कृषि कानून वापसीः किसने मारी किसके पैर पर कुल्हाड़ी- मोदी सरकार ने या आंदोलनजीवियों ने किसानों के पैर पर!

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कृषि कानून को वापस लेने का फैसला किया है। पिछले साल भर से इन तीनों कानून के खिलाफ किसान संगठन विराध प्रदर्शन कर रहे थे। कानून वापसी के  ऐलान का लिए दिन चुना गया प्रकाश पर्व का। पीएम ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम 18 मिनट के संबोधन में यह बड़ा ऐलान किया। उन्होंने कहा कि सरकार ये कानून किसानों के हित में नेक नीयत से लाई थी, लेकिन हम कुछ किसानों को समझाने में नाकाम रहे। पीएम के इस फैसले का किसानों ने स्वागत किया है। हालांकि विरोधी दल कांग्रेस के लिए ये खतरे की घंटी है, क्योंकि अगले साल पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा को चुनवों में इसका फायदा मिल सकता है। </p>
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<strong>बीजेपी नेताओं का हो रहा था विराध</strong></p>
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किसान आंदोलन के चलते कई राज्यों में बीजेपी के नेताओं को भला-बुरा सनना पड़ रहा था। हरियाणा में कई बार बेजीपी के मंत्री और नेताओं को विराध का सामना करना पड़ा था। इस विराध के चलते अगले साल होने वाले विधानसभी चुनाव के लिए बीजेपी की चिंता बढ़ गई थी। कई नेता इसे लेकर हाई कमान से बात कर रहे थे। चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में बीजेपी के लिए किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बन गया था। पंजाब में अकाली दल कृषि कानून के चलते ही बीजेपी से अलग हो गई थी और किसानों के साथ सड़क पर आ गए थी।</p>
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<strong>पंजाब में राह होगा आसान</strong></p>
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पंजाब में किसान ही राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं। वहां किसान संगठनों का काफी असर है। ऐसे में किसानों को नाराज कर के बीजेपी का चुनाव जीत पाना मुश्किल हो जाता। वहीं, कृषि कानून के चलते यूपी में किसान आंदोलन बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थी। जाट समुदाय से लेकर गुर्जर, सैनी जैसी किसानी करने वाली जातियां कृषि कानूनों के खिलाफ थीं। बीजेपी 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी की इन्हीं तमाम ओबीसी जातियों के दम पर  सत्ता में आई थी।</p>
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उत्तराखंड़ में भी भाजपा की स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी। उत्तराखंड के तराई बेल्ट में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गई है। सूबे की करीब 2 दर्जन विधानसभा सीटों पर किसान राजनीति प्रभावित करते हैं। ऐसे में कुर्सी को बचा कर रख पाना मुश्किल दिख रहा था। हालांकि बीजेपी ने किसानों की नारजगी दूर करने की हर संभव कोशिश की। लेकिन सफलता नहीं मिली। आखिर में चुनाव नजदीक आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों को खत्म करने का एलान कर दिया है। जो कि आने वाले चुनाव में गेंमचेंजर साबित हो सकती है।</p>

Gyanendra Kumar

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