जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के उन्मूलन और राज्य पुनर्गठन यानी केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार यहां  डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (DDC) के चुनाव हो रहे हैं। व्यवस्था परिवर्तन के बाद नया जम्मू-कश्मीर बनने की प्रक्रिया में है। इसे वहां के लोग बेहद मजबूती प्रदान कर रहे हैं। एक दशक पहले PoK के मुजफ्फराबाद से कश्मीर के कुपवाड़ा आकर बसीं सुमैया सदाफ जो DDC का चुनाव लड़ रही हैं। उनका पति आतंक के रास्ते पर था लेकिन अब वे दोनों लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करते हैं। सुमैया, कैसा जम्मू-कश्मीर चाहती हैं। उस नए जम्मू-कश्मीर की झलक उनकी बातों से मिलती है।
एक दशक पहले जब उनके पति ने आतंकवाद का रास्ता छोड़ने का फैसला किया तो वह कश्मीर आ गईं। सरकार जब चुनाव करा रही तो इस बार सुमैया DDC का चुनाव लड़ रहीं हैं। सातवें चरण में उनके यहां वोट डाला जा चुका है। सदाफ ने सोचा नहीं था कि वह कश्मीर आकर मुख्यधारा में सम्मान से जी सकेंगी। साल 2010 में सरकार की पुनर्वास नीति के तहत कई आतंकी आतंक की राह को तौबा कर अपने घर कश्मीर घाटी लौट रहे थे तो सुमैया भी कुपवाड़ा के बतरगाम के रहने वाले आतंकी पति के साथ घाटी आ गई थी।
गुलाम कश्मीर (POK) की रहने वाली महिला सुमैया सदाफ कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के द्रगमुला निवार्चन क्षेत्र से जिला विकास परिषद यानी डीडीसी का चुनाव लड़ रही है। वो पूर्व आतंकी की पत्नी होने के बावजूद मुख्यधारा में आकर आज आतंकियों के गढ़ कुपवाड़ा में शांति का पैगाम दे रही हैं। सुमैया का कहना है कि सरकार हर व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती है, लेकिन हर हाथ स्वरोजगार से आजीविका कमा सकता है।
उनका कहना है कि यदि वह DDC का चुनाव जीतती हैं तो स्वरोजगार स्थापित करने के लिए लोगों को प्रेरित करेंगी। खासकर महिलाओं को आगे बढ़ाने का विशेष रूप से प्रयास करेंगी। उन्होंने बताया कि वह राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का हिस्सा रह चुकी हैं। उन्‍होंने फिल्ड में काफी काम किया है। लोगों के दुख-दर्द को करीब से समझा है।
जब यहां DDC के चुनाव की सरगर्मी बढ़ी तो लोगों ने ही उन्हें डीसीसी चुनाव लड़ने को प्रेरित किया। इसलिए वह लोगों की भलाई के लिए ही इस चुनावी मैदान में उतरी हैं। सात दिसंबर को चौथे चरण में कुपवाड़ा में मतदान हो गया। सुमैया का चुनाव चिह्न लैपटॉप था। मतदान के दौरान वह काफी उत्साहित थीं। उन्हें भरोसा था कि लोगों ने जब चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया तो लोगों का वोट के रूप में प्यार भी उसे जरूर मिलेगा।
सुमिया सदाफ ने बताया, कुपवाड़ा के बतरगाम गांव का रहने वाला उनका पति  सीमा पार कर पीओके हथियारों की ट्रेनिंग के लिए चला गया था। उसी दौरान उसकी शादी इस आतंकी से हो गई थी। कुछ समय बाद आतंक की राह उसके पति को कठिन लगने लगा। उसे एहसास हुआ कि वह गुमराह हो गया है। जब यहां की सरकार ने पुनर्वास नीति के तहत गुमराह होकर आतंकी बने युवाओं को मुख्यधारा में लौट आने का अवसर दिया तो 2010 में सुमैया के पति ने कश्मीर घाटी लौट जाने का फैसला किया।
सुमैया ने भी अपने पति के साथ भारत आने को तैयार हो गई। वह हमेशा शांति पसंद रही है। डीडीसी उम्मीदवार सुमैया ने बताया कि उसे जम्हूरियत पर हमेशा से भरोसा रहा है। इसलिए वह शांति का पैगाम लेकर चुनावी मैदान में उतरी हैं। वह कहती हैं कि विकास समाज में शांति के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिशा में मिलकर काम करना चाहिए।.
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