मौत से पहले खुद को मरते देख सकेंगे लोग, जानिए कैसे काम करते ही ये Suicide Machine Sarco

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आपने बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय की फिल्म 'गुजारिश' जरुर देखी होगी। ये फिल्म साल 2010 में रिलीज हुई थी। फिल्म में ऋतिक ने ऐसे आर्टिस्ट का किरदार निभाया था, जो गंभीर बीमारी से पीड़ित था और जीने की इच्छा को छोड़ चुका था। वो मरना चाहता था। इस किरदार में उन्हें यूथेनेशिया से पीड़ित दिखाया गया था। यूथेनेशिया एक मनचाही मौत की इस प्रक्रिया है। लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से दुनिया को अलविदा कहने के लिए डॉक्टर फिलिप निश्‍के ने एक ऐसे मशीन तैयार की है, जिसके चलते लोग मरने से पहले खुद को मरते हुए देख सकते है।</p>
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डॉ फिलीप ने कुछ साल पहले एमस्टर्डम के फ्युनरल फेयर में एक डेथ मशीन को तैयार की थी। इस मशीन में एक खास फीचर जोड़ा गया है। ये मशीन पहले केवल उन लोगों के लिए थी जो मरना चाहते है, लेकिन इस वर्चुएल तकनीक से लोग अब अपनी मौत को देख सकते है।  इस मशीन का नाम कुछ साल पहले सरको (Sarco) दिया था। ये मशीन गंभीर रोगियों को शांतिपूर्ण तरीके से मरने का मौका देती है। ये ऐसे मरीजों के लिए है जिनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ टुके है। इस मशीन को सबसे पहले एम्‍सटर्डम में फ्यूरनल फेयर में प्रदर्शित किया गया था और इसके बाद यूरोप में कई जगह इसे प्रदर्शित किया गया।</p>
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ये 3डी-प्रिंटेड सुसाइड मशीन एक कैप्‍शूल जैसी है और ताबूत से करीब दोगुनी बड़ी है। यह तेजी से ऑक्‍सीजन लेवल में कमी करके CO2 के लो लेवल को मेंटेन रखती है, ताकि व्‍यक्ति शांति से मर सके। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब इस मशीन में एक नया फीचर जोड़ा गया है। इसके तहत अब लोग मरने से पहले ही अपनी मौत को वर्चुअल तरीके से देख सकेंगे, जबकि पहले ऐसा अनुभव केवल वही व्‍यक्ति ले सकता था, जो इस मशीन का उपयोग करके मरना चाहता था। मशीन को लेकर दावा किया गया है कि मशीन के जरिए होने वाली मौत दर्द रहित  होती है।</p>
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सरको मशीन में कोई घुटन, हवा की कमी के कारण सांस न ले पाने जैसी दिक्‍कत नहीं होती है, बल्कि व्‍यक्ति कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में आसानी से सांस लेता है। इस मशीन को बनाने के पीछे उनकी सोच है कि इंसान को जिंदगी एक बार मिलती है और उसे सम्‍मानपूर्वक जीने के साथ-साथ सम्‍मान से मरने का भी अधिकार होना चाहिए। ये डॉक्‍टर 2 दशकों से ज्‍यादा समय से इस क्षेत्र में काम कर रहे है। पहले उन्‍होंने डेलीवरेंस मशीन बनाई थी। इसकी मदद से 1996 में ऑस्ट्रेलिया के राइट्स ऑफ द टर्मिनली इल एक्ट के तहत 4 गंभीर रूप से बीमार मरीजों ने मौत को गले लगाया था।</p>

आईएन ब्यूरो

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