Converted Dalits: धर्मांतरण का मामला एक समय में बड़ी तेजी से सामने आने लगा था। दरअसल, गरीब तबके के लोगों को इस्लामिक कट्टरपंथी बहला फुसला कर उन्हें कुछ रूपयों का लालच देकर मुसलमान बनाने का काम कर रहे थे। कट्टरपंथियों की नजर उन गावों पर होती थी जहां ज्यादा गरीबी होती थी। धर्म परिवर्तन के लिए बकायदा विदेशों भी फंडिंग मिलता था। सिर्फ इस्लाम ही नहीं बल्कि दलितों को ईसाई (Converted Dalits) भी बनाया गया। अब जिनते भी दलितों, ईसई और मुसलमान (Converted Dalits) बनाया गया है वो किस हाल में है इसका सरकार जानकारी जुटाएगी। इसके लिए सरकार एक पैनल बनाने की तैयारी कर रही है, जिसे एक साल के अंदर में रिपोर्ट तैयार कर के देनी होगी।
ईसाई और मुसलमान बने दलितों के हाल का पता लाएगी सरकार
केंद्र सरकार नेशनल कमीशन का गठन करने की तैयारी में है। ये इस बात का पता लगाएंगे कि, ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों या दलितों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है? यह कमीशन उन अनुसूचित जाति या दलितों की स्टडी करेगा जिन्होंने हिंदू, बौद्ध और सिख के अलावा अन्य धर्मों में धर्मांतरण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के अध्ययन को लेकर कमीशन गठित करने के प्रस्ताव पर विचार जारी है। कहा जा रहा है कि, बहुत जल्द ही इस पर अंतिम फैसला हो सकता है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सूत्रों ने कहा कि उन्होंने इस तरह के कदम के लिए हरी झंडी दे दी है। फिलहाल, इस प्रस्ताव पर गृह, कानून, सामाजिक न्याय और अधिकारिता व वित्त मंत्रालयों के बीच विचार-विमर्श चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं आरक्षण के कई मामले
ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ देने की मांग के लिए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में इन मामलों में कमीशन गठित करने का सुझाव और भी अहम हो जाता है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950, अनुच्छेद 341 के तहत यह निर्धारित किया गया कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। हालांकि, केवल हिंदुओं को SC बताने वाले इस मूल आदेश में 1956 में सिखों और 1990 में बौद्धों को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया।
धर्मांतरण के बाद आरक्षण की मांग
उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त को केंद्र सरकार को उन याचिकाओं पर रूख स्पष्ट करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया, जिसमें ईसाई और इस्लाम धर्म अपना चुके दलितों को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ देने का मुद्दा उठाने वाली याचिकाएं शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में धर्मांतरण करने वाले दलितों के लिए इसी तरह आरक्षण की मांग की गई है, जैसे हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अनुसूचित जातियों को आरक्षण मिलता है। जस्टिस एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इस मुद्दे के प्रभाव हैं और वह सरकार के मौजूदा रुख को रिकॉर्ड में रखेंगे। बेंच इस मामले पर अब 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। याचिका में कहा गया कि धर्म में परिवर्तन से सामाजिक बहिष्कार नहीं बदलता है। ईसाई धर्म के भीतर भी यह कायम है, भले ही धर्म में इसकी मनाही है।
1 साल में देनी होगी रिपोर्ट
मीडिया में आ रही खबरों की माने तो प्रस्तावित आयोग में तीन या चार सदस्य हो सकते हैं, जिसके अध्यक्ष के पास केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का पद हो सकता है। कमीशन को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए एक साल का समय दिया जा सकता है। यह कमीशन ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति और उसमें बदलाव का अध्ययन करेगा। साथ ही मौजूदा SC सूची में अधिक सदस्यों को जोड़ने के प्रभाव का भी पता लगाया जाएगा। सरकार का ये फैसला काफी सराहनीय है। क्योंकि, इससे हकीकत पता चलेगा कि आखिर ऐसे लोग किस स्थिति में हैं। क्या ये लोगो इसके बाद आर्थिक रूप से मजबूत हुए हैं या फिर और कमजोर हो गए हैं। इनका हाल पहले जैसा है या नहीं। इससे समाज को भी पता चलेगा कि आखिर धर्मांतरण करने के बाद लोगों का हाल कैसा है।