गुमनाम नायकों का सम्मान, पद्म पुरस्कारों का बढ़ा सम्मान, मिलिए राष्ट्रपति भवन के लाल कालीन पर नंगे पांव चलने वाले देश के असली हीरों से

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देश के सबसे बड़े दरबार यानी की राष्ट्रपति भवन में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म पुरस्कारों' देने का कार्यक्रम का आयोजन हुआ। हॉल में देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सबसे ताकतवर माने जाने वाली हस्तियां बैठी हुईं थी। लाइट और कैमरों के बीच बेहद साधारण से दिखने वाले लोग जिनके बदन पर मामूली कपड़े थे पांव नंगे थे, उन्हें इस बार पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया। इस बार इन पुरस्कारों ने नागरिक का सम्मान नहीं बढ़या, बल्कि इन्होंने पुरस्कारों का सम्मान बढ़ा दिया है। हम ऐसे ही कुछ शख्यसियतों से आपको आज रूबरू कराएंगे जिन्होंने लाख कठिनायों के बाद भी अपने मेहनत और अथक प्रयास से समाज और देश को बदलने का जिम्मा उठाया है।</p>
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<strong>हरेकला हजब्बा</strong></p>
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राष्ट्रपति के हाथों देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'पद्म श्री' से नवाजी जा रही इस शख्सियत को देखिए। लुंगी के अंदाज में लपेटी गई सफेद धोती। सफेद रंग का शर्ट और गले में लपेटा हुआ एक सफेद गमछा। पैरों में चप्पल तक नहीं, बिल्कुल नंगे पांव। यह हैं कर्नाटक के हरेकला हजब्बा। दक्षिण कन्नड़ जिला के जिस गांव में वह पैदा हुए वहां स्कूल नहीं था, इसलिए पढ़ नहीं पाए। ठान लिया कि अब इस वजह से गांव का कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहेगा। संतरा बेचकर पाई-पाई जुटाए पैसों से उन्होंने गांव में स्कूल खोला। यह स्कूल 'हजब्बा आवारा शैल' यानी हजब्बा का स्कूल नाम से जाना जाता है।</p>
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<strong>तुलसी गौड़ा</strong></p>
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बदन पर चादर जैसे लपेटे हुए सांड़ी, पैग नंगा, ये हैं 72 साल उम्र की तुलसी गौड़ा। एक पर्यावरण योद्धा जिन्हें इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' के नाम से जाना जाता है। उन्हें भी सामाजिक कार्यों के लिए 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया है। तुलसी गौड़ा पिछले 6 दशकों से पर्यावरण सुरक्षा का अलख जगा रही हैं। कर्नाटक के एक गरीब आदिवासी परिवार में जन्मीं गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन उन्हें जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों के बारे में इतनी जानकारी है कि उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' कहा जाता है। हलक्की जनजाति से ताल्लुक रखने वाली तुलसी गौड़ा ने 12 साल की उम्र से अबतक करीब 30 हजार पौधे लगाकर उन्हें पेड़ का रूप दिया। अब वह अपने ज्ञान के खजाने को नई पीढ़ी के साथ साझा कर रही हैं, पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रही हैं।</p>
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<strong>राहीबाई सोमा पोपेरे</strong></p>
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साधारण लाल साड़ी में नंगे पांव यह हैं राहीबाई सोमा पोपेरे। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की एक आदिवासी महिला। पेशा खेती-किसानी लेकिन नारी सशक्तीकरण की सशक्त मिसाल। इन्हें 'सीड मदर' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने जैविक खेती को एक नई ऊंचाई दी हैं। 57 साल की पोपेरे स्वयं सहायता समूहों के जरिए 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देसी फसलों की खेती करती हैं। दो दशक पहले उन्होंने बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया। आज वह स्वयं सहायता समूहों के जरिए सैकड़ों किसानों को जोड़कर वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए जैविक खेती करती हैं।</p>

Gyanendra Kumar

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