गुरु गोविंद सिंह की वजह से बचा हिंदू धर्म, सरदार बूटा सिंह की वजह से बना हिंदुओं का राम मंदिर!

यह तो सोलह आने सच है कि हिंदू मुस्लिम आक्रांताओं से हिंदू सनातन धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह ने बलिदान दिए। पंज प्यारों को अमृत छकाया और धर्म रक्षा की सौगंध दिलाई। क्या यह बात भी उतनी ही सच है कि बूटा सिंह ने विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल को संदेश न भिजवाया होता तो हिंदुओं का राम मंदिर कभी न बनता। इस सवाल का जवाब प्रभाकर कुमार मिश्रा की किताब में मिलता है। और जवाब है 'हां' आज अगर अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है तो उसमें सरदार बूटा सिंह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इस रिपोर्ट में प्रभाकर कुमार मिश्रा की किताब 'एक रुका हुआ फैसला' का हवाला दिया गया है और लिखा है कि तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने अपनी सबसे विश्वस्त शीला दीक्षित को अशोक सिंघल के पास भेजा और कहलवाया कि हिंदुओं की ओर से विवादित जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया है। हिंदुओं की ओर से किसी को इस जमीन के मालिकाना हक का दावा कोर्ट में करना चाहिए। अन्यथा यह जमीन न तो कभी हिंदुओं को मिलेगी और न यहां राम मंदिर ही बन पाएगा।

ध्यान रहे, सन् 1989 से पहले किसी हिंदू पक्षकार ने अयोध्या की विवादित जमीन पर अपना दावा नहीं किया था। गोपाल सिंह विशारद ने राम जन्मभूमि पर पूजा की अनुमति मांगी थी तो निर्मोही अखाड़ा ने मंदिर प्रबंधन अपने हाथ में सौंपने की मांग की थी।" बूटा सिंह ने अपनी कानूनी समझ का इस्तेमाल करते हुए विश्व हिंदू परिषद को छोटा सा दिखने वाला अति महत्वपूर्ण सुझाव दिया।

कहते हैं कि बूटा सिंह की सलाह पर अशोक सिंहल ने अपने विश्वस्त लोगों को पूर्व अटॉर्नी जनरल लाल नारायण सिन्हा से कानूनी सलाह के लिए पटना भेजा। लाल नारायण सिन्हा ने भी वही कहा जो बूटा सिंह ने कहा था। सिन्हा ने समझाया कि हिंदू पक्षकारों का केस तकनीकी रूप से कमजोर है और अगर रामलला विराजमान को पक्षकार बनाया जाता है तो हिंदू पक्ष की कानूनी अड़चनें दूर हो जाएंगी। 1989 में फैजाबाद की सिविल कोर्ट में रामलला विराजमान को अयोध्या मामले में पक्षकार बनाया गया। 9 नवंबर, 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो वही हुआ जो बूटा सिंह ने सोचा था। सुप्रीम कोर्ट के पास अगर विवादित जमीन सौंपने के लिए रामलला विराजमान का विकल्प न होता तो जाने क्या होता।.

सतीश के. सिंह

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