भारतीय मुसलमानों के माथे पर 'आतंकी' ठप्पा लगाने की पाकिस्तानी साजिश!

एफएटीएफ को सौंपी रिपोर्ट में आतंकी दाऊद इब्राहीम के बारे में पाकिस्तान का कुबूलनामा (फिर मुकरना) भले ही एक संयोग है लेकिन 22-23 अगस्त की दरम्यानी रात दिल्ली के करोल बाग में रिज रोड पर आतंकी यूसुफ की गिरफ्तारी कोई संयोग नहीं बल्कि भारतीय मुसलमानों के खिलाफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की एक खतरनाक साजिश का पर्दाफाश है। पाकिस्तानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी किसी भी तरह से भारतीय मुसलमानों को भारत में ही विद्रूप बना देना चाहती है। ताकि भारत के बहुसंख्यकों में उनके प्रति नफरत पैदा हो और पाकिस्तान को कहने का मौका मिल जाये कि भारत में मुसलमानों के साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है। दिल्ली दंगों के दौरान पाकिस्तान ने ऐसा ही दुष्प्रचार करने की कोशिश की थी।

कुछ अर्सा पहले तक कहा जाता है कि सरकारों ने मुसलमानों के विकास पर ध्यान नहीं दिया इसलिए कुछ अशिक्षित और पिछड़े मुसलमान आईएसआई के शिकंजे में फंस जाते हैं। मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने का काम किया गया होता तो वो न तो अपराध का रास्ता पकड़ते और न ही आईएसआई के जाल में फंसते। कहने को तो कारण बहुत से हैं लेकिन व्यवहारिक तौर पर क्या कारण हैं उन पर एक निगाह डालते हैं।

बाबर से लेकर बहादुर शाह जफर तक  (बाकी आक्रांताओं को छोड दें तो) लगभग 400 साल तक मुसलमान शासकों ने बहुसंख्यक स्थानीय भारतीयों पर शासन किया। मठ-मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट किया गया। गुरुकुल-पाठशाला, विद्यालय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय और परंपरागत अध्यापन-अध्यापन की व्यवस्था को ध्वस्त किया गया। कहने का अभिप्रायः यह कि एक विशिष्ट समाज और सभ्यता के विकास के रास्ते बंद कर दिए गये। यह सिलसिला अंग्रेजों ने भी जारी रखा। इतना सबकुछ होने के बाद भी भारत के स्थानीय बहुसंख्यक वर्ग आतंकवाद को अपनाया नहीं बल्कि आतंकवाद की हमेशा आलोचना की।

अंग्रेजों ने मुस्लिम शासकों से हिंदुस्तान की गद्दी तो छीनी लेकिन उनकी मजार-मस्जिदों न तो तोड़ा और न ही मुसलमानों की मदरसा शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया। इसके बावजूद अंग्रेजों से मुक्ति मिलने के बाद भारत में रहने वाले और मदरसों में पढ़ने वाले मुसलमान अशिक्षित और अविकसित समाज की श्रेणी में रखे गये। इस बात पर सवाल उठते रहे हैं और आज भी उठ रहे हैं। अपराधी और हिंसक प्रवृति के लोग हर समाज में होते हैं। बहुसंख्यकों में भी होते हैं और अल्पसंख्यकों में भी हैं। कथित अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम समाज के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों (सभी मुसलमान कदापि नहीं) के चेहरों पर समाज और राजनीति के स्वार्थी ठेकेदार ‘भटके हुए नौजवानों’ कहकर उनकी हरकतों पर पर्दा डालते रहे। इसी पर्दे की आड़ में वो कुछ अपराधी से आतंकवादी बनते रहे…और अब भी बन रहे हैं।

