खुफिया एजेंसियों ने उत्तर भारत, विशेषकर दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और उत्तर प्रदेश में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के विस्तार को लेकर सरकार को आगाह किया है।
सरकार को संगठन के विदेशी धन के स्रोतों के प्रति सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। साथ ही यह संदेश भी दिया गया है कि संगठन पिछले सात वर्षों के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में भारत विरोधी गतिविधियों के साथ-साथ 'भड़की हिंसा' में भी सहायक की भूमिका में रहा है।
एजेंसियों ने गृह मंत्रालय (एमएचए) को दिए गए अलर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि इसके स्लीपर सेल के विभिन्न सदस्य दिल्ली के साथ-साथ इससे सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी रहते हैं। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश में भी अपने पैर पसारे हैं।
यह पता चला है कि पीएफआई के हैंडलरों को जैसी ही उत्तर-भारतीय राज्यों में किसी भी घटना को भुनाने का अवसर दिखाई देता है, तो वह अपने स्लीपर सेल को तुरंत ही सक्रिय कर देते हैं। वह भारत में हिंसा फैलाने के किसी भी मौके से चूकना नहीं चाहते हैं।
इसके अलावा ऐसा भी संदेह है कि पीएफआई के प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के साथ संबंध हैं। यह कट्टरपंथी इस्लामी अपने समूह के लिए सदस्यों की भर्ती करने के साथ-साथ अपने विभिन्न अन्य मॉड्यूल की स्थापना भी कर रहा है।
एक 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या से जुड़े हालिया हाथरस मामले को लेकर संगठन के चार संदिग्ध सदस्य हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने की फिराक में थे, मगर इससे पहले ही उन्हें दबोच लिया गया। इन संदिग्ध सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद ही यह इनपुट साझा किए गए हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिन चार लोगों को हिरासत में लिया है, वह कथित रूप से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और इसके एक सहयोगी संगठन से जुड़े हैं। चारों को सोमवार रात मथुरा से उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वे दिल्ली से हाथरस जा रहे थे।
पुलिस ने कहा कि सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हुए कि कुछ संदिग्ध दिल्ली से हाथरस जाने के रास्ते में हैं, उन्होंने एक टोल प्लाजा पर एक कार को रोका। चारों से पूछताछ की गई और टोल प्लाजा पर हिरासत में ले लिया गया। इन चारों की पहचान मुजफ्फरनगर के अतीक-उर रहमान, मलप्पुरम के सिद्दीक, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम के रूप में हुई है। इनके कब्जे से मोबाइल फोन, लैपटॉप और कुछ साहित्य, जो शांति और व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकते थे, उन्हें जब्त कर लिया गया।
पुलिस ने पूछताछ के दौरान कहा कि यह पता चला है कि चारों का संबंध पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) से है। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि आगे की पूछताछ जारी है। योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने नागरिक कानूनों के खिलाफ राज्य में हिंसक विरोध प्रदर्शन के लिए पीएफआई को दोषी ठहराया था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब हाल की घटनाओं का उल्लेख कर कहा कि अराजकतावादी तत्व हाथरस की घटना के बाद राज्य में सांप्रदायिक और जातिगत हिंसा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। पीएफआई एक विवादास्पद केरल-आधारित समूह है, जिसे 2006 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा (एनडीएफ) के उत्तराधिकारी के रूप में गठित किया गया था। जो अब प्रदर्शनकारियों को उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ संघर्ष करने के लिए उकसाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के संदेह के घेरे में आ गया है।
राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली सरकार ने संगठन और उसके राजनीतिक मोर्चे, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा और उकसाने वाली गतिविधियों में शामिल होने का आरोप भी लगाया है।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने लखनऊ में सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन और अन्य आपराधिक गतिविधियों के सिलसिले में विभिन्न जिलों से पीएफआई के 25 सदस्यों को गिरफ्तार भी किया है।.
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