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पेशावर में राष्ट्रीय धरोहर बनेंगी दिलीप कुमार और राज कपूर की पुश्तैनी हवेलियां

पेशावर में राष्ट्रीय धरोहर बनेंगी दिलीप कुमार और राज कपूर की पुश्तैनी हवेलियां

पाकिस्तान की खैबर पख्तूनख्वा प्रांतीय सरकार ने हिन्दी फिल्मों के सदाबहार अभिनेताओं दिलीप कुमार और राज कपूर के पुश्तैनी घरों की कीमत तय कर दी है। दिलीप कुमार के घर की कीमत 80,56,000 रुपये, जबकि राज कपूर के पैतृक घर की कीमत 1,50,00,000 रुपये निर्धारित की गई है। सितंबर महीने में सूबे की सरकार ने जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्थित इन इमारतों के संरक्षण के लिये इन घरों को खरीदने का फैसला किया था। सरकार का कहना है कि इन इमारतों को बिलकुल वैसा ही बनाकर, ऐतिहासिक म्यूजियम बनाया जाएगा। ये दोनों इमारतें पेशावर में बॉलीवुड की धरोहर हैं।

भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान एक अलग देश बना। विभाजन के बाद पेशावर, पाकिस्तानी प्रांत खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी बना। पेशावर की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक शहरों में होती है। कभी यह शहर दक्षिण एशिया का कला और संस्कृति का केन्द्र रहा था। मुगल काल से बहुत पहले प्राचीन काल में कुषाण वंश के सम्राट कनिष्क ने इसे अपनी राजधानी बनाया था और यहां बौद्ध धर्म खूब फला-फूला। एक जमाने में इसका नाम पुरुषपुर था, जिसका उल्लेख इतिहास में मिलता भी है। इतिहास की किताबों के मुताबिक सम्राट कनिष्क ने पुरुषपुर को ईसा पूर्व पांचवी सदी में बसाया था। पुरुषपुर प्राचीन समय में गाँधार मूर्तिकला का मुख्य और ख्याति प्राप्त केन्द्र माना जाता था।

अभिनेता दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान का जन्म पेशावर के एक पठान परिवार में हुआ था। दिलीप कुमार का घर पेशावर के मशहूर और ऐतिहासिक क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार के मोहल्ला ख़ुदादाद में है। यूसुफ के पिता मोहम्मद सरवर खान फलों के व्यापारी थे और कोलकाता, मुंबई आया-जाया करते थे।
<h2>पश्तो लिखना नहीं सीख सके यूसुफ</h2>
पेशावर में पश्तो भाषा बोली जाती है। पश्तो सभी बच्चों को पढ़ाई जाती थी। घर के सब लोग पश्तो पढ़ना-लिखना जानते थे, लेकिन यूसुफ पश्तो लिखना नहीं सीख सके। दादा हाजी मोहम्मद फारसी जानते थे और शायरी के शौकीन थे। दिलीप कुमार के पिता अपना घर 5000 रुपये में बेचकर अपने परिवार के साथ 1930 में बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए थे। 1988 में जब दिलीप कुमार पाकिस्तान गए थे तो उन्होंने पेशावर का भी दौरा किया था। अपने पुराने घर जाकर दिलीप कुमार ने उसके दरवाज़े को चूमा था और बचपन की यादों को साझा किया था।
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— Dilip Kumar (@TheDilipKumar) <a href="https://twitter.com/TheDilipKumar/status/1311217944764973056?ref_src=twsrc%5Etfw">September 30, 2020</a></blockquote>
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आजकल यह इलाका एक कमर्शियल केन्द्र बन गया है। जहां पुराने घरों को तोड़ कर मॉल बनाए जा रहे हैं। लेकिन दिलीप कुमार का घर बच गया और अब पाकिस्तान का संस्कृति विभाग इस घर को संरक्षित करने जा रहा है। शो-मैन राजकपूर और ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार पाकिस्तान में भी उतने ही लोकप्रिय थे, जितने भारत में। 1998 में पाकिस्तान की सरकार ने दिलीप कुमार को <a href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%8F-%E0%A4%87%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC#:~:text=%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%2D%E0%A4%8F%2D%E0%A4%87%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%20(%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82,%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A5%A4">पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक अवॉर्ड निशान-ए-इम्तियाज</a> से  सम्मानित किया था।

