राष्ट्रीय

लोकसभा चुनाव पर नज़र रखते हुए जिहादी ताक़तों को ख़ुश करने में लगे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

रामकृष्ण उपाध्याय  

2013 और 2018 के बीच अपने पिछले कार्यकाल के दौरान खुली छूट देने वाली जिहादी ताक़तों को  फिर से “प्रोत्साहन” के स्पष्ट संकेत तब मिला,जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने पद पर लौटने के एक महीने के भीतर ही “निष्पक्ष काम और न्याय क़ायम रखने” के नाम पर कथित तौर पर सांप्रदायिक हिंसा के शिकार हुए छह परिवारों को सोमवार को 25 लाख रुपये का मुआवज़ा वितरित किया। उन्होंने यह भी कहा कि इन छह परिवारों में से प्रत्येक के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जायेगी।

मुआवज़े की पेशकश करने वाले इन छह परिवारों में से पांच मुस्लिम थे और छठा प्रतीकात्मक रूप से दीपक राव का हिंदू परिवार था, जिनकी जुलाई 2018 में हत्या कर दी गयी थी और जिन्हें पिछली भाजपा सरकार ने पहले ही मुआवज़ा दे दिया था।

अल्पसंख्यक समुदाय का तुष्टिकरण आगामी लोकसभा चुनावों में वोट पाने के लिए कांग्रेस सरकार की हताश रणनीति का एक हिस्सा है।

बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर सांप्रदायिक घटनाओं के संबंध में “भेदभावपूर्ण नीति” अपनाने का आरोप लगाते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि वह यह प्रदर्शित करना चाहते हैं कि उनकी सरकार “जाति या धर्म के आधार पर पक्षपात किए बिना सभी नागरिकों की सेवा करेगी।”

हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं के लिए “पांच मुफ़्त सुविधाओं” की घोषणा ने कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट बहुमत इसलिए भी मिला था,क्योंकि उसे 85% से अधिक मुस्लिम वोट हासिल हुआ था। लिहाज़ा,2024 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस नेतृत्व स्पष्ट रूप से मुसलमानों को अच्छे मूड में रखना चाहता है।

 

 पीड़ित या अपराध के अपराधी ?

कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा चिह्नित किये गये छह हत्या के मामलों में से चार हत्यायें दक्षिण कन्नड़ के तटीय ज़िले में हुए हैं,ये हैं: मसूद (19 जुलाई, 2022 को मारा गया), मोहम्मद फ़ाज़िल (28 जुलाई, 2022), जलील (24 दिसंबर, 2022) और दीपक राव (3 जुलाई, 2018)। अन्य दो शमीम (1 जनवरी, 2022, गडग) और इदरीस पाशा (31 मार्च, 2023, मांड्या) थे।

सभी “पीड़ित” या तो पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) या सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) के कार्यकर्ता थे और उनमें से कुछ को पिछले कुछ सालों में आरएसएस और बजरंग दल के स्वयंसेवकों की कथित हत्याओं में आरोपी के रूप में नामित किया गया था।

नाराज़ भाजपा नेताओं ने सिद्धारमैया के इस क़दम को “तुष्टिकरण की राजनीति” बताया और सिद्धारमैया ने कट्टरपंथी संगठनों को एक संकेत दे दिया है कि उन्हें अब क़ानून प्रवर्तन अधिकारियों से डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री ने ख़ुद पुलिस विभाग को स्पष्ट रूप से “चेतावनी” दे दी थी कि वे “पक्षपातपूर्ण तरीक़े से कार्य न करें।”।

भाजपा और आरएसएस नेताओं ने बताया कि सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल के दौरान कम से कम 23 हिंदू कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी थी, लेकिन उनकी सरकार ने न तो पीड़ितों के परिवारों को मुआवज़ा देने की जहमत उठायी और न ही आरोपियों को न्याय दिलाने के लिए किसी तरह के गंभीर प्रयास किए।

 

