बरकरार है अभी तक राष्ट्रपति के.आर नारायण का रिकॉर्ड, द्रौपदी मुर्मू 15वीं राष्ट्रपति या 16वीं देखें एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

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यूं तो हम अंग्रेजों से कार्यकारी सत्ता हस्तांतरण (आजादी) के 75वें वर्ष में कदम रख चुके हैं। लेकिन हमारे पहले राष्ट्राध्यक्ष यानी भारत के पहले राष्ट्रपति का चुनाव आजादी से पांच साल बाद 1952 में हुए। इसका मतलब यह भी 1947 के पांच साल बाद तक हमारा शासक अंग्रेज जॉर्ज षष्ठम यानी ब्रिटेन का महाराजा अलबर्ट फेडरिक अर्थर जॉर्ज  ही था।साफ शब्दों में हकीकत बयान करें तो 6 फरवरी 1950 तक यूनाईटेड किंगडम का महाराजा जॉर्ज षष्ठम ही भारत का शासक था। माउंटबेटेन ब्रिटिश शासन का आखिरी ब्रिटिश प्रतिनिधि और सी राजगोपालाचारी ब्रिटिश शासन के पहले और आखिरी भारतीय प्रतिनिधि थे। यह भी कहा जा सकता है कि संविधान बन जाने और उसे अंगीकार किए जाने के दिन तक भारत की सत्ता पर अंग्रेजों की मुहर ही लगती थी। सी राजगोपालाचारी अंग्रेजी सत्ता के प्रतिनिधि गवर्नर जनरल थे।</p>
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बहरहाल, भारत के पहले राष्ट्र अध्यक्ष यानी राष्ट्रपति के पद पर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद निर्वाचित हुए। भारत में अब तक 16 राष्ट्रपतियों का निर्वाचन हुआ है, लेकिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए इसलिए इस बार निर्वाचित राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू को 15वां राष्ट्रपति कहा जा रहा है। भारत के राष्ट्रपति को मिले मतों की अनुपातिक गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है। इस तरह से अभी तक सबसे ज्यादा वोट राष्ट्रपति केआर नारायण को 956290 को मिले थे। उनका रिकॉर्ड राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी नहीं तोड़ पाए उन्हें 922884 वोट मिले थे। नीलम संजीवा रेड्डी एक मात्र ऐसे राष्ट्रपति रहें हैं जिन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था।</p>
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<strong>द्रौपदी मुर्मू vs यशवंत सिन्हा 2022</strong></p>
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भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव 2022के लिए महिला आदिवासी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। दूसरी ओर विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को उनके सामने खड़ा किया। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को लेकर जैसी उम्मीद की जा रही थी वैसा ही हुआ। द्रौपदी मुर्मू करीब 64फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रहीं तो वहीं यशवंत सिन्हा 36फीसदी वोट ही हासिल कर पाए। द्रौपदी मुर्मू को कुल 2824वोट मिले। इन मतों का मूल्य 6,76,803रहा है। वहीं, यशवंत सिन्हा को कुल 1,877वोट्स मिले। इन मतों का मूल्य 3,80,177है।</p>
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<strong>रामनाथ कोविंद vs मीरा कुमार 2017</strong></p>
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पिछले 2017के राष्ट्रपति चुनाव में मोदी सरकार ने रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाया और विपक्ष ने लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को उतारा था। मीरा कुमार के पास 17विपक्षी दलों का समर्थन था। इनमें समाजवादी पार्टी और बसपा भी शामिल रहीं। लेकिन, राजद की साथी जदयू ने सबको चौंकाते हुए रामनाथ कोविंद के समर्थन मेमं आ गई। जिसके बाद इस राष्ट्रपति चुनाव में कोविंद को 7लाख 2हजार 44वैल्यू के वोट मिले और मीरा कुमार को 3लाख 67हजार 314वोट मिले। कोविंद 65.65फीसदी वोट हासिल कर जीत गए।</p>
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<strong>प्रणब मुखर्जी vs पीए संगमा 2012</strong></p>
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वर्ष 2012के राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए-2के प्रणब मुखर्जी इस सर्वोच्च पर बैठे। उन्हें विपक्ष के पीए संगमा के खिलाफ लगभग 70फीसदी वोट मिले थे। प्रणब मुखर्जी को 7लाख 13हजार 763मत प्राप्त हुए थे। पीए संगमा को सिर्फ 3,15,987वोट मिले थे।</p>
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<strong>प्रतिभा पाटिल vs भैरो सिंह शेखावत 2007</strong></p>
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भारत के राष्ट्रपति पद पर पहली बार कौई महिला इसी वर्ष 2007में बैठी। प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। पाटिल ने भाजपा उम्मीदवार भैरो सिंह शेखावत को हराया था। 2007के पाष्ट्रपति चुनाव में प्रतिभा पाटिल को 6,38,116वैल्यू के वोट मिले। उनके खिलाफ खड़े शेखावत को 3,31,306मत मिले थे।</p>
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<strong>एपीजे अब्दुल कलाम vs कैप्टन लक्ष्मी सहगल 2002</strong></p>
