खुदाबख्श को मिले लोक में राम, लिखी 'हरियाणवी रामायण'

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'रामायण' की चर्चाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर रामायण को रिटेलिकास्ट करने के बाद इसने विश्व रिकार्ड बनाए थे। इन दिनों रामायण को लेकर इंटरनेट पर सर्च और सोशल मीडिया पर चर्चा खूब हो रही है। पिछले दिनों <strong>याहू</strong> ने अपने प्लेटफार्म पर सबसे ज्यादा सर्च किये गये अभिनेता, सीरियल, गाने, राजनेता, क्रिकेटर के बारे में जानकारी साझा की थी। इसमें रामायण धारावाहिक को इंटरनेट पर खूब सर्च किया गया है। याहू प्लेटफार्म पर खोजे गये धारावाहिकों में रामायण चौथे स्थान पर है।</p>
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इधर, गुरुवार को हरियाणा सरकार ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट किया। <strong>उसमें सवाल किया गया, हरियाणवी रामायण की रचना किसने की थी?</strong>  इस पर तमाम लोगों ने ट्वीट किये। सरकार इस बात को लोगों तक पहुंचाना चाहती थी कि एक मुसलिम कवि ने हरियाणवी रामायण की रचना की है। उनका नाम खुदाबख्श अहमद है। हालांकि रामकाव्य को सिर्फ हरियाणवी में ही नहीं लिखा गया है। रामायण आदिकाल से विश्व प्रसिद्ध है। हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥ रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥</p>
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<a href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8">रामचरितमानस</a> की इस लोक प्रसिद्ध चौपाई का सामान्य अर्थ है-  हरि अनंत हैं  और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते। रामकाव्य हजारों साल से देश-विदेश में प्रचलित है। जो जगह-जगह पर भाषा और संस्कृति के हिसाब से लोक साहित्य का हिस्सा बनीं है। इस कारण से भारत के दक्षिण, दक्षिण पूर्व, मध्य पूर्व के देश जैसे- श्रीलंका, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, ईरान, इराक में रामकाव्य और रामायण के पात्र आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के हिस्सा हैं। भारत में तो रामकाव्य तमिल, तेलुगू, मलयालम, बंगला, कन्नड़, ओड़िया, गुजराती, हरियाणवी समेत 20 से अधिक भाषाओं और बोलियों में लिखा गया। इसमें से कई भाषाओं के रामकाव्य आदिकाल के हैं।</p>
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हालांकि, हरियाणवी रामायण की रचना भारतेंदु युग की है। लेकिन हरियाणवी लोक और संस्कृति में रामकथा के पात्रों का नाम पहले से शामिल थे। उनको <strong>राम कथा  के साथ काव्य रूप प्रदान करने का श्रेय खुदाबख्श अहमद</strong> को जाता है। उन्होंने रामायण को देवनागरी लिपि और हरियाणावी बोली में प्रस्तुत किया। मिली जानकारी के मुताबिक, यह रचना बालकृष्ण मुज़्तर के संपादन में हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से साल 1983 में प्रकाशित की गई है। जो प्रकाशन से करीब सौ साल पहले की है। <strong>रामचरितमानस</strong> सात कांड में है लेकिन हरियाणवी ‘रामायण’ छह कांड में ही है।</p>
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खुदाबख्श के बारे में बताया जाता है कि वे कम पढ़े-लिखे थे लेकिन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने विभिन्न विद्वानों की रचित रामकथा का भली-भांति अध्ययन किया। रामकथा के आदिकाव्य ‘वाल्मीकि रामायण’ तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ उनके विचार केंद्र में थे। उन्होंने तुलसीदास का बखान कई बार किया है। एक उल्लेख यहां प्रस्तुत है-</p>
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<em>कट कट फिर असुर जीवित झट झट प्रभु मन में सोच विचारत हैं<br />
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<em>सब देवता लोग बिवान चढ़े सिरधुन आहाकार पुकारत हैं</em> </p>
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<em>देखत महादुखत भक्त-बत्सल आपनी माया रच डारत है</em></p>
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<em>सौ चैदां सहस अुसर तन तन श्री रामरूप विस्तारत हैं।</em></p>
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<em>एक को एक दिखता दास तुलसी यही लिखा</em></p>
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<em>जिसे लिखे पर सावधान अहमद कविता दिखता।</em></p>
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खुदाबख्श की हरियाणवी रामायण की रचना से मालूम पड़ता है उन्होंने रामकाव्य परंपरा में गहरी पैठ की थी। उन्होंने सगुण, निर्गुण, मर्यादित, आदर्श, दार्शनिक और जन-जन के राम की पहचान की और बखूबी प्रस्तुत किया। एक उदाहरण इस प्रकार है-</p>
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<em>गीध चला बैकुण्ठ को कर दर्शन भगवान्</em></p>
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<em>गुणनवाद उच्चारता रिपू सूदन भान</em></p>
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<em>राम तुम रूप अनूप सगुण निर्गुण</em></p>
