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Jitiya Vrat: नहाय-खाय से हुआ शुरू निर्जला जितिया व्रत, जाने पूजा विधि

पुरबियों के मशहूर त्योहार और धार्मिक भावनाओं का एक पर्व है जितिया व्रत। जहां शनिवार,17 सितम्बर को जब देशभर में भगवान विश्वकर्मा के लिए हवन-पूजन का आयोजन किया जा रहा है तब पूरब में जितिया व्रत के लिए माताएं नहाय-खाय करने के साथ ही पूजन की तैयारी करने में जुटी हुई हैं। ये व्रत रविवार यानि 18 सितम्बर को रखा जाएगा। इस व्रत को एक अन्य नाम जीवित्पुत्रिका (Jitiya Vrat ) व्रत भी कहते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत का मुहूर्त-

बिहार और पश्चिम बंगाल में 17 सितंबर को जितिया व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ किया गया।उसके बाद 18 सितंबर को व्रत रखा जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, 17 सितंबर को दोपहर 2.14 बजे अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और 18 सितंबर दोपहर 4.32 पर अष्टमी तिथि समाप्त हो जाएगी। इसके बाद जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा। इसका पारण (भोजन करके व्रत का समापन करना) 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा। 19 सितंबर की सुबह 6.10 पर सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा-विधि

-सुबह जल्दी उठकर स्नान करें
-स्नान आदि करने के बाद सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं।
-धूप, दीप आदि से आरती करें और इसके बाद भोग लगाएं।
-मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाएं।
-कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें।
-विधि- विधान से पूजा करें और व्रत की कथा अवश्य सुनें।
-व्रत पारण के बाद दान जरूर करें।

जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों मनाया जाता है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिनको लंबे समय से संतान नहीं हो रही है, उनके लिए जितिया का व्रत (Jitiya Vrat) तप के समान माना जाता है। संतान की आयु बढ़ाने और उन्हें हर तरह का सुख उपलबध कराने की कामना वाली भावना के साथ महिलाएं यह व्रत करती हैं। यह निर्जला व्रत होता है। इस व्रत में नहाय खाय की परंपरा होती है। यह व्रत उत्तर प्रदेश समेत बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है।

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जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा

महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया था। शिविर के अंदर उसने पांच लोग को सोया हुआ पाया। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं। इससे नाराज हो कर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि को उसके माथे से निकाल लिया। लेकिन गुरू पुत्र होने के कारण उसे मारा नहीं।

अश्वत्थामा ने एक बार फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया। उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद फिर से जीवित होने के कारण उसे परिक्षित के नाम से जाना गया। इस घटना को जीवित्पुत्रिका कहा जाता है। उस दिन से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया या जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा जाता है।

आईएन ब्यूरो

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