युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं जामिया के ये दो फैक्ल्टी, एक ने इटली तो दूसरे ने ऑस्ट्रेलिया में रोशन किया नाम

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पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति का मुद्दा बने रहने वाला जामिया एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार जामिया किसी आंदोलन की वजह से नहीं बल्कि अपनी अनूठी उपल्बधियों के कारण मीडिया का केंद्र बना हुआ है। जामिया ने बीते कुछ दिनों में न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सफलता का झंडा फहराया है। हाल ही में विश्विद्यालय को लंदन की क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग एजेंसी द्वारा निकाली गई 'क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग -2022 में 186 वां स्थान दिया गया है, जो बीते वर्ष जामिया की 203वीं रैंक से बहुत बेहतर है। प्रतिष्ठित क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग – 2022, में  687 शीर्ष एशियाई विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है।</p>
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इसके अलावा पिछले दिनों जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नाम एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ी है। यूएसए की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने जामिया के 16 शोधकर्ताओं को दुनिया के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठित वैश्विक सूची में शामिल किया है। यह सूची कुछ दिनों पहले स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एमिनेंट प्रोफेसर, प्रोफेसर जॉन इओनिडिस के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा तैयार की गई थी और इसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय, एल्सेवियर बीवी द्वारा प्रकाशित किया गया था। भारत से कुल 3352 शोधकर्ताओं ने इस सूची में स्थान पाया जो वैश्विक शोध मंच पर देश के बहुमूल्य प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है।</p>
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जामिया द्वारा लगातार एक के बाद एक हासिल की जाने वाली उपलब्धियों में दो नाम और जुड़े हैं। पहला नाम जामिया मिल्लिया इस्लामिया के फैकल्टी डॉ. मनसफ आलम का है, जिनकी टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डस्टबिन का अविष्कार किया है। उनके इस अविष्कार को ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा के रूप में पेटेंट प्रदान किया गया है। जबकि दूसरा नाम प्रोफेसर शकील अहमद का है। शकील अहमद जामिया में प्रोफेसर रहे हैं, अब उन्हें "द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (टीडब्ल्यूएएस)", ट्राएस्टे, इटली में  फैलो चुना गया है।</p>
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प्रोफेसर शकील अहमद ने एमके गांधी चेयर प्रोफेसर के रूप में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कार्य किया है। उन्हें एक विकासशील देश में विज्ञान की उन्नति के लिए इस प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान के लिए चुना गया है। टीडब्ल्यूएएस अनुसंधान, शिक्षा, नीति और कूटनीति के माध्यम से स्थायी समृद्धि का समर्थन करता है।</p>
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<strong>कौन हैं शकील अहमद</strong></p>
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"द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज (टीडब्ल्यूएएस)", ट्राएस्टे, इटली में  फैलो चुने जाने वाले शकील अहमद ने जल विज्ञान के विशेषज्ञ प्रोफेसर अहमद ने जामिया (2018-2020) में अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान सेंटर फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट के साथ-साथ भूगोल विभाग में भी अध्यापन किया। उन्हें जल से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन में उन्नत विकास अध्यापन का समृद्ध अनुभव है।</p>
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जामिया में प्रोफेसर अहमद का असाधाराण योगदान रहा है, उन्होंने उच्च प्रभाव वाली अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 13 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और आईएनएसए के साथ-साथ स्प्रिंगर और एल्सेवियर द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में तीन अध्यायों का योगदान दिया है। जामिया में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रोफेसर शकील अहमद को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (NASI) के फैलो के रूप में भी चुना गया था।</p>
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प्रोफेसर अहमद, भारत से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे, जिसमें भूगोल विभाग, जामिया के प्रोफेसर अतीकुर रहमान और भारत के कई अन्य वैज्ञानिक/विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो फ्रांस के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ 'जल प्रबंधन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव' पर मई 2022 को चर्चा करेंगे।</p>
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<strong>37 वर्षों तक हैदराबाद में वैज्ञानिक</strong></p>
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जामिया में शामिल आने से पहले, उन्होंने CSIR के राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में 37 वर्षों तक वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया और संस्थान के वरिष्ठतम मुख्य वैज्ञानिक के स्तर तक पहुँचे। उन्होंने भारत में राष्ट्रीय अक़ुइफ़र मैपिंग के मेगा कार्यक्रम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका सहित भू-विज्ञान पर बड़ी संख्या में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं का नेतृत्व किया है। प्रोफेसर अहमद एशियाई यूनेस्को के एक प्रमुख कार्यक्रम के सचिव के रूप में GWADI के सचिवालय का प्रबंधन कर रहे हैं। उन्हें  पहले से ही कई और पुरस्कार प्राप्त हैं जिसमें, राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार और जल विज्ञान के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।</p>
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प्रोफेसर अहमद ने संस्थापक प्रमुख के रूप में लगभग 2 दशकों तक हैदराबाद में 'इंडो-फ़्रेंच सेंटर फॉर ग्राउंडवाटर रिसर्च' का नेतृत्व किया है। वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैलो और कश्मीर विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं तथा वर्तमान में वे मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के स्कूल ऑफ साइंसेज में सलाहकार के रूप में कार्य कर रहे हैं।</p>
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<strong>ऑस्ट्रेलिया में जामिया के चर्चे</strong></p>
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अपनी इस रिपोर्ट में हमने ऊपर बताया है कि जामिया फैकल्टी डॉ. मनसफ की टीम द्वारा अविष्कार किये गए 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड डस्टबिन' को ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा के रूप में पेटेंट प्रदान किया गया है। डॉ. मनसफ के मुताबिक इस 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड डस्टबिन' का मुख्य उद्देश्य कूड़ेदान को उसमें फेंके गए विस्फोटक, रेडियोधर्मी सामग्री आदि जैसी हानिकारक वस्तुओं का पता लगाने में सक्षम बनाकर उसे स्मार्ट बनाना है। डस्टबिन के साथ सेंसर लगे हैं जो इसमें डंप की गई किसी भी हानिकारक वस्तु के बारे में संकेत भेजकर सूचित करेंगे।  </p>
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अपने इस अविष्कार के बारे में डॉक्टर मनसफ आलम का कहना है कि "हमने इस कूड़ेदान को सुरक्षा पहलू को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है जिससे कूड़ेदान इंसानों की तरह व्यवहार करते हैं और कृत्रिम बुद्धि की मदद से बुद्धिमानी से काम करते हैं। यह निश्चित रूप से समाज के लिए एक उपयोगी उत्पाद होगा।"</p>
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आईएन ब्यूरो

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