आजादी के बाद भारत की सरकारों ने किस के लिए क्या किया, क्या नहीं- इस पर काफी बहस हो चुकी है, लेकिन पिछले लगभग आठ साल के दौरान सरकार ने जहां ‘भटके हुए नौजवानों’ के चेहरे से पर्दा हटा दिया है तो वहीं मुसलमानों के शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठनों ने अतुलनीय काम किए हैं। मदरसा एजूकेशन का आधुनिकीकरण किया गया है। मदरसों में कुरान पढ़ने वाले बच्चों को साइंस, अंग्रेजी और कंप्यूटर सिखाया-पढ़ाया जाने लगा है। जवानी की दहलीज पर कदम रखने से पहले रोजगार की व्यवस्था की जाने लगी है। मदरसों के मॉर्डनाईजेशन के साथ ही भारत की संघीय सरकार के अलावा राज्यों सरकारों ने भी मुस्लिम बच्चों के लिए स्कॉलरशिप, देश के अलावा विदेशों में स्टडी के अवसर, फ्री कोचिंग दे रही है। यूपीएससी और एसएससी का प्रीलिमिनरी टेस्ट पास करने वाले अल्प संख्यक नौजवानों के आर्थिक मदद दी जा रही है। भारत की सरकार ने तो सीखो और कमाओ स्कीम तक शुरू की है। इसके अलावा अल्पसंख्यक महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के प्रति जागरूकता और आत्मनिर्भरता के मौके दिए जा रहे हैं। स्कूलों बनाने चलाने के लिए पैसा दिया जा रहा है। अपनी फैक्ट्री-कारखाना लगाने के लिए आसान शर्तों और किश्तों पर कर्ज दिया जाने लगा है।

सवाल उठता है कि इतना सबकुछ होने के बाद आज भी जब कोई आतंकवादी पकड़ा जाता है तो अक्सर हिंदुस्तानी मुसलमान ही क्यों होता है (संसद हमला, मुंबई हमला, पठानकोट, उरी और कश्मीर की आतंकी वारदातों में पाकिस्तानी आतंकियों को छोड़कर)? इसको समझने के लिए सबसे पहले फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन तथा अन्य देशों में हो रहे इस्लामिक कन्वर्शन और उसके टेररलिंक की पहेली को भी जानना होगा। जिसका असर भारतीय  मुसलमानों पर पड़ रहा है। क्योंकि भारत के अधिकांश मुसलमान कन्वर्टेड ही हैं। इसके अलावा भारत के आधारहीन मुस्लिम और अन्य विपक्षी दलों के कुछ नेता ईर्ष्या और व्यक्तिगत स्वार्थ में अंधे होकर एक खास वर्ग को प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर सरकार का विरोध करने के लिए दंगों और हिंसा के लिए उकसाते रहते हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट और आतंकी संगठन, भारत सरकार का विरोध करने वाले खास मजहबी लोगों को तुरंत लपक लेती है…और उनमें से कुछ के हाथों में एके47 और आईईडी के साथ जिहाद का झण्डा थमा देती है।

22-23 अगस्त की दरम्यनी रात दिल्ली के करोलबाग (धौलाकुंआ-करोलबाग रिज रोड) से पकड़ा गया आतंकी उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के हासिमपारा बाजार में कॉस्मेटिक की दुकान चलाता था। उसके पहनावे-उढ़ावे और सामाजिक स्थिति को देखकर समझा जा सकता है कि वो एक सामान्य खाते-पीते परिवार का सदस्य है। कॉस्मेटिक का बिजनेस करता है को समाज में उसकी सम-स्वीकार्यता भी साबित होती है। तो फिर हासिम पारा का यूसुफ आतंक के रास्ते पर क्यों चला?  इन्वेस्टिगेशन एजेंसियां भले ही कुछ कहें लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे ही कुछ विपक्षी नेता नफरत के बीज बो रहे हैं और नेपाल सीमा से सटे शहरों और कस्बों में सक्रिए आईएसआई के एजेंट आतंक की फसल तैयार कर रही है।

दरअसल, बरगलाना ऐसी कला है जिसका उपयोग कहीं भी और किसी पर भी किया जा सकता है। आईएसआई के एजेंट सरकार विरोधी बयानों से प्रभावित लोगों में से कुछ को आसानी से बरगला लेती है। मसलन, धमाका कर दिया तो जिहाद का बिगुल बजा दिया। मर गये तो कुर्बानी और पकड़े गये तो शरया के झण्डाबरदार। भावुक मानसिकता कुछ मुस्लिम युवक जन्नत-जिहाद की मृगमरीचिका में फंस कर ‘काफिरों’ से अंतहीन जंग के लिए आतंकी बन जाते हैं। ऐसे कथित भटके हुए लोग उन सभी मुसलमानों के लिए शर्मिंदा करते हैं जो देश-समाज की तरक्की के लिए दिन-रात खून-पसीना एक कर रहे हैं।

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<h2 class="synopsis"></h2>.

सतीश के. सिंह

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