Death Anniversary: जब इंग्लैंड जाते वक्त रवींद्रनाथ टैगोर की खो गई प्रसिद्ध रचना ‘गीतांजलि’, पढ़ते ही अंग्रेज हो गए थे दिवाने

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भारत के महान लेखक और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की आज पुण्यतिथि है, 7 मई 1861 में कोलकाता में जन्में रवींद्रनाथ टैगोर ने 7 अगस्त 1947 को दुनिया को अलविदा कह दिया। लेखक के साथ-साथ उन्हें महान संगीतकार, चित्रकार, कवि और विचारक के रूप में भी जाना जाता है। टैगोर ने आठ साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखा, 16 साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना शुरू कर दिया। उनके द्वारा लिखे गए कई उपन्यास को फिल्मी परदे पर भी उतारा गया है।</p>
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अपने जीवन में उन्होंने एक हजार कविताएं, आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह और अलग-अलग विषयों पर कई लेख लिखे। इसके साथ ही उन्होंने दो हजार से ज्यादा गीत भी लिखे। जिसमें से दो गीत आज भी भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान हैं। इसके साथ ही उनके द्वारा लिखी गई कई उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। सन 1946 में मशहूर निर्दशक नितिन बोस की फिल्म 'मिलन' रिलीज हुई थी जो दिलीप कुमार के जीवन की सबसे पहली हिट फिल्म थी। ये फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की उपन्यास 'नौका डूबी' की कहना पर बनाया गया था।</p>
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<strong>ये फिल्में भी बनी</strong></p>
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सन 1961 में बिमलरॉय ने फिल्म काबुलीवाला बनाई जिसे आज भी खूब पसंद किया जाता है। ये फिल्म रवींद्रनाथ की रचनाओं में से उनकी सबसे मशहूर रचना काबुलीवाला पर बनाई गई थी। इसके बाद रॉय सुधेंदु ने 1971 में उपहार बनाई जो गुरुदेव रवींद्रनाथ की रचना समाप्ति पर आधारित थी। 1997 में बनी फिल्म चार अध्याय भी उनकी उपन्यास 'चार अध्याय' पर आधारित है।</p>
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<strong>जब इंग्लैंड में खो गई थी मशहूर उपन्यास गीतांजलि</strong></p>
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रवींद्रनाथ टैगोर की मशहूर कविता संग्रह गीतांजलि एक बार इंग्लैंड में खो चुकी है। दरअसल, वो अपने बेटे के साथ समुद्री मार्ग से इंग्लैंड जा रहे थे और इसी दौरान उन्होंने सिर्फ समय काटने के लिए अपनी कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना शुरू किया। उन्होंने एक नोटबुक में खुद ही गीतांजली का अंग्रेजी अनुवाद किया। लंदन में जहाज से उतरते वक्त उनका पुत्र उस सूटकेस को उतारना भूल गया, जिसमें वह नोटबुक रखी थी। हालांकि, वह सूटकेस जिस शख्स को मिली वह अगले दिन ही उन्हें लौटा दिया। गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद को चित्रकार रोथेंस्टिन ने जब पढ़ा तो आश्चर्यचकित हो गए उसके बाद डब्‍ल्‍यू.बी. यीट्स भी इसे पढ़कर मुग्ध हो गए। लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की जमकर प्रशंसा हुई। रवींद्रनाथ टैगोर सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि समूचे विश्‍व के साहित्‍य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्‍तंभ हैं।</p>
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आईएन ब्यूरो

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