किसान आंदोलन : सरकार और भाजपा संगठन के सामने सीएए के बाद नई चुनौती

एक साल में दूसरी बार भाजपा संगठन और उसके नेतृत्व की केंद्र सरकार को कानूनों के मुद्दे पर चुनौती का सामना करना पड़ा है। नागरिकता संशोधन कानून के बाद अब किसानों से जुड़े कानूनों पर हो रहे आंदोलन को सुलझाने के लिए सरकार और संगठन के स्तर से कोशिशें हो रही हैं। इस साल फरवरी में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान फरवरी में दिल्ली को दंगों की आग में भी झुलसना पड़ा था। अब पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली के बॉर्डर को किसानों के लिए बने 3 कानूनों के विरोध में घेर लिया है।

सरकार का कहना है कि वह किसानों से बातचीत कर कृषि से जुड़े तीनों कानूनों की हर गुत्थी सुलझाने को तैयार है। लेकिन बातचीत सड़क पर नहीं हो सकती। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अपने बयान में 3 दिसंबर को किसानों से बातचीत की बात कह चुके हैं।
<h2>आंदोलन पर भाजपा में मंथन शुरू</h2>
भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने पंजाब और हरियाणा की प्रदेश इकाइयों को किसानों के आंदोलन को लेकर लगातार रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया है। राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ किसानों के आंदोलन पर नजर रखे हुए हैं। किसान नेताओं से भी संपर्क कर तीनों किसान कानूनों को लेकर गलतफहमी को दूर करने की तैयारी हो रही है। भाजपा ने अपने किसान मोर्चा को भी इस कार्य में लगाया है। किसानों के बीच जाकर के कानूनों से जुड़े प्रावधानों को समझाने का निर्देश दिया गया है।

भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ पदाधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "तीनों कानून व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार हुए हैं। सदन में भी चर्चा हुई। अगर किसान संगठनों से जुड़े लोग तीनों कानूनों का सही तरह से अध्ययन करें तो उन्हें कुछ भी गलत नजर नहीं आएगा। आंदोलन गलतफहमी का नतीजा है।
<h2>सरकार में भी बैठक बाजी</h2>
कृषि मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली सीमा पर हरियाणा और पंजाब के किसानों के डट जाने के बाद सरकारी बैठकों का दौर भी शुरू हुआ है। किसानों की मांगों का अध्ययन हो रहा है। हालांकि सरकार कानून के मुद्दे पर बैकफुट पर आने को तैयार नहीं है। किसान संगठन तीनों कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। जबकि सरकार का कहना है कि तीनों कानून किसानों को फायदा पहुंचाने वाले हैं। कानून बिल्कुल वापस नहीं हो सकते।.

डॉ. शफी अयूब खान

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