किसान आंदोलन को सुलझाने के लिए विज्ञान भवन में गुरुवार को हुई चौथे दौर की बैठक बिना किसी ठोस नतीजे खत्म हो गई। किसानों की मांगों को लेकर सरकार का रुख पहले से नरम हुआ है मगर किसान झुकने को तैयार नहीं हैं। तीनों कानूनों को लेकर किसानों के तेवर को देखते हुए केंद्र सरकार कई विषयों पर विचार करते हुए बीच का रास्ता निकालने की दिशा में आगे बढ़ गई है। सरकार की मंशा कानून वापस नहीं लेने की है, लेकिन किसानों की जिद को देखते हुए कुछ पहलुओं पर नए उपाय करने की तैयारी है।
नए कानून से मंडियों को लेकर उपजी आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन की पहल करने की सोच रही है। गुरुवार को सकारात्मक माहौल में देर तक चली बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि 5 दिसंबर की बैठक निर्णायक होने वाली है। उधर, किसान नेताओं ने मीडिया से स्पष्ट कहा है कि उन्हें बीच का रास्ता नहीं चाहिए। बल्कि वे तीनों कानूनों को वापस लिए जाने तक आंदोलन चलाएंगे।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश की मौजूदगी में गुरुवार को 12.30 बजे से विज्ञान भवन, नई दिल्ली में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ चौथे दौर की बातचीत करीब 7 घंटे तक चली। सरकार के अनुरोध पर इस बैठक में सभी किसान प्रतिनिधि तीनों कानूनों पर अपनी आपत्तियों को लिखकर ले गए थे, जिससे प्वाइंट टू प्वाइंट बातचीत में आसानी रही।
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसान नेताओं से कहा, "सरकार खुले मन से चर्चा कर रही है। आप अपने मन से यह बात निकाल दें कि सरकार किसानों को लेकर किसी तरह का इगो रखती है। किसान भाइयों के साथ सरकार खड़ी है। वार्ता के जरिए ही सकारात्मक परिणाम सामने आ सकता है।"
तीनों मंत्रियों ने सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से पहले कानून को लेकर मन में उठने वाले सवाल पूछे। लगभग सभी किसान प्रतिनिधियों ने सितंबर में बने तीनों कृषि कानूनों को हटाने के साथ प्रदूषण के लिए जुर्माने के नियम को निरस्त करने की मांग की। किसानों ने आगे आने वाले इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट एक्ट पर भी नाराजगी जाहिर की।
<h2>किसानों को मंडियों और एमएसपी को लेकर आशंकाएं</h2>
किसान नेताओं ने मंडियों और एमएसपी के खत्म होने को लेकर आशंकाएं व्यक्त की। जिस पर कृषि मंत्री तोमर ने उनकी सभी मांगों पर सरकार द्वारा विचार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि <a href="https://hindi.indianarrative.com/krishi/the-provider-does-not-have-to-be-misled-about-the-minimum-support-price-13689.html"><strong>न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)</strong></a> पहले की तरह जारी रहेगा। सरकार इस बात पर विचार करेगी कि एमपीएमसी सशक्त हो तथा इसका उपयोग और बढ़े। नए कृषि कानून में एपीएमसी की परिधि के बाहर निजी मंडियों का प्रावधान होने से इन दोनों में कर की समानता के संबंध में भी विचार किया जाएगा। कृषि उपज का व्यापार मंडियों के बाहर करने के लिए व्यापारी का रजिस्ट्रेशन होने के बारे में भी विचार होगा। विवाद के हल के लिए एसडीएम या न्यायालय, क्या व्यवस्था रहे, इस पर विचार किया जाएगा।
किसानों ने <a href="https://hindi.indianarrative.com/krishi/know-who-will-be-called-in-the-new-law-agricultural-products-business-sector-and-how-will-trade-13056.html"><strong>कॉट्रैक्ट फार्मिंग</strong></a> को लेकर भी आशंकाएं व्यक्त की। इस पर कृषि मंत्री ने कहा कि किसान की जमीन की लिखा-पढ़ी करार में किसी सूरत में नहीं की जा सकती। फिर भी यदि कोई शंका है तो उसका निवारण करने के लिए सरकार तैयार है। अब 5 दिसंबर को दोपहर दो बजे से होने वाली बैठक में किसान संगठनों की ओर से उठाए बिंदुओं पर फिर वार्ता की जाएगी। कृषि मंत्री नरेंद्र ने उम्मीद जताई कि यह बैठक निर्णायक होने वाली है।
<h2>किसान नेताओं की सरकार के तीनों मंत्रियों से दो-टूक मांग</h2>
किसान नेताओं ने विज्ञान भवन में गुरुवार को चली सात घंटे की बैठक में केंद्र सरकार के तीनों मंत्रियों से दो-टूक कह दिया कि कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन जारी रहेगा। सरकार के कई मांगों पर नरम रुख के बावजूद किसान नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें संशोधन मंजूर नहीं है, बल्कि वे कानूनों का खात्मा चाहते हैं। किसान नेताओं ने <a href="https://hindi.indianarrative.com/india/farmers-protests-government-bjp-organization-caa-new-challenge-19626.html"><strong>तीन कृषि कानूनों</strong> </a>के अलावा हाल में प्रदूषण पर मोटा जुर्माना और सजा वाले एक्ट को भी हटाने की मांग की है।
किसानों के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि चौथे दौर की बैठक इसलिए बेनतीजा रही क्योंकि सरकार की मंशा साफ नहीं है। सरकार ने अभी तक अड़ियल रुख दिखाया है। किसानों के हौसले बुलंद हैं। किसान खाली हाथ नहीं जाने वाले हैं। जब तक किसान विरोधी कानून समाप्त नहीं होंगे, आंदोलन चलता रहेगा।.
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