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<em>दस शीष बीस भुज का प्रचंड भव भय मोचन प्रभुनिस आसन</em></p>
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<em>अनाद अगाध मर्याद काज गए प्रगट आप ब्रह्म पूर्ण धन</em></p>
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<em>तुम्हे संत जी जपत अनन्त जान गुण जान पछान ऋषि सुमरन</em></p>
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<em>सब जगत तुम्हारा नहीं तुम बिन निस्तारा</em></p>
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<em>कर इतनी अस्तुति गीध बैकुण्ठ सधारा</em></p>
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खुदाबख्श की रचना में राम लोकल हैं यानी हरियाणवी हैं। वह हरियाणवी रीति-रिवाजों के अनुकूल पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति हैं। वह हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुकूल विवाह करते हैं और जीवन व्यतीत करते हैं। राम की आदर्श पत्नी सीता को उन्होंने आदर्श पत्नी के अतिरिक्त शक्ति रूप में अवतारी, समस्त ब्रह्माण्ड को रचने वाली और समस्त प्रजा की पालनहारी के तौर पर स्वीकार किया है। जो इसमें साफ झलकता है-</p>
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<em>अरी माता तू पाप को जिन पाला बत्तीस धार</em></p>
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<em>सीता माता धर्म की शक्ति रूप अवतार</em></p>
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<em>सर्व ब्रह्माण्ड के रचने हारी है</em></p>
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<em>ऐसे मम भ्रात पिता सबके कुल खलक जगत बिस्तारी हैं।</em></p>
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<em>देवताओं के देव महादेव आप प्रलयकाल करन अधिकारी हैं</em></p>
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<em>यह ब्रह्म रूप सृष्टि रचिता विष्णु प्रजा पालन हारी हैं।</em></p>
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<em>इनसे अधिकाई जगत में किसने पाई</em></p>
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<em>जांऊ बन प्रभु संग मुझे आज्ञा दे भाई।</em></p>
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उनकी रचना में लक्ष्मण भी आदर्श भाई के रूप में सामने आते हैं। भरत को  उच्च आदर्श वाले भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सुग्रीव और हनुमान आदर्श मित्रों की मिसाल हैं और हनुमान को प्रचलित राम के अन्यय उपासक की छवि में प्रस्तुत किया गया है। लोक परंपरा के धनी खुदाबख्श ने हरियाणा के पर्व-त्यौहारों, ब्याह-शादियों के रीति-रिवाजों की संस्कृति के हरेक गतिविधियों को अपनी ‘रामायण’ में बड़ी सहजता से स्थान दिया है। राम के विवाह की नाई के हाथों चिट्ठी लाने से लेकर सीता की डोली ले जाने के प्रसंग को कवि ने  किसी आम हरियाणवी की विवाह के समान चित्रित किया है। इसका यहां पर एक उदाहरण प्रस्तुत है -</p>
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<em>मंडा चढ़या जनक ने बुला बिठाए पंच</em></p>
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<em>सीता का कंगणा बंधा खिल गया रूप अटंच</em></p>
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<em>जानो साक्षात लक्ष्मी बिराज रही</em></p>
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<em>सब देवांगना महलों में धर रूप स्त्रियां आज रही</em></p>
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<em>चल ले बारात नृप सबके साथ जहां दशरथ महाफिल साज रही</em></p>
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<em>एक सह अशरफी अश्व बहुत दस गज रथ बेअन्दाज रही</em></p>
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<em>हुई सिमधी से मिलाई जनक शाबाशी पाई</em></p>
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<em>चलो जल्द ढुकाओं राव क्यों देर लगाई।</em></p>
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एक मुसलमान कवि का रामकथा लिखना अपने आप में ही बड़ी उपलब्धि है। हिंदी साहित्य का भारतेंदु युग (उन्नीसवीं शताब्दी) सामाजिक और राजनैतिक झमेलों के बीच  फंसी रही। जन सामान्य को आदर्श, मर्यादा, बंधुत्व और धर्म की सही पहचान कराना समय की मांग थी। यह वही दौर था जब भारत में सांप्रदायिकता की बीज ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने बोना शुरू कर दिया था। जबकि हजारों साल से हरियाणा का इलाका बाहरी आक्रमणकारियों का युद्ध मैदान भी रहा है। इस बीच, हिंदु-मुस्लिम तनाव और टकराव की स्थिति सैकड़ों साल से रहती है। ऐसे में अंग्रेजों की सांप्रदायिकता की आंच सामाजिक समरसता को और बिगाड़ ही रही थी, तब  खुदाबख्श ने अपने को पंगु होने से बचाया। वह हरियाणवी में रामकाव्य लिखकर समाज को सच्चा संदेश दे गये।.</p>

रोहित शर्मा

Guest Author

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