मानसून सत्र में संसद में इस बार नहीं बनेगा खाना, सिर्फ पैक्ड फूड की इजाजत

मानसून सत्र के दौरान संसद की प्रसिद्ध कैंटीन में इस बार सांसद लजीज व्यंजनों का स्वाद नहीं उठा सकेंगे। वहां केवल पैक्ड खाद्य सामग्रियां हीं उपलब्ध होंगी। संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। मांसाहारी व्यंजनों को छोड़कर, सत्र के दौरान संसद में परोसे जाने वाले अन्य व्यंजन और स्नैक्स को उत्तरी रेलवे द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में इसके बंगाल स्वीट्स वेंडर के माध्यम से मंगाया जाएगा।

उत्तरी रेलवे 1968 से संसद में खान-पान सेवाएं प्रदान कर रहा है। कड़े कोविड-19 प्रोटोकॉल के कारण वर्तमान चालू कैंटीनों में से तीन में केवल चाय, कॉफी और कहवा बनाए जाएंगे। यहां चीज रोल 28 रुपये में, खस्ता कचौड़ी 10 रुपये में, समोसा 10.90 रुपये में, वेजिटेबल सैंडविच 19.75 रुपये में, वेजिटेबल पेट्टी 25 रुपये में, पनीर पकौड़ा 15.90 रुपये में, वेजिटेबल कबाब 75 रुपये में, गुलाब जामुन 15.40 रुपये में उपलब्ध होंगे।

मांसाहारियों के लिए रायता के साथ चिकन बिरयानी 100 रुपये में उपलब्ध होगा। वहीं ड्राइ पैक्ड लंच में चिकन कटलेट या फ्राइड फिश आदि होंगे, जिसकी कीमत 150 रुपये होगी। ये सब संसद के बाहर नॉर्थ एवेन्यू कैंटीन में बनाया जाएगा।

उत्तर भारतीय लंच में एक पनीर की सब्जी, दाल तड़का या पचमेला, जीरा राइस या मटर पुलाव, अचार, रायता या दही, दो तवा रोटी और एक मिठाई दिया जाएगा। वहीं दक्षिण भारतीय लंच में एक इडली, एक वड़ा, एक मिनी डोसा, एक मिनी उत्तपम, सांभर और चटनी दी जाएगी।

1 अक्टूबर तक जारी सत्र में वेज बिरयानी 75 रुपये में, पोहा/उपमा चटनी के साथ 55 रुपये में, इडली/वड़ा 50 रुपये में चटनी के साथ कंबो मिल्स के रूप में परोसे जाएंगे। सेंट्रल हॉल स्थित स्नैक्स बार कैंटीन में इन पैक्ड खाद्य सामग्रियों को दिया जाएगा। सांसद रूम नंबर 70 और 73 में अपना खाना खा सकते हैं।

पहली बार सांसदों के लिए लंच के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के नियम लागू किए गए हैं। इस नियम के मुताबिक एक टेबल पर केवल दो या तीन सांसद ही बैठ सकेंगे।

दो अन्य कैंटीन-पार्लियामेंट एनैक्स के पास एक कैंटीन और दूसरा लाइब्रेरी बिल्डिंग के पास स्थित कैंटीन से मीडिया और कर्मचारियों को खाना दिया जाएगा। मीडियाकर्मी रूम नंबर 54 और संसद के कर्मचारी रूम नंबर 74 में भोजन ग्रहण करेंगे। वहीं रिसेप्शन वाली कैंटीन 15 अप्रैल से ही बंद है।.

डॉ. शफी अयूब खान

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