23 हिंदू पीड़ित

भाजपा द्वारा उद्धृत मामलों में शामिल हैं: शिवमोग्गा के विश्वनाथ शेट्टी, जिनकी पीएफ़आई कार्यकर्ताओं ने फ़रवरी 2015 में हत्या कर दी थी; मुदाबिद्री के प्रशांत पुजारी,वह एक फूल विक्रेता थे,जिनकी अक्टूबर 2015 में हत्या कर दी गयी थी; एक आरएसएस स्वयंसेवक कोडागु के डीएस कुट्टप्पा, जिनकी बाद में हत्या कर दी गयी थी। टीपू जयंती के ख़िलाफ़ एक विरोध मार्च में भाग लेने वाले आरएसएस कार्यकर्ता रुद्रेश की 16 अक्टूबर, 2016 को बेंगलुरु के शिवाजीनगर में दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी थी और दक्षिण कन्नड़ और मंगलुरु ज़िलों में चरण पुजारी, प्रवीण पुजारी, शरथ मदीवाला और परेश मस्ता की हत्याओं की एक श्रृंखला की हत्या कर दी गयी।

तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार ने पीएफ़आई और एसडीपीआई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ लंबित 1,500 से अधिक मामले भी वापस ले लिए थे और मुक़दमे के लंबित रहने तक पुलिस हिरासत में रखे गये कई आरोपियों को रिहा करने का आदेश दे दिया था।

बोम्मई सरकार द्वारा लाये गये धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार अधिनियम को निरस्त करने के नयी सिद्धारमैया सरकार के फ़ैसले से सांप्रदायिक ताक़तों को और अधिक बढ़ावा मिल सकता है, जिसने “ग़लत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन, कोई अन्य कपटपूर्ण साधन या अन्य तरीक़ों से एक धर्म से दूसरे धर्म में ग़ैर-क़ानूनी धर्मांतरण पर रोक लगा दी है।”

“लव जिहाद” के नाम पर जबरन धर्म परिवर्तन हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण रहा है, जिसके कारण कर्नाटक के कुछ हिस्सों में लगातार हिंसा हुई और भाजपा सरकार के इस क़दम का कुछ उदारवादी मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया था, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि यह क़ानून उन कट्टरपंथी इस्लामवादियों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करेगा, जो इस तरह के उत्तेजक कृत्यों में शामिल थे और राज्य के कई हिस्सों में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच पीढ़ियों से चली आ रही शांति और अमन-चैन को बाधित करते थे।

आईएन ब्यूरो

Recent Posts

खून से सना है चंद किमी लंबे गाजा पट्टी का इतिहास, जानिए 41 किमी लंबे ‘खूनी’ पथ का अतीत!

ऑटोमन साम्राज्य से लेकर इजरायल तक खून से सना है सिर्फ 41 किमी लंबे गजा…

1 year ago

Israel हमास की लड़ाई से Apple और Google जैसी कंपनियों की अटकी सांसे! भारत शिफ्ट हो सकती हैं ये कंपरनियां।

मौजूदा दौर में Israelको टेक्नोलॉजी का गढ़ माना जाता है, इस देश में 500 से…

1 year ago

हमास को कहाँ से मिले Israel किलर हथियार? हुआ खुलासा! जंग तेज

हमास और इजरायल के बीच जारी युद्ध और तेज हो गया है और इजरायली सेना…

1 year ago

Israel-हमास युद्ध में साथ आए दो दुश्‍मन, सऊदी प्रिंस ने ईरानी राष्‍ट्रपति से 45 मिनट तक की फोन पर बात

इजरायल (Israel) और फिलिस्‍तीन के आतंकी संगठन हमास, भू-राजनीति को बदलने वाला घटनाक्रम साबित हो…

1 year ago

इजरायल में भारत की इन 10 कंपनियों का बड़ा कारोबार, हमास के साथ युद्ध से व्यापार पर बुरा असर

Israel और हमास के बीच चल रही लड़ाई के कारण हिन्दुस्तान की कई कंपनियों का…

1 year ago