जिसने छूटते ही कश्मीर राग अलापना शुरु कर दिया। जब दुनिया कोविड जैसी महामारी से जूझ रही है, कुछ लोग इससे भी खतरनाक आतंकवाद का वायरस फैलाने में लगे हैं। मोदी ने कहा बातचीत और आंतकवाद दोनों साथ साथ नहीं चल सकते। हांलाकि महामारी के मद्देनजर मोदी ने इमरान खान सहित सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया था।</p>
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इसके बाद, सितंबर में सार्क देशों के विदेश मंत्री न्यूयार्क में मिले लेकिन पाकिस्तान यूएन में कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ समर्थन जुटाने की असफल कोशिश में लगा था। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह मोहम्मद कुरैशी ने सार्क के सदस्य देशों से कहा कि पाकिस्तान सार्क शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए तैयार है लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदस्य देशों से कहा वे सामूहिक रूप से आतंकवाद के संकट को और आंतक व टकराव को पोषित करने, सहायता देने और बढ़ावा देने वाली ताकतों को हराने के लिए प्रतिबद्धता जताएं। ये दक्षिण एशिया में सामूहिक सहयोग और समृद्धि के सार्क के उद्देश्य में रुकावट पैदा करता है। सार्क के देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आखिरी सम्मेलन 2014 में काठमांडू में हुआ था। मंगलवार को 36वें सार्क चार्टर के मौके पर नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली ने सार्क की रुकी हुई प्रक्रिया को फिर से शुरु करने की वकालत की लेकिन पाकिस्तान की आतंकवाद नीतियां इसमें सबसे बड़ी बाधा है। सार्क का विकास न होने के कारण, भारत, अपनी पड़ोसी और लुक ईस्ट पालिसी के तहत बिम्सटेक (BIMSTEC), बांग्लादेश, भूटान भारत, और नेपाल (BBIN) जैसे संगठनों में एक अहम भूमिका निभा रहा है। जानकारों के मुताबिक बिम्सटेक को सार्क के विकल्प में देखा जा रहा है।  .</p>

आईएन ब्यूरो

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