Religious Conversion: सरकार, न्यायालय, पुलिस प्रशासन और यहां तक कि सिविल सोसाइटी के लोग भी जानते हैं कि भारत में छल और प्रपंच के जरिए हिंदुओं का धर्म परिवर्तन (Religious Conversion) किया जा रहा है। हिंदुओं को धर्म-उपधर्म और जाति-उपजातियों में बांटा जा रहा है, धर्म परिवर्तन (Religious Conversion) किया जा रहा है, लेकिन जब कानून बनाने की बात आती है तो एक हलफनामा देकर सरकार पीछा छुडा लेती है और बाकी संस्थाएं फिर से अपने अगले काम पर लग जाती हैं।
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि जबरन या प्रपंच से करवाए जा रहेधर्म परिवर्तन (Religious Conversion) से राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसके बावजूद सरकार के वकील ने जबरन या प्रपंच पूर्वक किए जा रहे धर्म परिवर्तनों (Religious Conversion) को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए कोई न कदम उठाया और न कोई आश्वासन दिया। हलफनामे के साथ यह दलील जरूर दे दी कि फलां-फलां राज्य में धर्मपरिवर्तन (Religious Conversion) के खिलाफ कानून बने हुए हैं। लेकिन केंद्र सरकार धर्म परिवर्तन (Religious Conversion) को अपराध कब घोषित करेगी? इस पर कोई चर्चा नहीं है। सरकार, समाजसेवी संगठन तथाकथित सिविल सोसाइटी और मीडिया चर्चा-चिंतन नहीं कर रहे हैं क्यों कि हर किसी के अपने स्वार्थ हैं, किंतु मठ-मंदिरों-गुरुद्वारों को चर्चा के लिए किसने रोका है। अकाल तख्त साहिब, तलबंडी साहब, बंगला साहिब अनेक गुरु संगत हैं। दशनामी अखाड़े हैं, विद्वत परिषद है, श्रीबालाजी देवस्थान पीठ है, चार शंकराचार्य और पांचवी श्रंगेरी पीठ है। कश्मीर की खीर भवानी और बाबा बर्फानी ट्रस्ट है तो वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड है। इन सब को किसने रोका है। ये सभी संस्थाएं धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़सकती हैं। इन सब में सामर्थ्य है धर्म परिवर्तन को रोकने का। इन सब में सामर्थ्य है सत्ताओं को विवश करने का। अगर ये संस्थांए चाह भर लें तो भारत में धर्म परिवर्तन बिना किसी कानून के खत्म हो सकता है।
बहरहाल, चर्चा हो रही थी सुप्रीम कोर्ट में धर्मपरिवर्तन को अपराध घोषित करने के लिए डाली गई जन हित याचिका की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए क्या किया जा रहा है तो मालूम है कि क्या जवाब आया है, ‘जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे, किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरे का धर्म का परिवर्तन करवाए। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन गंभीर विषय है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है।‘
क्या सरकार से यह पूछा जा सकता है कि इससे भी हलका और क्या हो सकता है? लेकिन तुर्रा यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल गया है। उन्होंने कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सबको है, लेकिन इसमें किसी और का धर्म बदलवा देने का अधिकार शामिल नहीं है। उसने कहा, ‘किसी और के धर्म के परिवर्तन का मौलिक अधिकार किसी को नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा है कि मध्यप्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड और हरियाणा ने पहले ही जबरन धर्म परिर्तन के खिलाफ कानून बना रखे हैं। क्या कोई इनसे पूछ सकता है कि अगर इन राज्यों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बना रखे तो केंद्र को कानून बनाने से किसने रोका है और अगर इन राज्यों के कानून प्रभावी हैं तो नॉर्थ ईस्ट के बाद सबसे ज्यादा धर्मपरिवर्तन इन्हीं राज्यों में क्यों और कैसे हो रहा है?
ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबरन परिवर्तन (Religious Conversion) गंभीर मसला है और इससे देश की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान जवाब दाखिल करने को कहा था। जबरन और धोखा देकर धर्म परिवर्तन रोकने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान किए जाने के खिलाफ याचिका पर पर 23 सितंबर को सुनवाई हुई थी।
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