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वर्ष 2002में एनडीए सरकार ने पूर्व वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्हें कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी दलों का समर्थन मिला। यह इतिहास के सबसे एकतरफा मुकाबलों में से एक रहा। क्योंकि, वाम दलों के प्रत्याशी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को सिर्फ 1,07,366वोट मिले और अब्दुल कलाम को 10,30,250वोटों में से 9,22,884वोट मिले।</p>
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<strong>केआर नारायणन vs टीएन शेषन 1997</strong></p>
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साल 1997के हुए राष्ट्रपति चुनाव को इतिहास का सबसे एकपक्षीय चुनाव कहा जाता है। क्योंकि, इसमें यूनाइटेड फ्रंट सरकार और कांग्रेस ने केआर नारायणन को अपना प्रत्याशी बनाया। उनके खिलाफ शिवसेना ने पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को उतारा। विपक्ष में बैठी भाजपा ने भी नारायणन को ही समर्थन दिया था। केआर नारायणन को 9,56,290वोट मिले और शेषन महज 50,361वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत तक जब्त हो गई।</p>
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<strong>शंकर दयाल शर्मा vs जॉर्ज स्वेल 1992</strong></p>
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कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बनाए गए शंकर दयाल शर्मा ने 1992के राष्ट्रपति चुनाव में आसानी से जीत दर्ज कर ली। विपक्ष ने इस चुनाव में पूर्व सांसद और लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को खड़ा किया था। स्वेल को उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और भाजपा ने समर्थन दिया था। लेकिन, शंकर दयाल शर्मा के पाले में 6,75,804वोट आए और स्वेल 3,46,486वोट पा सके। इसी राष्ट्रपति पद के चुनाव में वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी भी अपनी किस्मत आजमा रहे थे लेकिन, उन्हें सिर्फ 2704कीमत के वोट हासिल हुए थे। इसके अलावा देशभर में 300चुनाव लड़ चुके काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ भी खड़े हुए थे। उन्हें 1135वोट मिले थे।</p>
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<strong>आर वेंकटरमण vs वीआर कृष्ण अय्यर 1987</strong></p>
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उपराष्ट्रपति रह चुके आर वेंकटरमण को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया। वहीं, लेफ्ट की ओर से शुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर को खड़ा किया गया। हालांकि, लेफ्ट को हार का मुंह देखना पड़ा और वेंकटरमण ने आसानी से चुनाव जीत लिया। उन्हें 7,40,148वोट मिले, जबकि अय्यर 2,81,550मत हासिल हुए।</p>
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<strong>ज्ञानी जैल सिंह vs एचआर खन्ना 1982</strong></p>
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कांग्रेस ने 1982के हुए राष्ट्रपति चुनाव में ज्ञानी जैल सिंह को इस पद के लिए खड़ा किया। उनके सामने विपक्ष के नौ दलों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना को खड़ा किया। ये खन्ना वहीं हैं जिन्होंने इमरजेंसी के दौर में आपातकाल के खिलाफ खड़े हुए थे। उन्होंने 1977में जस्टिस एमएच बेग को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्ति दिए जाने के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, इस चुनाव में खन्ना सिर्फ 2,82,685वोट ही प्राप्त कर सकें और जैल सिंह 7,54,113वोट पाकर जीत हासिल कर ली।</p>
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<strong>नीलम संजीव रेड्डी 1977</strong></p>
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नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बनने वाले पहले और अब तक की इकलौती शख्सियत हैं। वर्ष 1977में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद उपराष्ट्रपति बीडी जट्टी ने कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला। लेकिन, छह महीने के बाद ही अगला चुनाव करा दिया गया, जिसमें 37उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया। लेकिन स्क्रूटनी में सिर्फ एक को छोड़कर सभी नामांकन रद्द हो गए। इकलौता बचा नामांकन नीलम संजीव रेड्डी का था।</p>
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<strong>फखरुद्दीन अली अहमद vs त्रिदीब चौधरी 1974</strong></p>
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वर्ष 1974में भारत के छठे राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस ने फखरुद्दीन अली अहमद को इस पद के लिए उतारा। उधर संयुक्त विपक्ष ने त्रिदीब चौधरी को अहमद के सामने खड़ा कर दिया। जो रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव और संस्थापक थे। वे पश्चिम बंगाल के बहरामपुर से लोकसभा सांसद भी थे। इस चुनाव में फखरुद्दीन अली अहमद को जीत हासिल हुई थी। उन्हें 7,65,587वोट मिले थे। उधर संयुक्त विपक्ष के चौधरी को सिर्फ 1,89,196वोट ही मिल सके।</p>
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<strong>वीवी गिरी vs नीलम संजीव रेड्डी 1969</strong></p>
