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World Toilet Day: जानिये SDG-6 क्यों बाध्य करता है, भारत में ODF की क्या है स्थिति?

World Toilet Day: जानिये SDG-6 क्यों बाध्य करता है, भारत में ODF की क्या है स्थिति?

दुनिया में शौचालय की जरूरतों को देखते हुए करीब दो दशक से World Toilet Day मनाया जा रहा है। साल 2001 में विश्व शौचालय संगठन ने सबसे पहले वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया था। बाद में साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा ने इसे आधिकारिक तौर पर मनाने का प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद हर साल 19 नवंबर को World Toilet Day मनाया जाता है। इस बार शौचालय दिवस की थीम 'सस्टेनेबल सैनिटेशन एंड क्लाइमेट चेंज' (Sustainable Sanitation and Climate Change) है।

साल 2015 में UN ने Sustainable Development Goals (SDGs) के लक्ष्यों को तय किया था। ताकि विकास इस प्रकार हो जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों का संरक्षण होने के साथ दुनिया को हर लिहाज से बेहतर जगह बनाया जा सके। इस सोच के साथ SDG के छठवें लक्ष्य में सबको शुद्ध पेयजल और स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध कराना तय किया गया। इसी के साथ साल 2030 तक दुनिया के सभी लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की और 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) करने की अपील की। इस मुहिम में सरकर को काफी सफलता मिली है। गरीब और जरूरतमंद लोगों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराकर घर-घर तक शौचालय पहुंचाने में कामयाबी मिली है। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 35 प्रदेश/संघ शासित राज्यों के 6,03177 गांव, 706 जिले खुले में शौच से मुक्त (Open defecation free-ODF) हो चुके हैं। इसके लिए देश भर में 10,7107461 शौचालयों का निर्माण किया गया है।

वहीं भारत के कुछ इलाके शौचालय को लेकर पिछड़े हुए हैं। भारत की बड़ी और घनी जनसंख्या जिन राज्यों में निवास करती है, उनमें सबसे खराब स्थिति बिहार की है। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में स्वीकृत और अस्वीकृत दोनों तरह के 81.34 फीसद शौचालय ही रिपोर्ट हुए हैं। यूपी में यह आंकड़ा 95.84 फीसद है और अंडमान-निकोवार, पुडुचेरी, दमन-दीव और गुजरात में 100 फीसद है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 4.2 अरब आबादी को आज भी ठीक से शौचायल उपलब्ध नहीं है और वह गंदगी में रहने को मजबूर है। वहीं पूरे विश्व में 67.3 करोड़ आबादी खुले में शौच करने को मजबूर है।

भारत में बेहतर जल स्रोत तक पहुंच वाले परिवारों का कुल मिलाकर अनुपात साल 1992-93 में 68 फीसद था, जो बढ़ कर साल 2011-12 में 90.6 फीसद हो गया था। फिर भी साल 2012 में 59 फीसद ग्रामीण परिवार और 8 फीसद शहरी परिवारों को बेहतर स्वच्छता सुविधाएं सुलभ नहीं है। स्वच्छता में सुधार करना पीएम मोदी की प्राथमिकता में है और इस दिशा में उन्होंने अनेक प्रमुख कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम और गंगा संरक्षण के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम शामिल हैं।

<strong>यूएनओ के SDG-6 के उद्देश्यः</strong>

2030 तक, सबके लिए सुरक्षित और किफायती पेयजल सर्वत्र और समान रूप से सुलभ कराना।

2030 तक, सबके लिए पर्याप्त और समान स्वच्छता एवं साफ-सफाई सुविधाएं सुलभ कराना और खुले में शौच जाना बंद कराना। इसमें महिलाओं औऱ लड़कियों तथा लाचारी की हालत में जीते लोगों की ज़रूरतों का विशेष ध्यान रखा जाएगा।

2030 तक, प्रदूषण कम करके, कचरा फेंकना बंद करके और हानिकारक रसायनों तथा सामग्री को कम से कम छोड़ कर पानी की गुणवत्ता सुधारना, अनुपचारित गंदे पानी का अनुपात आधा करना और दुनियाभर में पानी की रिसाइकिलिंग और सुरक्षित ढंग से दोबारा इस्तेमाल में बहुत अधिक वृद्धि करना।

2030 तक, सभी क्षेत्रों में जल के किफायती उपयोग को बहुत बढ़ावा देना और ताज़े जल की टिकाऊ निकासी और आपूर्ति सुनिश्चित करना जिससे जल का अभाव दूर हो सके और जल के अभाव से जूझते लोगों की संख्या में बहुत कमी आ सके।

2030 तक, उपयुक्तता के अनुसार, सीमापार से सहयोग सहित, सभी स्तरों पर समन्वित जल प्रबंधन लागू करना।

2020 तक, पर्वत, जंगल, दलदली क्षेत्रों, नदियों, कुओं औऱ झीलों सहित जल से जुड़ी पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण औऱ जीर्णोद्धार करना।

2030 तक, जल संचयन, जल का खारापन दूर करने, जल की किफायत, गंदे जल के उपचार, रिसाइकलिंग और दोबारा इस्तेमाल की टैक्नॉलॉजी सहित, जल एवं स्वच्छता से जुड़ी गतिविधियों और कार्यक्रमों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और क्षमता निर्माण का दायरा विकासशील देशों तक बढ़ाना ।

जल एवं स्वच्छता प्रबंधन सुधारने में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को समर्थन और मज़बूती देना।.