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UCC Special:देश में रह रहे हिन्दू औऱ मुस्लिमों को लिए अगल-अलग क़ानून! आख़िर कितने पर्सनल लॉ हैं इस देश में?

UCC Special:केंद्र सरकार जहां देश में यूसीसी यानी ,यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कह रही है तो वहीं कुछ विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। आखिर यूसीसी क्या है और क्या इसके आने से सभी पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे। साथ ही येट जानना जरूरी है कि आख़िर देश में अभी कितने पर्सनल लॉ हैं?

एक देश .एक विधान एक संविधान फिर देश में अलग-अलग पर्सनल लॉ क्यों? इस बात की चर्चा आम जनमानस में हो रही है। समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर देशभर में राजनीति चरम पर है। एक तरफ जहां केन्द्र की मोदी सरकार देश में UCC लागू करने की बात कर रही है वहीं कुछ विपक्षी पार्टी इसका विरोध कर रहे हैं।

यूसीसी की समीक्षा विधि आयोग ने भी कानूनन के बारे में सुझाव देने की अंतिम तिथि बढ़ा दी है,वहीं आयोग ने जनता के लिए सुझाव देने की अंतिं तिथि 14 जुलाई से बढ़ाकर 28 जुलाई कर दी है।

UCC पर फिर मांगे गए सुझाव

दरअसल, विधि आयोग ने दूसरी बार यूसीसी पर सुझाव मांगे है। इससे पहले 21वें विधि आयोग ने धार्मिक संगठनों और आम जनता से अपने 2018 तक के कार्यकाल के दौरान सुझाव मांगे थे। इसके बाद पर्सनल लॉ पर एक परामर्श पत्र जारी किया गया था।

22वें विधि आयोग ने कहा कि क्योंकि समय काफी बीत चुका है इसलिए इस मुद्दे पर दोबारा से विचार-विमर्श करने की जरूरत है।

आखिर यूसीसी क्या है, और क्या इसके आने से सभी पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे?

देश में अगर UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू हो जाता है को देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू हो जाएगा। यूसीसी के आने के बाद सभी पर्सनल लॉ,गोद लेने औऱ उत्तराधिकारी संबंधित कानूनों को एक छतरी के नीचे एक सामान्य कोड द्वारा कवर  जाने की संभावनाएं बढ़ जाएगी।

पर्सनल लॉ क्या है?

पर्सनल लॉ, जिसे पारिवारिक कानून के रूप में भी जाना जाता है, कानूनी प्रावधानों का एक समूह है जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, संरक्षकता और अन्य पारिवारिक मुद्दों से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है। ये कानून किसी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं या समुदाय के आधार पर भिन्न होते हैं और धार्मिक ग्रंथों, रीति-रिवाजों और परंपराओं से प्राप्त होते हैं।

हिंदू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ अंतर?

भारत में, पर्सनल लॉ को विभिन्न धार्मिक समुदायों पर लागू होने वाले अलग-अलग कानूनों में बांटा गया है। उदाहरण के लिए हिंदू पर्सनल लॉ को हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम और अन्य द्वारा चलाया जाता है।

इसी तरह, मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से लिए गए हैं और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट द्वारा चलाए जाते हैं। ईसाइयों, पारसियों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिए भी अलग-अलग कानून हैं।

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 हिंदू लड़का-लड़की के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था। यह उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो खुद को हिंदू बताते हैं, जिनमें वीरशैव, लिंगायत और ब्रह्म, प्रार्थना या आर्य समाज आंदोलनों के मानने वाले शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, यह अधिनियम बौद्धों, सिखों और जैनियों पर भी लागू होता है।

हिंदू मैरिज एक्ट हिंदू कोड बिल के हिस्से के रूप में पारित महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है। इस संहिता में शामिल अन्य अधिनियम हैं- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 और हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956।

भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872

1872 के भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम वो कानून है जो भारत में ईसाइयों के बीच विवाह के नियम तय करता है। ईसाई विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत, तलाक के लिए विशिष्ट आधार परिभाषित किए गए हैं।

उदाहरण के लिए एक पति अपनी पत्नी द्वारा किए गए व्यभिचार के आधार पर तलाक मांग सकता है। दूसरी ओर, आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, पत्नी दूसरे धर्म में परिवर्तन के साथ-साथ अनाचारपूर्ण गलत विचार, दूसरा विवाह, दुष्कर्म और पाशविकता के मामलों में भी तलाक मांग सकती है।

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936

1936 का पारसी विवाह और तलाक अधिनियम पारसी लोगों के वैवाहिक संबंधों को नियम और कानून के अंतर्गत लाता है। यह कानून विशेष रूप से पारसी समुदाय पर लागू होता है। यह बहुविवाह पर रोक लगाते हुए केवल एक पत्नी विवाह की अनुमति देता है।

2001 में, इसके प्रावधानों को हिंदू विवाह अधिनियम के साथ जोड़ने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। तलाक से संबंधित एक उल्लेखनीय संशोधन में कहा गया है कि लंबित गुजारा भत्ता (अस्थायी भरण-पोषण) या नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण और शिक्षा के लिए आवेदन को मामले के आधार पर पत्नी या पति को नोटिस देने की तारीख से 60 दिनों के भीतर हल किया जाना चाहिए।

भारत में मुस्लिम विवाह

मुस्लिम विवाह कानून हिंदू मैरिज एक्ट से अलग है, क्योंकि यह संहिता अनुसार नहीं चलता है। इसके बजाय, यह इस्लामी धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं से प्राप्त मुस्लिम पर्सनल लॉ पर आधारित है। समय के साथ, संसद ने मुस्लिम विवाहों के भीतर सहमति, उम्र, तलाक, विरासत और अन्य पहलुओं से संबंधित मसलों से निपटने के लिए विभिन्न संशोधन और अधिनियम पारित किए हैं।

पर्सनल लॉ में ये कानून भी शामिल

बता दें कि इन अधिनियमों के अलावा, भारत में पर्सनल लॉ में अन्य कानून शामिल हैं। जैसे कि 1869 का भारतीय तलाक अधिनियम, 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1969 का विदेशी विवाह अधिनियम, 1880 का काजी अधिनियम, 1925 का भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और 1909 का आनंद विवाह अधिनियम।

ये कानून विशिष्ट धार्मिक समुदायों या सामान्य आवेदन के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और अन्य संबंधित मामलों के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देते हैं।

विरासत को लेकर कानून

1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम एक महत्वपूर्ण संहिताबद्ध कानून है। यह कानून भारत की संसद द्वारा पारित है जो किसी व्यक्ति को बिना वसीयत की छोड़ी गई संपत्ति को नियंत्रित करने के लिए अधिनियमित किया गया है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 5-29 बिना वसीयत की संपत्ति के उत्तराधिकार से संबंधित है। इसमें संपत्ति का वितरण तब शामिल होता है, जब कोई व्यक्ति वैध वसीयत छोड़े बिना मर जाता है।

मुसलमानों में विरासत

मुस्लिम कानून के तहत जिसे शरिया कानून भी कहा जाता है, मुसलमानों के लिए कानूनी ढांचे को नियंत्रित करता है। कानून के तहत यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े मर जाता है, तो उसकी संपत्ति खर्चों और देनदारियों में कटौती के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित की जाती है। इस संपत्ति वितरण को विरासत योग्य संपत्ति के रूप में जाना जाता है।

यह भी पढ़ें-वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद : ASI का काम शुरू, 4 अगस्त तक पूरा होगा Archaeological Survey

आईएन ब्यूरो

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