किसान आंदोलन (Kisan Andolan 2020) के सातवें दिन एनडीए सरकार में काफी गहमागहमी रही। सरकार आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री किसान आंदोलन (Kisan Andolan 2020) और कृषि सुधार कानूनों के बीच नया रास्ता निकालने पर माथा पच्ची करते दिखाई दिए। बताया जा रहा है कि सरकार और किसानों नेताओं के मध्य बैक डोर डिप्लोमेसी भी चल रही है। इस बैक डोर डिप्लोमेसी का फायदा यह बताया जा रहा है कि सरकार किसानों की एक नहीं बल्कि तीन-तीन मांगों को मानने पर राजी हो गई है। किसानों की तीनों मांगों को किस तरह कानून में शामिल किया जाएगा। किस हिस्से को कानून बनाया जा सकता है और किसको सरकार की नीति में शामिल किया जाएगा। इन सब बातों पर ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि ड्राफ्ट लगभग तैयार है और गुरुवार को दोपहर होने वाली बैठक में ड्राफ्ट किसान नेताओं से बात होने के बाद देश के सामने लाया जाएगा। इससे पहले किसान आंदोलन (Kisan Andolan 2020) को खत्म करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह से पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह से मुलाकात करने वाले हैं।
बुधवार देर शाम तक किसानों की तीन प्रमुख मांगों की तकनीकि विचार विमर्श से जुड़े विश्वसनीय पदाधिकारी ने बाताया है कि एमएसपी को कानून में शामिल किए जाने की मांग के अलावा सरकार किसानों की दो और मांगों को भी सिद्धांततः स्वीकार कर चुकी है। यह दोनों मांगों में पहली मण्डी समितियों को यथावत बनाए रखने और फसल का मूल्य तीन दिन में न मिलने पर शिकायत करने के अधिकार को और अधिक सशक्त बनाने की है। गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई हाई लेवल मीटिंग में चर्चा हुई कि एमएसपी को कानून बना देते हैं तो हरसाल समर्थन मूल्य की ऐलान से पहले सरकार को संसद से अनुमति लेनी पड़ेगी। हालांकि, किसानों के प्रस्ताव पर विरोध की उम्मीद कम ही है लेकिन एक औपचारिकता अवश्य बढ़ जाएगी। बैठक में यह भी कहा गया कि जब किसान ही ऐसा चाहते है तो फिर सरकार को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दूसरी मांग, मण्डी समितियों की व्यवस्था को बनाए रखने की थी। मण्डी समितियां राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है। राज्य और केंद्र मिल कर ऐसा मैकेनिज्म तैयार कर रहे हैं जिससे मण्डी समितियां बनी रहें। तीसरी मांग फसल का मूल्य निर्धारित तीन दिनों में हासिल करने के अधिकार का है। तीन दिन में किसान को फसल मूल्य न मिलने पर की गई शिकायत का निराकरण अगर 30 दिन में भी नहीं हुआ तो संबंधित अधिकारी को जवाबदेह माना जाएगा। इसके लिए आरटीआई कानून वाला नियम लागू किया जा सकता है। जिस तरह आरटीआई कानून के तहत मांगी गई जानकारी 30 दिन के भीतर न देने पर जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और आर्थिक दण्ड का प्रावधान है लगभग वैसा ही किसानों की शिकायत के निराकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर प्रावधान लागू हो सकते हैं।
सरकार में बैठे लोगों को यह संदेश किसान आंदोलन की ओर से आ गया है कि जो बातें मौखिक तौर पर पहुंचाई जा रही हैं अगर ये वैसी ही ड्राफ्ट की शक्ल में आती हैं तो गुरुवार को किसान आंदोलन समाप्त हो सकता है।
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