बांग्लादेश में दुर्गापूजा के मौके पर पंडालों पर हुए हमले धमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस दौरान कई पूजा मंडप से तोड़फोड़ और हिंसा की घटना हुई। पुलिस का कहना है कि अब तक 40 लोगों को गिरफ़्तार भी किया है। साथ ही अधिकारियों का कहना है कि इस घटना में शामिल कई अन्य संदिग्धों की पहचान कर ली गई है। हालांकि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले नई घटना नहीं है। 1971 में बांग्लादेश के जन्म होने के साथ ही हिंदू समुदाय के साथ मार-पीट शुरू हो गई थी।
बांग्लादेश के जन्म होने के बाद 1974 में जनगणना हुई थी। इसके मुताबिक देश में 1974 में 13.5 फीसदी हिंदू थे, लेकिन वर्ष 2011 में देश में महज 8.5 प्रतिशत हिंदू ही रह गए थे। 2011 से 2021 तक इसमें करीब तीन फीसदी की और गिरावट आ चुकी है। आलम यह है कि हिंदुओं की संख्या साल-दर-साल घटती जा रही है। पाकिस्तान से अलग देश बनने के बाद से हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ने लगे थे। इसके बाद से ऐसा कोई साल नहीं जब अल्पसंख्यक समुदाय को हमले का सामना न करना पड़ा हो। पिछले नौ साल में हिंदुओं पर 3600 से ज्यादा हमले हुए हैं। ये मानवाधिकार संगठनों का आंकड़ा है।
वर्ष 2016 में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर एक किताब आई थी। उस किताब में दावा किया गया था कि अगले करीब तीन दशक में बांग्लादेश से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा। बांग्लादेश के इतिहास में हिंदुओं पर सबसे ज्यादा जुर्म 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुआ। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने हिंदुओं के गांव के गांव का सफाया कर दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 30 लाख से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया गया।
इन हमलों के पीछ की वजह बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथ है। देश में कई कट्टरपंथी संगठनों का जन्म हुआ है औऱ जो पहले से थे उनकी ताकत बढ़ी है। तालिबान के लड़ाकों में बांग्लादेश के हजारों लड़के शामिल थे जो अब धीरे-धीर देश लौट रहे हैं। कट्टरपंथी सोच के संगठन सबसे पहले हिंदू समुदाय को टारगेट करते हैं, इसलिए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं।