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गाजियाबाद की छोरी ऐसे छुड़ाती है आतंकियों के छक्के, अब बनेगी बायोपिक

Kamakshi Sharma: इंटरनेट आप और हम सभी के जीवन की ऐसी जरूरत बन गया है कि इसके बिना अब लगता है एक-एक घड़ी काटना बहुत मुश्किल है। आज के दौर में बिना इंटरनेट (Internet) के जीना कई लोगों के लिए दुस्‍वप्‍न है। मगर, यही वो इंटरनेट और उसका साइबर स्‍पेस कभी-कभी नाक में नकेल डालकर भी रख देते हैं। दरअसल, साइबर क्राइम के फैलते शिकंजे आये दिन अपने नए शिकार बना रहे हैं। हमारे पर्सनल डेटा से लेकर हमारे बैंक तक बस हमारी एक छोटी से चूक की भेंट चढ़ सकते हैं। पर गाजियाबाद की एक बेटी कामाक्षी शर्मा न केवल देश बल्कि विदेश में भी साइबर क्राइम के खिलाफ चल रही लड़ाई में सुरक्षा एजेंसियों के हाथ मजबूत करने में जुटी हुई है। उनकी इस कामयाबी पर एक बायोपिक भी बनने जा रही है।

कामाक्षी शर्मा ने साइबर क्राइम की रोकथाम और जागरूकता के लिए एशिया में सबसे लंबा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाकर अपना नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है। जबकि इससे पहले कामाक्षी ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी अपनी जगह बनाई है। कामाक्षी के परिजनों के अलावा गाजियाबाद के लोगों को अब कामाक्षी पर बेहद गर्व महसूस हो रहा है।

हज़ारों सुरक्षाकर्मियों को दी ट्रेनिंग

कामाक्षी अब तक 50 हजार से ज्‍यादा पुलिसकर्मियों और सेना के जवानों को साइबर सुरक्षा में शिक्षित कर चुकी हैं। आज पुलिस लेकर सेना तक कामाक्षी से साइबर क्राइम की उलझी पहेलियां सुलझाने में मदद ले रहे हैं। भारत पर सीमापार से होने वाले साइबर हमलों में कामाक्षी ने सुरक्षा एजेंसियों का बहुत सहयोग किया है। गाजियाबाद की पंचवटी कॉलोनी में रहने वाली कामाक्षी शर्मा ने अभी तक भारत, श्रीलंका और दुबई पुलिस के साथ काम कर पुलिस कर्मियों को साइबर अपराध रोकने की ट्रेनिंग दी है। उन्‍होंने भारत के लगभग सभी राज्यों पुलिस को इसकी ट्रेनिंग दी है।

नौकरी करने में खास रूचि नहीं

कामाक्षी की 12वीं तक की पढ़ाई गाजियाबाद में ही हुई। इसके बाद उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस में बीटेक की पढ़ाई पूरी की। कामाक्षी ने साल 2018 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। लेकिन वह कहीं नौकरी नहीं करना चाहती थीं। उनका सपना था साइबर क्राइम के खिलाफ पुलिस और दूसरी एजेंसियों की मदद करना। लेकिन तरीका क्‍या अपनाएं उन्‍हें पता नहीं था। इसलिए वह खुद ही पुलिस थानों में जाकर मदद की पेशकश करतीं।

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शुरू में तो कामाक्षी के हाथ निराशा लगी क्‍योंकि पुलिस भला क्‍यों किसी पर भरोसा करती। एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई और गाजियाबाद के सिहानी गेट कोतवाली के थाना प्रभारी ने एक साइबर केस में उनकी मदद ली। कामयाबी मिलने के बाद धीरे-धीरे उन्‍हें और केस मिलने लगे। उनकी मुहिम की सबसे बड़ी कामयाबी थी भारत-पाक सीमा पर बसे कश्‍मीर के एक गांव में आतंकियों की बातचीत का खुलासा करना। चूंकि आतंकवादी पाकिस्‍तानी ऐप के माध्‍यम से ऐसा कर रहे थे इसलिए ट्रेस करने में साइबर विशेषज्ञों को दिक्‍कत हो रही थी। कामाक्षी ने अपने कौशल से पहले उस ऐप को खोज निकाला बाद में आतंकवादियों की सही लोकेशन सेना को दी।

जिंदगी पर बन रही फिल्‍म

फिलहाल कामाक्षी डार्क नेट पर ड्रग्‍स तस्‍करी और दूसरे काले धंधों का खुलास करने में जुटी हैं। ऐसे में अब उनकी इस कामयाबी पर धाकड़ फिल्‍म के निर्माता दीपक मुकुट एक बायोपिक भी बनाने जा रहे हैं। खास बात इसे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर रिलीज करने की प्लानिंग है।

आईएन ब्यूरो

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