Archaeological Survey:भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की एक टीम ने आज सुबह वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के वैज्ञानिक सर्वेक्षण का काम शुरू कर दिया है।
सुबह 7 बजे शुरू होने वाले इस सर्वेक्षण में मस्जिद के सील किए गए “वुज़ुखाना” क्षेत्र को शामिल नहीं किया जायेगा, जहां 2022 में पहले के सर्वेक्षण के दौरान एक संरचना मिली थी, जिसके बारे में हिंदू वादियों ने ‘शिवलिंग’ होने का दावा किया था।
वाराणसी जिला अदालत द्वारा शुक्रवार को पारित एक आदेश के बाद किया जा रहा इस सर्वेक्षण को 4 अगस्त तक पूरा किया जाना है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई के लिए वाराणसी कोर्ट के ASI सर्वेक्षण के आदेश के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन द्वारा दायर अवमानना याचिका पर विचार कर सकता है।
सर्वेक्षण करने के लिए ASI की टीम सभी आवश्यक उपकरणों के साथ रविवार को वाराणसी पहुंची।
हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा, ”हमें विश्वास है कि पूरा परिसर मंदिर का ही है। सर्वे का नतीजा हमारे अनुकूल होगा।”
वाराणसी जिला अदालत का आदेश उन चार महिला उपासकों द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया था, जिनका दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक प्राचीन हिंदू मंदिर को तोड़कर बनायी गयी थी और पूरे तथ्यों को सामने लाने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है।
आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा था कि “सही तथ्य” सामने आने के लिए वैज्ञानिक जांच “आवश्यक” है।
उन्हीं याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मामले में 2021 याचिका दायर की थी, जिसमें मस्जिद के अंदर “श्रृंगार गौरी” मंदिर तक साल भर की सुलभता की मांग की गयी थी।
इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने “शिवलिंग” के कार्बन डेटिंग सहित “वैज्ञानिक सर्वेक्षण” को स्थगित कर दिया था, जिसके बारे में कहा गया था कि यह पिछले साल किए गए एक वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पाया गया था।
शीर्ष अदालत का यह आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा ASI को उस संरचना का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश देने के कुछ दिनों बाद आया था, जिसके बारे में हिंदू याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह एक “शिवलिंग” है। ज्ञानवापी मस्जिद के अधिकारियों ने कहा था कि संरचना “वज़ुखाना” में एक फव्वारे का एक हिस्सा है, जहां लोग नमाज अदा करने से पहले स्नान करते हैं।
पिछले साल सितंबर में वाराणसी जिला न्यायाधीश ने मस्जिद समिति की उस चुनौती को खारिज कर दिया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि इन महिलाओं के केस की कोई क़ानूनी वैधता नहीं है।
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