स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद बीजेपी में हलचलें तेज हो गई है, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य के पास अपना काफी बड़ा जनाधार है। जिसमें पिछड़े समाज के बड़े नेता, गैर-यादव ओबीसी लोग शामिल है। इनसे वोट बैंक को मजबूती मिलती है। खास तौर से कोइरी-कुशवाहा जाति के वोटबैंक पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। यूपी में कोइरी-कुशवाहा वोट लगभग 5 फीसदी है। बीजेपी भी स्वामी प्रसाद मौर्य की ताकत को अच्छी तरह से जानती है। मौर्य की सियासी पकड़ का फायदा बीजेपी 2017 के चुनाव में उठा चुकी है। तब स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी के बड़े कद्दावर नेता थे और चुनावी मौसम में मायावती को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे।
आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है मैं नहीं जानता हूँ उनसे अपील है कि बैठकर बात करें जल्दबाजी में लिये हुये फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) January 11, 2022
सूत्रों के मानें तो अमित शाह ने नया प्लान बनाया है। जिसके तहत स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने का जिम्मा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सौंपा गया है। जिसके बाद केशव प्रसाद मौर्य तुरंत एक्शन में आए गए और सोशल मीडिया पर बिना देरी किए एक पोस्ट शेयर किया। उन्होंने ट्वीट किया और लिखा- 'आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है, मैं नहीं जानता हूं, उनसे अपील है कि बैठकर बात करें, जल्दबाजी में लिये हुये फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं।' लेकिन जब तक केशव प्रसाद मौर्य का ये ट्वीट आता, तब तक बात बहुत आगे निकल चुकी थी।
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सूत्रों की मानें तो मौर्य ये बात जानते थे कि केशव प्रसाद मौर्य के कारण पार्टी में उनकी तरक्की का रास्ता लगभग बंद हो चुका है। लिहाजा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पार्टी से उनकी नाराजगी के सुर काफी पहले ही सुनाई देने लगे थ। एक जमाने में जनता दल से अपने सियासी सफर की शुरुआत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बीएसपी का दामन थामा था, तो मायावती को भी ये अहसास हो गया था कि वे गैर यादव ओबीसी में जनाधार रखने वाला एक बड़ा चेहरा है और 2007 में उन्हें सत्ता दिलाने में इस वर्ग के वोटरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। उसके बाद मायावती ने उनका कद इतना ऊंचा कर दिया था कि मीडिया से सिर्फ दो ही लोग बात करते थे, या तो खुद मायावती या फिर स्वामी प्रसाद मौर्य।
एक अनुमान के मुताबिक करीब 52 फीसदी पिछड़े वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव समुदाय से ताल्लुक रखता है। इसे ही मौर्य अपनी ताकत मानकर चल रहे हैं।