रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को उत्तरी सीमाओं पर किसी भी आपात स्थिति के लिए सेना को तैयार रहने के लिए कहा। उन्होंने सेना में पूर्ण विश्वास व्यक्त करते हुए इस बात पर बल दिया कि युद्ध की तैयारी एक निरंतर चलने वाली परिघटना होती है। भारत को हमेशा उन अप्रत्याशित और अनिश्चित घटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए, जो कभी भी सामने आ सकती हैं।
उन्होंने कहा,”हमें हमेशा अपने युद्ध कौशल और हथियार प्रौद्योगिकियों का सम्मान करना चाहिए ताकि जब भी आवश्यकता हो, प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें। राष्ट्र को अपनी सेना पर गर्व है और सरकार सुधारों और क्षमता के आधुनिकीकरण के रास्ते पर सेना को आगे बढ़ने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है। ‘
2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गलवान घाटी की घटना के बाद से ही भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और अमन-चैन की बहाली के लिए उसका पीछे हटना आवश्यक है, जो कि द्विपक्षीय संबंधों के विकास का आधार है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने बीजिंग को यह भी बता दिया है कि एलएसी का उल्लंघन करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से जवाब दिया जायेगा।
सिंह ने सेना के शीर्ष अधिकारियों से कहा, “हमारी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिकूल मौसम और शत्रुतापूर्ण ताक़तों का सामना करने वाले हमारे सैनिकों को सर्वोत्तम हथियारों, उपकरणों और कपड़ों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए यह हमारी ‘सरकार का संपूर्ण’ दृष्टिकोण है।” शांतिपूर्ण समाधान जारी रहेगा और डिसइंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।
शीर्ष स्तर की होने वाला यह द्विवार्षिक कार्यक्रम सोमवार से शुरू हुआ और 21 अप्रैल तक जारी रहेगा।इसमें वर्तमान और उभरते सुरक्षा परिदृश्यों और परिचालन तैयारियों की समीक्षा पर विचार-मंथन सत्रों के साथ-साथ भारत-चीन संबंधों की भविष्य की रूपरेखा पर भी चर्चा की जा रही है।
एसीसी वैचारिक स्तर के विचार-विमर्श के लिए एक संस्थागत मंच है, जिसका समापन भारतीय सेना के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने में होता है।
सिंह ने अपने संबोधन में इस समय की उस जटिल विश्व स्थिति पर बल दिया, जो विश्व स्तर पर सभी को प्रभावित करती है। उन्होंने उल्लेख किया कि “हाइब्रिड युद्ध सहित अपरंपरागत और असममित युद्ध” भविष्य के पारंपरिक युद्धों का हिस्सा होंगे, जिसके लिए आवश्यक हैं कि सशस्त्र बल रणनीति बनाते और तैयार करते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए।
पाकिस्तान का नाम लिए बिना रक्षामंत्री ने पश्चिमी सीमाओं की स्थिति पर भी बात की, उन्होने कहा कि सीमा पार आतंकवाद के लिए सेना की प्रतिक्रिया को पूरक बनाया गया है, हालांकि, विरोधी द्वारा छद्म युद्ध जारी है।
उन्होंने कहा,“मैं जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के ख़तरे से निपटने में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ़), पुलिस बलों और सेना के बीच उत्कृष्ट तालमेल की सराहना करता हूं। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में समन्वित अभियान क्षेत्र में स्थिरता और शांति बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं और इसे जारी रहना चाहिए और इसके लिए मैं फिर से भारतीय सेना की सराहना करता हूं।”
उन्होंने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के प्रयासों की भी सराहना की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि कठिन परिस्थितियों में काम करते हुए पश्चिमी और उत्तरी दोनों सीमाओं में सड़क संचार में अतुलनीय सुधार हुआ है।
सिंह ने विदेशी सेनाओं के साथ स्थायी सहकारी संबंध बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के लिए सैन्य कूटनीति में सेना द्वारा किए गए महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। उन्होंने इसके उच्च स्तर की परिचालन तैयारियों और क्षमताओं पर भी प्रकाश डाला, जिसे मंत्री अग्रिम क्षेत्रों की अपनी यात्राओं के दौरान “हमेशा प्रत्यक्ष अनुभव” करते रहे हैं।
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