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वर्ष 1969के राष्ट्रपति चुनाव को सबसे विवादित चुनावों में एक माना जाता है। क्योंकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वोटिंग से ऐन पहले अपना समर्थन निर्दलीय खड़े वीवी गिरी को दे दिया। दरअसल, जाकिर हुसैन के निधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 65 (1) के तहत वीवी गिरी ने कार्यकारी राष्ट्रपति का पद संभाला। लेकिन, जुलाई 1969में उपराष्ट्रपति पग से इस्तीफा देते हुए कार्यकारी राष्ट्रपति पद भी छोड़ दिया। ये वो भी दौर था जब कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी और पार्टी में जमकर जंग छिड़ी थी।</p>
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इनमें एक धड़ा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समर्थन वाला था, जबकि दूसरा धड़ा पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेताओं- 'सिंडिकेट' का था। कांग्रेस संगठन ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित किया। लेकिन, वेटिंग से पहले इंदिरा गांधी वीवी गिरी को समर्थ दे दिया और पार्टी सांसदों-विधायकों से अपील की कि वे आंतरात्मा की आवाज सुनें और वीवी गिरी को वोट दें। वीवी गिरी को इसमें 4,01,515वोट मिले, तो वहीं नीलम संजीव रेड्डी सिर्फ 3,13,548वोट ही जुटा सके।</p>
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इस चुनाव के बाद ही गंभीरता से चुनाव न लड़ने वाले उम्मीदवारों को बाहर करने के लिए कानून भी बनाया गया। क्योंकि, इसमें 12और उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव में शामिल हुए थे। गिरी और रेड्डी के अलावा सीडी देशमुख को इस चुनाव में 1,12,769वोट मिले थे। वैसे भी ये साल कांग्रेस के लिए कलह का समय रहा। क्योंकि, नीलम संजीव रेड्डी की हार के बाद कांग्रेस के तत्तालीन अध्यक्ष एस निजालिंगप्पा ने इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया और कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई।</p>
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<strong>जाकिर हुसैन vs कोका सुब्बाराव 1967</strong></p>
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देश का चौथे राष्ट्रपति चुनाव 1967में हुआ और इसमें कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया। विपक्ष ने इस चुनाव में 1967में ही रिटायर हुए चीफ जस्टिस कोका सुब्बाराव को उम्मीदवार बनाया। इन दोनों के अलावा इस चुनाव में 17लोग और भी राष्ट्रपति की कुर्सी की ओर टकटकी लगाए बैठे थे। हालांकि, सफलता जाकिर हुसैन को मिली, उन्हें इसमें 4,71,244वोट मिले और सुब्बाराव को 3,63,971वोट मिले। बाकी के 17में से नौ उम्मीदवारों का तो खाता तक नहीं खुल सका।</p>
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<strong>सर्वपल्ली राधाकृष्णन vs चौधरी हरिराम 1962</strong></p>
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वर्ष 1962में जब राजेंद्र प्रसाद का राष्ट्रपति कार्यकाल जब खत्म हुआ तो कांग्रेस ने इस सर्वोच्च पद के लिए उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अगले खड़ा किया। उनके सामने दो लोग और थे चौधरी हरिराम और यमुना प्रसाद त्रिसुलिया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 5,53,067वोट मिले। हरिराम को 6,341वोट मिले। वहीं, तीसरे उम्मीदवार यमुना प्रसाद त्रिसुलिया को 3,537वोट मिले।</p>
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<strong>राजेंद्र प्रसाद vs चौधरी हरिराम 1957</strong></p>
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वर्ष 1957में हुए चुनाव से पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे और उन्होंने इसमें दोबारा मौका दिया गया। इस चुनाव में राजेंद्र प्रसाद बड़ी ही आसानी से जीत हासिल करते हुए दोबारा राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठकर दो बार राष्ट्रपति रहने का इतिहास रच दिया। ये एकतरफा मुकाबला रहा जिसमें प्रसाद को 4,59,698वोट मिले। चौधरी हरिराम को 2672वोट और नागेंद्र नारायण दास को 2000वोट मिले।</p>
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<strong>राजेंद्र प्रसाद vs केटी शाह 1952</strong></p>
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आजाद भारत में पहले राष्ट्रपति का चुनाव वर्ष 1952 में हुआ और इसके लिए कांग्रेस ने राजेंद्र प्रसाद को मौदाम में उतारा तो दूसरी ओव लेफ्ट ने केटी शाह को खड़ा किया। इसी चुनाव में चौधरी हरिराम ने भी राजेंद्र प्रसाद को चुनौती दी थी। हालांकि, इस चुनाव में 5,07,400 वैल्यू वोट हासिल करते हुए राजेंद्र प्रसाद ने एकतरफा जीत हासिल की। लेफ्ट के केटी शाह सिर्फ 92,827 वोट ही पा सके। वहीं चौधरी हरिराम को भी 1954 वोट मिले। दो अन्य उम्मीदवार थट्टे लक्ष्मण गणेश को 2672 और कृष्ण कुमार चटर्जी को 533 वोट हासिल हुए थे।</p>
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Vivek Yadav

Writer

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