कपूर हवेली पेशावर के ही दिलगरां इलाक़े में है। बॉलीवुड को कई सुपर स्टार देने वाले कपूर परिवार की एक पीढ़ी इस हवेली में पैदा हुई थी। पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर पेशावर के रईसों में थे। उन्होंने 6 मंजिल की शानदार हवेली 1918 से 1922 के बीच बनवाई गई थी। पृथ्वीराज कपूर और उनके तीन बेटे-राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर इसी हवेली में पैदा हुए थे। मुल्क के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया था।
<h2>हवेलियों के कई मालिक बदले</h2>
इस बीच दोनों कलाकारों की पेशावर स्थित हवेलियों के मालिक बदलते गए। लेकिन पेशावर के लोग राजकपूर और दिलीप कुमार को नहीं भूले। ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर अब्दुस्समद ख़ान ने जुलाई में बीबीसी उर्दू के पत्रकार अजीजुल्लाह खान से कहा था "दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों पेशावर की कला और संस्कृति की धरोहर हैं। हम पेशावर वालों को उन पर नाज है। राज कपूर साहब तो अब हैं नहीं लेकिन हम दिलीप साहब की लंबी जिंदगी के लिए दुआ करते हैं।"

<img class="wp-image-21055" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/12/Prithviraj-Kapoor-Haveli-in-Peshawar-1024×680.png" alt="Prithviraj Kapoor Haveli in Peshawar" width="339" height="225" /> पेशावर में कपूर परिवार की पुश्तैनी हवेली

पेशावर की सिविल सोसाइटी की कल्चरल हेरिटेज काउंसिल के सेक्रेटरी शकील वहीदुल्लाह ख़ान पिछले कई सालों से दिलीप कुमार और राज कपूर की हवेलियों के साथ पेशावर की 100 साल से पुरानी इमारतों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। खान के मुताबिक राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर और रणधीर कपूर और राज कपूर के भाई शशि कपूर ने 90 के दशक में पेशावर का दौरा किया था। उन्होंने खासतौर पर अपनी हवेली देखने की इच्छा जाहिर की थी। वापसी पर ऋषि कपूर इस हवेली की मिट्टी साथ ले गए थे।

कपूर खानदान के पृथ्वीराज कपूर और उनके तीनों बेटे राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर हमारे बीच नहीं हैं। पिछले दिनों दिलीप कुमार ने ट्वीट कर पेशावर के लोगों से अपने घर की फोटो भेजने की अपील की थी और पेशावर के कई लोगों ने उनकी इच्छा पूरी की।
<h2>मुगल नक्काशी वाली कपूर हवेली में थे 40 कमरे</h2>
आज दोनों हवेलियां खस्ताहाल हैं। उनके मौजूदा मालिकों ने इमारतों को गिराने और प्लाज़ा बनाने की कई बार कोशिश की है, लेकिन हर बार सूबे की सरकार ने रोक दिया। सितंबर में खैबर पख्तूनख्वा की सरकार ने पुरातत्व विभाग से इन दोनों हवेलियों को खरीदने का आदेश दिया। बुधवार को पाकिस्तानी सरकार ने इन दोनों इमारतों का मूल्य निर्धारित कर दिया है। पेशावर के 90 वर्षीय सैम्मुद्दीन खान ने <strong>'द डॉन'</strong> से बातचीत में बताया कि "उन्हें अब भी याद है कि कपूर की हवेली में 40 कमरे थे। हवेली में मुगल नक्काशी की गई थी, लेकिन वहां कोई रहता नहीं था। आस-पास के बच्चे हवेली की छत पर पंतगें उड़ाते थे। लेकिन अब तो बिल्डिंग एक झटके से गिर सकती है।"

इस तरह की 100 से भी ज्यादा इमारतें पेशावर में हैं, जिन्हें हिंदुओं और सिखों ने बनवाया था। लेकिन विभाजन के समय औने-पौने दाम में बेचकर वो भारत चले गए थे। पेशावर में कई सिनेमाघर भी थे, जहां राज कपूर और दिलीप कुमार की फिल्मों के साथ  पश्तो भाषा की फिल्में दिखाई जाती थीं। लेकिन 1980 के बाद पेशावर तालिबान और अल-कायदा जैसे आंतकवादी संगठनों की गिरफ्त में आ गया। संगीत, सिनेमा, थिएटर पर पांबदी लग गई।

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद पेशावर में जनजीवन सामान्य होने लगा था। लेकिन 2015 में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-पाकिस्तान ने तीन सिनेमाघरों को बम से उड़ा दिया। हालांकि एक बार फिर उम्मीद की किरण नजर आ रही है। पेशावर की एक पूरी पीढ़ी ने सिर्फ खून-खराबा ही देखा है। पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर का कहना है,"हालात सुधर रहे हैं। इन दोनों इमारतों की जगह म्यूजियम बनाया जाएगा। पेशावर की पारंपरिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने का अभियान शुरू किया जा रहा है।".