नई दिल्ली, अप्रैल 25: समलैंगिक शादी को मान्यता देने के मामले में जो याचिकायें सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी हैं, उनको निपटाने के लिए जिस प्रकार की सोच सुप्रीम कोर्ट के द्वारा व्यक्त की गयी हैं, वह सर्वथा अनुचित, अप्रासंगिक, अमानवीय, अनैतिक और असामाजिक है। मंच के मीडिया प्रभारी की तरफ़ से जारी किए गए एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इस प्रकार की असमाजिक और विघटनकारी सोच का घोर विरोध करता है।
समलैंगिक विवाह सामाजिक मूल्यों से परे
मंगलवार को मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजकों, सह संयोजकों, सभी प्रकोष्ठों, प्रांतों और क्षेत्रों के संयोजकों और सह संयोजकों और प्रभारियों की ऑनलाइन बैठक हुई, जिसमें सर्वसहमति से समलैंगिकता पर विरोध जताया गया और इसे दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए कठोर निंदा की गयी। बैठक में महिला प्रकोष्ठ की पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने भी शिरकत की और इस पर गहरी चिंता जताते हुए इसकी आलोचना की।
मंच का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा समलैंगिक विवाहों को बढ़ावा देिये जाने वाली बातें किया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।
मंच का मानना है कि ऐसी सोच किसी भी धर्म के जीवन मूल्यों और परिवार संस्था पर सीधा आघात है। इसके परिणामस्वरूप परिवार टूट जायेंगे, रिश्ते-नाते बिखरे जायेंगे और समूची समाज व्यवस्था चरमरा जायेगी।
समलैंगिक विवाह या समलैंगिक निकाहों की व्यवस्था दुनिया के किसी भी धर्मं में नहीं हैं, क्योंकि विवाह का वास्तविक उद्देश्य संतान को जन्म देकर ईश्वर या अल्लाह द्वारा निर्मित परिवार और समाज व्यवस्था को आगे बढ़ाना हैं।
मंच की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया देते हुए पूछा गया है कि समलैंगिक निकाहों का समर्थन कर के क्या सुप्रीम कोर्ट ईश्वर की इस व्यवस्था को, जो युगों-युगों से चलती आ रही हैं, तोड़ना चाहती है ? मंच का मानना है कि यह सर्वथा अनुचित और अनैतिक है।
विवाह का उद्देश्य केवल यौन सुख नहीं, बल्कि परिवार बढ़ाना मक़सद
मंच की ऑनलाइन बैठक में कहा गया कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के हम सभी सदस्य इस बात को मानते हैं कि किसी भी धर्म में समलैंगिक विवाहों की व्यवस्था नहीं हैं। विवाह या निकाह का उद्देश्य केवल यौन सुख भोगने का एक अवसर या माध्यम नहीं है, बल्कि संतान उत्पन्न कर परिवार और समाज की परंपरा को आगे बढ़ाना है।
समलैंगिक विवाहों में ये संभावनायें समाप्त हो जाती हैं। यदि इसकी अनुमति दी गयी, तो कई प्रकार के विवादों का भी जन्म होगा।
इसलिए, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का साफ़ तौर पर मानना है कि यह परिवार उजाड़ने और समाज में अनैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने जैसा है। मंच के सदस्यों ने कहा कि हम इस्लाम मतावलंबी इसकी घोर निन्दा करते हैं।
धर्म के मामले में दखल से परहेज़ करें अदालतें
मंच की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि हम माननीय सुप्रीम कोर्ट से आह्वान करते हैं की वह इस विषय में न पड़े, क्योंकी यह अमानवीय, अनैतिक और मानवजाति के लिए विनाशकारी है। इसका परिणाम हमारे घर-परिवारों के विघटन में ही होगा। इसके चलते निकाह नहीं होंगे, बल्कि अनैतिकता फैलेगी, जो रिश्ते को तार-तार कर देगी।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की यह सोच है कि धर्म और समाज से जुड़े इस मसले को सुप्रीम कोर्ट के दायरे से बाहर रखना चाहिए तथा सामाजिक सोच को ध्यान में रखते हुए संसद को इस विषय पर क़ानून बनाना चाहिए।
यदि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट अपनी राय रखना चाहता है, तो इतना ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए की वह राय समाज विरोधी, परिवार को तोड़ने वाली, और धर्मों में दखल देनेवाली न हो। मंच का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जल्दबाज़ी में सभी बातों की अनदेखी कर इंसान को हैवान में तब्दील कर देनेवाली टिपण्णी कर डाली है।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच एक जागरुक, ख़ुदाई तहरीक़ है और इस प्रकार की अनैतिक, समाज के विघटन कारकों और ईश्वर निर्मित व्यवस्था के ख़िलाफ़ व्यक्त की गयी सोच का विनम्रता के साथ विरोध करता है।
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