कौन थे वो जिन्होंने तैयार किया था आजाद भारत के संविधान का पहला ड्रॉफ्ट और गांधी जी ने क्यों कर दिया खारिज, देखें खास रिपोर्ट

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26 नवंबर को हर साल देश में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारत के संविधान को अपनाने की याद दिलाता है। 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया गया और यह 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर को 1947 में संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया और उन्हें देश का नया संविधान लिखने की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन क्या आपको पता है कि इससे कुछ साल पहले ही संविधान का एक और मसौदा तैयार किया गया था, जिस महात्मा गांधी ने खारिज कर दिया था।</p>
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<strong>एक मसौदा 1950 से पहले ही तैयार हो गया था</strong></p>
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यह सच है कि 1950 से पहले भी संविधान का एक और मसौदा तैयार किया गया था लेकिन महात्मा गांधी के चलते इसे खारिज कर दिया गया। क्योंकि, उनका मानना था कि इस संविधान मसौदे की कुछ बातें अतिवादी हैं, जो व्यवहार रूप से संभव नहीं होंगी। इस संविधान ड्राफ्ट को भारत में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक एम एन राय ने तैयार किया था।</p>
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<strong>जवाहर लाल नेहरू के कहने बना लेकिन गांधी ने खारिज कर दिया</strong></p>
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माना जाता है कि जवाहर लाल नेहरू के कहने पर ही उन्होंने संविधान का एक मसौदा तैयार किया था। नेहरू के कहने पर उन्होंने इसपर 30 के दशक के आखिर में काम शुरू किया और 40 के दशक के शुरू में ही खत्म कर दिया। लेकिन जब से मसौदा कांग्रेस और गांधीजी के पास गया तो उन्हें ज्यादा पसंद नहीं आया और गांधीजी को ये मसौदा ज्यादा स्वछंद महसूस हुआ जिसके चलते उन्होंने इसे खारिज कर दिया। हालांकि, गांधी जी के खारिज किये जाने के बाद भी एम एन राय ने बाद में इसे प्रकाशित कराया। इस ड्राफ्ट को 1944 में कांस्टीट्यूशन ऑफ फ्री इंडिया के नाम से जनता के बीच चर्चा के लिए प्रकाशित किया गया।</p>
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<strong>क्या था यह मसौदा</strong></p>
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1944 में इस मसौदे के प्रकाशन होने के बाद ऐसा माना जाने लगा था कि ब्रिटेन जल्द ही भारत को आजाद कर देगा। यह मुख्यतः तीन उद्देश्यों पर आधारित था।</p>
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पहला यह कि भारत के संवैधानिक भविष्य को देखते हुए जब भी ब्रिटेन सत्ता का हस्तांतरण करे तो ये सीधे ब्रिटेन की संसद और भारतीय जनता के बीच हो। इसमें बीच में भारत के सियासी दल नहीं हों। मतलब ब्रिटेन भारतीय जनता की ओर से जिन मध्यस्थता कर रहे राजनीतिक दलों से बातचीत कर रहा है, उन दलों को बीच से हटा दिया जाए।</p>
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दूसरा यहा कि देश के लिए बेहतर संवैधानिक विजन की तैयारी की जा सके।</p>
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आर तीसरा सत्ता का हस्तांतरण ब्रिटेन से सीधे भारतीय जनता को हो।</p>
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<strong>खारिज करने के बाद भी प्रकाशित हुआ मसौदा</strong></p>
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प्रकाशित इस मसौदे में 13 अध्याय थे, जिसमे सात अध्याय संघीय केंद्र की बात करता है। जिसमें इसकी संरचना, क्रियान्वयन, संवैधानिक ताकत, चुनाव आदि की बात करते हैं। इसके बाद के अध्याय अधिकार और मूलभूत सिद्धांत, प्रांत, सामाजिक आर्थिक संगठन, न्यायपालिका और स्वशासित स्थानीय सत्ता पर हैं। इसमें एक चैप्टर प्राधिकार के स्रोत नाम से भी, जिसमें जनता की संप्रुभता तय करने की बात की गई है। एम एन राय का ये ड्राफ्ट वास्तविक केंद्रीकरण, प्रत्यक्ष लोकतंत्र, पूरे देश में स्थानीय स्तर पर निर्वाचित अधिकार संपन्न पीपुल्स कमेटी की पैरवी भी करता है, जिसमें इन जिलास्तरीय पीपुल्स कमेटी को अधिकार होंगे</p>
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<strong>अंडमान से क्रांतिकारियों को निकालने के लिए बनाया था प्लान</strong></p>
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एक समय में एम एन राय मानते थे कि भारत में अंग्रेजों से आजादी सिर्फ लड़ कर ली जा सकती है। इसके लिए उन्होंने 1915 में हथियारों की मदद के लिए जर्मनी भी गए और फिर अगले 16 सालों तक बाहर ही रहे। वो जर्मन जहाजों की मदद से अंडमान जाकर वहां कैद देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों को मुक्त कराने और उन्हें हथियारों से लैस कर ओडिसा के समुद्र तट से भारत में घुसने की योजना बना रहे थे। लेकिन पर्याप्त धन नहीं जुट सका, हालांकि, इस दौरान हथियारों और जहाजों का इंतजाम हो गया था। पर्याप्त धन न जुटने के साथ ही अचानक जर्मनी ने भी कमद पीछे खींच लिए।</p>
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<strong>12 साल की हुई थी सजा</strong></p>
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वर्ष 1887 में बंगाल में जन्में एम एन राय का असली नाम नरेंद्र भट्टाचार्य था लेकिन बाद में भारतीय क्रांतिकारी के तौर पर वो मानवेंद्र नाथ राय के नाम से जाने जाने लगे। आजादी के बाद 195 तक वह जिंदा रहे। आजादी के आंदोलन के दौरान वो लंबे समय के लिए जेल में भी रहे। दरअसल, जब वो भारत की आजादी के लिए रणनीतियां बना रहे थे और जर्मनी सहित अन्य देशों से मिल रहे थे तभी ब्रिटीश सीक्रेट एजेंट्स की नजरों में आ गए। वो कई देशों में घूमते रहे, सोवियत संघ जाकर वो लेनिन से भी मिले। 1930 में वो जब भारत लौटे तो उनकी राजनीतिक गतिविधियां एक साल ही चल पाई थी कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 12 साल की सजा हुई। हालांकि, बाद में यह सजा घटकर छह साल कर दी गई। वहीं, जब भारत की आजादी के बाद बीआर अंबेडक की अगुवाई में संविधान सभा समिति बनाई घई तो उससे उन्हें दूर रखा गया। और इस बात का उन्हें मलाल भी रहा।</p>
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आईएन ब्यूरो

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