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सिख बुद्धिजीवियों ने ऑपरेशन अमृतपाल के दौरान पकड़े गए बंदियों को मुक्त करने के अकाल तख़्त जत्थेदार के आह्वान की कड़ी निंदा की

अकाल तख़्त की बैठक 27 मई को हुई थी

चंडीगढ़: विश्वविद्यालयों के प्रमुख प्रोफ़ेसरों ने अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा ऑपरेशन अमृतपाल के दौरान गिरफ़्तार किए गए “निर्दोष” सिख युवकों की रिहाई की मांग के सिलसिले में पंजाब सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम जारी करने के लिए निंदा की जा रही है।

जत्थेदार ने सोमवार को अमृतसर में अकाल तख़्त की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि सिखों को जानबूझकर दुनिया भर में बदनाम किया जा रहा है, हालांकि उन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया है। उन्होंने कहा, “अगर हमारे लड़कों को 24 घंटे के भीतर रिहा नहीं किया गया, तो हम शासकों के इस प्रतिशोधी और अलोकतांत्रिक कार्यों के ख़िलाफ़ गांवों से सिखों को लामबंद करने के लिए ‘वाहीर’ (मार्च) शुरू करेंगे।”

उन्होंने हरिके में अजनाला थाने के सामने अमृतपाल के विरोध में शामिल होने जा रहे सिख युवकों की पुलिस द्वारा हिरासत में ली गयी लगभग 80 मोटरसाइकिलों को वापस करने की भी मांग की थी।

पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू), चंडीगढ़ के प्रोफ़ेसर इक़बाल सिंह ढिल्लों ने कहा है, “जत्थेदार शिरोमणि अकाली दल (बादल) के इशारे पर पूरे सिख समुदाय को ग़लत तरीक़े से पीड़ितों के रूप में चित्रित करके राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने उस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा, जब अमृतपाल और उनके लोग एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को धमका रहे थे, जिससे वैमनस्य का माहौल पैदा हो रहा था।
ढिल्लों ने कहा, “अकाल तख़्त मुख्यालय में आमंत्रित सभी लोग बादल के आदमी थे। स्वतंत्र सिख सभा का हिस्सा नहीं थे और अकाली दल (बादल) को पीड़ितों के रक्षक के रूप में पेश करने का ग़लत प्रयास किया गया। यहां तक कि वह विदेश में ग़ुंडागर्दी करने वाले एनआरआई सिखों को भी कोई फ़रमान जारी नहीं करते हैं।’

पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मंजीत सिंह ने जत्थेदार से सवाल किया कि जब अमृतपाल ने ख़ुद को भारत का नागरिक कहने से इनकार कहते हुए ईसाइयों और अन्य समुदायों के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाला था, तो उन्होंने उसे सलाह क्यों नहीं दी थी। उन्होंने एक टेलीविज़न वार्ता में कहा, “ज्ञानी हरप्रीत सिंह इतने समय तक चुप रहे, लेकिन अमृतपाल के ‘अमृत संचार’ (बपतिस्मा ड्राइव) और नशा विरोधी अभियान के लिए उनकी प्रशंसा की।”

पंजाब विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रोफेसर मालविंदर सिंह मल्ली ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में जत्थेदार के गांवों से ‘वाहीर’ (मार्च) शुरू करने के आह्वान को ख़ारिज कर दिया।उन्होंने कहा कि अमृतपाल द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाले अधिकार का असली उद्देश्य अपने पापों को क्षमा करना था।

उन्होंने कहा, “कठोर क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन के समय आपने (जत्थेदार) उन बादलों का समर्थन किया, जिन्होंने आंदोलन के ख़िलाफ़ काम किया था … अब आप दावा कर रहे हैं कि सिख अलगाववादी नहीं हैं, लेकिन अमृतपाल एक कट्टर खालिस्तानी अलगाववादी था … वह ईसाई विरोधी था … अल्पसंख्यक विरोधी था…आपने कभी सिमरनजीत सिंह मान की खालिस्तान की तलाश में साहसिक होने को लेकर प्रशंसा की थी और कहा था कि सभी सिख ऐसा ही चाहते हैं…लेकिन आज आप एक देश भगत (राष्ट्रवादी) हैं…’तुसी जत्थेदार सुआ दे हो ?’ (आप एक अच्छे जत्थेदार हैं)

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “ज्ञानी हरप्रीत सिंह भोले हैं, जो सिखों को सही दिशा में नेतृत्व करना नहीं जानते… उन्होंने एक समय सिखों को हथियार हासिल करने की सलाह दी थी…उनका प्रयास पंजाब के बाहर बसे समुदाय के संपन्न लोगों की परवाह किए बिना सिखों और अन्य समुदायों के बीच एक टकराहट का मनोविज्ञान को फैलाना है।”