1980 में अगर ये घटना ना होती, तो कभी देश के प्रधानमंत्री ना बनते मोदी!

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भारतीय जनता पार्टी को बने आज 41 साल हो गए। 6 अप्रैल 1980 को आज ही भाजपा की नींव डाली गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नेतृत्व में जनसंघ से निकले नेताओं ने बीजेपी बनाई थी। अटल बिहारी के साथ लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को खड़ा किया और पार्टी को नई ऊंचाइयां दीं। हिंदुत्‍व और राम जन्‍मभूमि के एजेंडे पर आगे बढ़ी बीजेपी ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत का स्‍वाद चखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में। 2014 में बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं तो 2019 में उसकी सीटों का आंकड़ा 300 के पार चला गया।</p>
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आडवाणी ने अपनी आत्‍मकथा 'मेरा देश, मेरा जीवन' (प्रभात प्रकाशन) में बीजेपी के अस्तित्‍व में आने पर एक पूरा चैप्‍टर लिखा है। 'कमल का खिलना, भारतीय जनता पार्टी का जन्‍म' चैप्‍टर में आडवाणी बताते हैं कि किस तरह जनसंघ के टुकड़े हुए और बीजेपी बनी। अपनी किताब में आडवाणी लिखते हैं, "एक विषय जिसने पूरे राजनीतिक जीवन में मुझे चकित किया है, वह है भारतीय मतदाता चुनावों में अपनी पसंद का निर्धारण कैसे करते हैं ? कई बार उनके रुझान का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर नहीं। भारतीय मतदाताओं के विशाल विविधता के चलते सामान्यत: चुनाव के परिणामों का पूर्वानुमान लगाना असंभव होता है। हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि मतदाताओं का सामूहिक व्यवहार किसी एक भावना संचालित होता दिखता है और इससे उनकी पसंद का अनुमान लगाया जा सकता है। औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त न करने के बावजूद एक अनुभवी राजनीतिक कार्यकर्ता अक्सर यह भविष्यवाणी कर सकता है कि चुनावी हवा किस ओर बह रही है।"</p>
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आडवाणी लिखते हैं, "मैंने ऐसा वर्ष 1977 के आम चुनावों से पहले किया था, जो आपातकाल के बाद हुए थे। और मैंने पुन: ऐसा ही 1980 के आरंभ में किया, जब छठी लोकसभा भंग होने के बाद मध्यावधि चुनाव हुए थे। मैं जानता था कि राजनीतिक पार्टी का सफाया हो जाएगा और इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में लौटेंगी। इसका कारण साफ था। यदि आपातकाल के विरुद्ध रोष की भावना ने 1977 में जनता पार्टी को सत्ता दिलाई तो एक अन्य सामूहिक आपसी झगड़ों के कारण जनता पार्टी की सरकार गिरने से उत्पन्न हुई निराशा ने लोगों के भ्रम को तोड़ दिया और इस बार यह मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाला था।"</p>
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पूर्व डेप्‍युटी पीएम ने अपनी आत्‍मकक्षा में आगे लिखा है, "जनता पार्टी की भारी पराजय ने मुझे मतदाताओं के व्यवहार के एक अन्य पहलू के बारे में भी परिचित करवाया। जब मतदाता एक पथभ्रष्ट राजनीतिक दल को सबक सिखाना चाहते हैं तो अक्सर उस दल के विरुद्ध आक्रोश के कारण। 1980 में हमने यह भी सीखा कि गहरा भोहभंग भी हमें उस पार्टी को सजा देने के लिए उकसा सकता है, जो सकी आशाओं पर खरा नहीं उतरती।….. चुनावी पराजय ने जनता पार्टी के भीतर दोहरी सदस्यता के विवाद को और गहरा दिया था, जो संसदीय चुनावों तक प्रभावी रहा। 25 फरवरी, 1980 को जगजीवन राम ने पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर को एक पत्र लिखकर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की। हार के पूरा दोष उन लोगों पर मढ़ने की कोशिश की गई, जो जनसंघ से जुड़े हुए थे और इस बात पर अडिग थे कि वे संघ से अपने संबंध नहीं तोड़ेंगे।"</p>
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आडवाणी अपनी किताब में लिखते हैं, "आरंभ से ही हमारा जोर जनसंघ पर वापस लौटने पर नहीं था, बल्कि एक नहीं शुरुआत करने का था। यह पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा नई पार्टी के नाम पर हुए गहन विचार-विमर्श से भी स्पष्ट होता है। कुछ लोगों को लगता था कि इसको भारतीय जनसंघ कहना चाहिए। पर भारी बहुमत ने अटलजी द्वारा दिए गए नाम भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया, जो कि हमारे भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी, दोनों को गौरवपूर्ण संबंधों को दर्शाता था और यह स्पष्ट करता था कि हम नई पहचान के साथ एक नहीं पार्टी हैं।"</p>
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2009 के लोकसभा चुनाव में भी जब बीजेपी वापसी नहीं कर सकी तो तब गुजरात के मुख्‍यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को जिम्‍मा सौंपा गया। 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे को आगे कर लड़ा।</p>
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उन चुनावों में बीजेपी ने तबतक का सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन किया और पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई। पार्टी को 282 सीटें हासिल हुई थीं। अगले लोकसभा चुनावों ने बीजेपी की टैली को और मजबूत होते हुए ही देखा। 2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं और मोदी फिर प्रधानमंत्री बने। अमित शाह जब भाजपा अध्‍यक्ष थे तो उन्‍होंने बीजेपी को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए अभियान शुरू किया। आज वह 18 करोड़ सदस्‍य होने का दावा करती है।</p>

आईएन ब्यूरो

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